विश्व व्यापार संगठन की 13वीं मंत्रिस्तरीय बैठक या एमसी13 जैसा कि आमतौर पर इसे जाना जाता है- अबूधाबी शहर में मामूली आम सहमति के साथ संपन्न हुई। डिजिटल व्यापार पर शुल्क लगाने की देशों पर लगी रोक दो साल के लिए बढ़ाने पर अंतिम समय में हुए समझौते को ही प्रतिनिधि एक छोटी-सी जीत बता सकते हैं। लेकिन सच तो यह है कि यही एकमात्र अच्छी खबर है।
शनिवार तड़के तक चली बैठक के बाद जारी घोषणापत्र में यह संकेत दिया गया कि सदस्य देश डब्ल्यूटीओ के कामकाज के लिए आवश्यक सुधारों पर काम करना जारी रखेंगे। यह भारत की सबसे बुनियादी मांगों में से एक है। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने बिल्कुल सही तरीके से यह बात रखी कि जब तक डब्ल्यूटीओ के बुनियादी कार्यों में सुधार नहीं किया जाता-जैसे कि विवाद समाधान प्रणाली- डब्ल्यूटीओ के दायरे का विस्तार करने के प्रयासों की गुंजाइश बहुत कम है।
केंद्रीय तंत्र जिसके द्वारा डब्ल्यूटीओ आगे बढ़ सकता है वह यह है कि अमेरिकी प्रशासन-किसी भी पक्ष का-राष्ट्रों के बीच व्यापार विवादों पर फैसला करने वाले अपील निकाय में नए न्यायाधीशों के नामांकन पर अपनी अभूतपूर्व आपत्ति छोड़ दे। इस निकाय में 2024 तक सुधार करने का लक्ष्य था, लेकिन इस समयसीमा का पालन नहीं हो पाया। इस गतिरोध के जारी रहने की बड़ी जिम्मेदारी वॉशिंगटन में जो बाइडन प्रशासन की ही है।
यहां तक कि बुनियादी जुड़ाव की भी कमी सबसे अधिक तब दिखाई दी जब अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि ने शुक्रवार को मंत्रिस्तरीय वार्ता छोड़कर जाने का फैसला किया, जबकि अन्य लोग समझौता करने की कोशिश करने के लिए रुके रहे। भारत के लिए सरकार की मुख्य प्राथमिकता यही थी कि भारत की अनाज खरीद प्रणाली का बचाव किया जाए, जिसे कि फिलहाल वह घरेलू स्तर पर सुधारने की कोशिश कर रही है। इसने पश्चिमी देशों को उतना परेशान नहीं किया जितना कि कुछ साथी विकासशील देशों को।
ब्राजील ने भारत के खिलाफ आरोप का नेतृत्व किया, जबकि थाईलैंड के प्रतिनिधि ने अनाज भंडारण पर हमला करते हुए इसे वैश्विक खाद्य कीमतों को प्रभावित करने वाला बताया। भारत के विरोध के बाद थाईलैंड को डब्ल्यूटीओ में अपने राजदूत को वापस बुलाना पड़ा।
अनाज खरीद को महत्त्व देने के पुराने तरीके पर भारत की कुछ मांगें वस्तुनिष्ठ तरीके की हैं और उनमें सुधार की जरूरत है। इसी तरह मत्स्यपालन के मामले में, जरूरत से ज्यादा मछली पकड़ने पर रोक लगाना भारत के हित में है, खासकर चीन जनवादी गणतंत्र के विशाल बेड़ों द्वारा।
ऐसा करने के लिए, भारत के समान छोटे पैमाने के मछली पकड़ने के लिए बेड़े रखने वाले विकासशील देशों के साथ एक गठजोड़ करना चाहिए, और पश्चिमी देशों द्वारा सब्सिडी पर प्रतिबंध लगाने के प्रयास का जवाबी प्रस्ताव पेश करना चाहिए। इसे आसानी से किया जा सकता था क्योंकि पिछले साल आयोजित एमसी12 मत्स्यपालन पर एक समझौते तक पहुंचने में विफल रहा था।
इस तरह के दृष्टिकोण का खतरा दोहरा है। सबसे पहले, इसका मतलब यह है कि चीन के व्यवहार को अनुशासित करने के लिए डब्ल्यूटीओ का उपयोग करने की क्षमता का भारत लाभ नहीं उठा पा रहा। और दूसरा, यह भारत के महत्त्वपूर्ण व्यापारिक साझेदारों सहित अन्य देशों के लिए बहुल समूह (प्लूरीलैटरल ग्रुप) बनाने के लिए प्रोत्साहन बढ़ाता है जिससे वे बहुपक्षीय समझौते (मल्टीलैटरल एग्रीमेंट) की आवश्यकता से बचते हैं। ये बहुल समूह भारत को शामिल किए बिना भविष्य के व्यापार नियमों को प्रभावी ढंग से निर्धारित करेंगे।
इस प्रकार, मत्स्यपालन से लेकर कृषि तक के महत्त्व के मुद्दों को उठाने की भारत की इच्छा की सराहना की जा सकती है, लेकिन बहुपक्षीय प्रणाली में बहुत लंबे समय तक गतिरोध बने रहने देना भारतीय व्यापारियों और उत्पादकों के लिए खतरनाक है।
विकासशील देशों के नेता के रूप में भारत को दक्षिण अफ्रीका और छोटे द्वीपीय देशों सहित समान विचारधारा वाले देशों का गठबंधन बनाने की पहल करनी चाहिए, जो पश्चिमी प्रस्तावों के लिए समझदार और दूरदर्शी विकल्प पेश कर सकें।