पिछले हफ्ते मंत्रिमंडल ने 75,021 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ प्रधानमंत्री सूर्य घर : मुफ्त बिजली योजना को मंजूरी दी। इस योजना में बिजली की पहुंच और देश की जलवायु परिवर्तन प्रतिबद्धता की पूरी गतिकी को बदल देने की क्षमता है। इस योजना के तहत सरकार 1 किलोवॉट प्रणाली के लिए लागत के 60 फीसदी तक और 2 से 3 किलोवॉट प्रणाली के लिए अतिरिक्त लागत के 40 फीसदी तक की केंद्रीय सहायता प्रदान करेगी, यह सहायता की ऊपरी सीमा होगी।
करीब 1 करोड़ घरों को शामिल करने की संभावना वाली इस योजना के लाभार्थियों को हर महीने 300 यूनिट बिजली मुफ्त दी जाएगी। सरकार का कहना है कि मौजूदा कीमतों के आधार पर देखें तो 1 केवी प्रणाली के लिए 30,000 रुपये और 3 केवी प्रणाली के लिए 78,000 रुपये तक सब्सिडी बनती है।
एक कार्यान्वयन योजना से लैस, जिसमें एक तय राष्ट्रीय पोर्टल पर आवेदन करना और परियोजना को पूरा करने के लिए केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र की आठ इकाइयों को नियुक्त करना शामिल है, नई सूर्य घर योजना पिछली योजनाओं के मुकाबले बेहतर लग रही है।
अगर सरकार ने सक्रियता से इनका समाधान नहीं किया तो पिछली योजना में जो मसले सामने आए वे इस बार भी असर डाल सकते हैं। यह कार्यक्रम मांग आधारित है, इसके लिए एक सरकारी पोर्टल पर आवदेन की जरूरत होगी, ऐसे में सवाल यह है कि सरकार जिस तरह के परिवारों को लक्षित कर रही है-ग्रामीण और/ या गरीब- क्या वे आवेदन करेंगे?
कई अक्षय ऊर्जा कंपनियों ने यह बात उठाई है कि राज्य जिस तरह से अपनी जनता को मुफ्त बिजली मुहैया करा रहे हैं, उसकी वजह से लोग रूफटॉप सौर प्रणाली को अपनाने से हिचकते रहे हैं। जब तक राज्य अपने बिजली सब्सिडी व्यवस्था की गहन समीक्षा नहीं करते, एक ऐसा कदम जो राजनीतिक वजहों से लंबे समय से सुधार से दूर रहा है, हालात में बदलाव नहीं आने वाला।
इसके अलावा सूर्य घर योजना के मुफ्त बिजली वाले हिस्से में यह माना गया है कि रूफटॉप सौर इकाइयां किसी ग्रिड से जुड़ी होंगी जो कि नेट मीटरिंग प्रणाली के जरिये घरों की अतिरिक्त बिजली खरीद लेगी। इसके कारगर होने के लिए दो मसलों का समाधान करने की जरूरत है। पहला यह है कि पहले से ही नकदी की तंगी से जूझ रही राज्यों की वितरण कंपनियां (डिस्कॉम) सौर ऊर्जा को खरीदने के मामले में वित्तीय रूप से विवश ही रहेंगी।
कई डिस्कॉम को नेट मीटरिंग प्रणाली से नुकसान होने की आशंका है, क्योंकि पहले से ही उन्हें परिचालन पर निश्चित लागत को वहन करना पड़ रहा है और वे दीर्घकालिक बिजली खरीद समझौतों (पीपीए) के तहत बिजली उत्पादकों को अनुबंधित शुल्क का भी भुगतान करती हैं।
कई को यह आशंका है कि उपभोक्ताओं को रूफटॉप सौर संयंत्रों से बिजली खरीद के लिए भुगतान करने से उनकी लागत बढ़ जाएगी, खासकर इसलिए कि इस बिजली को दिन के उजाले में हासिल करना होगा, जब टैरिफ आमतौर पर ज्यादा होता है। इससे कीमत निर्धारण की दूसरी समस्या पैदा होगी, जो कि इस वजह से जटिल है कि सौर ऊर्जा का टैरिफ लगातार घट रहा है, यह भी एक वजह है कि जिससे डिस्कॉम सौर ऊर्जा उत्पादकों के साथ पीपीए पर हस्ताक्षर नहीं करना चाहतीं।
ये अड़चनें इस बात की व्याख्या कर सकतीं है कि आखिर क्यों रूफटॉप सौर कार्यक्रम ने, जो कि दिसंबर 2015 से ही चल रहा है, योजना को प्रोत्साहन देने के लिए कई बार बदलाव किए जाने के बावजूद खराब प्रदर्शन किया है।
दिसंबर 2023 तक देश में रूफटॉप सौर ऊर्जा की स्थापित क्षमता सिर्फ 11.08 गीगावॉट की थी, जबकि लक्ष्य 40 गीगावॉट का था। इस क्षमता का करीब 80 फीसदी हिस्सा वाणिज्यिक और औद्योगिक उपभोक्ताओं का था। अभी देश में बहुत कम करीब 6,00,000 घरों ने ही रूफटॉप सौर प्रणाली को अपनाया है। तो जब तक सरकार बिजली वितरण कंपनियों की आपूर्ति और कीमत निर्धारण जैसी संरचनात्मक समस्याओं का समाधान नहीं करती, तब तक 1 करोड़ घरों तक इसे पहुंचाने का लक्ष्य हासिल करना मुश्किल होगा।