भारती एंटरप्राइजेज की अंतरराष्ट्रीय निवेश इकाई ने ब्रिटेन की दूरसंचार कंपनी बीटी ग्रुप में 24.5 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने की घोषणा की है। भारती एंटरप्राइजेज ‘एयरटेल’ ब्रांड नाम से दूरसंचार सेवाओं का संचालन करती है। कंपनी यह हिस्सेदारी दूरसंचार निवेश कारोबार से जुड़ी इकाई एल्टिस से खरीद रही है। एल्टिस पर भारी भरकम कर्ज है और उसे चुकाने में भारी मशक्कत करनी पड़ रही है। एल्टिस ने तीन वर्ष पहले बीटी समूह में निवेश किया था मगर तब से इसके शेयरों का भाव एक तिहाई कम हो गया है।
हिस्सेदारी खरीदने संबंधी इस घोषणा के समय बीटी ग्रुप का मूल्यांकन 17 अरब डॉलर आंका गया था और कुछ ही घंटों में इसमें 7 प्रतिशत इजाफा हो गया। फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि भारती एयरटेल एल्टिस के शेयरों के लिए कितना भुगतान करेगी और यह भी मालूम नहीं है कि इस सौदे के लिए रकम का बंदोबस्त कहां से या किस तरह होगा। भारती एंटरप्राइजेज, खासकर इसकी भारतीय इकाई पूर्व में भारी कर्ज से जूझ चुकी है।
महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि भारती ग्लोबल बीटी में क्यों दिलचस्पी ले रही है? किसी समय बीटी का बड़ा रसूख हुआ करता था और वह एक ऐसे देश की सरकारी कंपनी रह चुकी है जिसकी अर्थव्यवस्था पिछले कई वर्षों से थम गई है या फिसल रही है। कंपनी की तरफ से जारी बयान से भी काफी कम जानकारियां सामने आई हैं।
कंपनी ने इस बात से इनकार किया है कि भारती उस पर पूर्ण नियंत्रण कर लेगी। कंपनी ने इससे भी इनकार कर दिया कि वह निदेशक मंडल में जगह चाह रही है। बीटी और भारती एयरटेल के रिश्ते पुराने हैं। बीटी ने भारती एयरटेल में दो दशकों पहले निवेश किया था। भारती बीटी में 9.99 प्रतिशत हिस्सेदारी तत्काल खरीद लेगी और शेष 14.51 प्रतिशत हिस्से का अधिग्रहण आवश्यक नियामकीय मंजूरी हासिल करने के बाद होगा।
हालांकि, सूक्ष्मता से अध्ययन करने पर पता चलता है कि इस सौदे के पीछे कुछ वाजिब कारण हैं। पहला कारण तो यह है कि कुछ दिनों पहले ब्रिटेन में सत्ता परिवर्तन के बाद एक ऐसी सरकार आई है, जिसका औद्योगिक नीति एवं सार्वजनिक-निजी भागीदारी को लेकर दृष्टिकोण पिछली सरकार से भिन्न है। भविष्य में सरकारी संरक्षण एवं सार्वजनिक निवेश से लाभ के कई अवसर मिल सकते हैं।
बीटी को केवल एक मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनी के रूप में देखना उचित नहीं होगा। बीटी का ओपनरीच पर भी नियंत्रण है, जो ब्रिटेन में ब्रॉडबैंड नेटवर्क का निर्माण करती है। ब्रिटेन में फाइबर बिछाने का काम सुस्त जरूर रहा है, मगर आने वाले वर्षों में इसमें तेजी आने की उम्मीद है क्योंकि नई लेबर पार्टी की सरकार नीतिगत स्तर पर सुधार को अपनी प्राथमिकता मान रही है। इसका उद्देश्य ढांचागत तंत्र का विकास तेजी से आगे बढ़ाना है। फाइबर बिछाने का कार्य तेज होने से ओपनरीच को काफी लाभ पहुंचेगा और इससे बीटी एक फाइबर कंपनी बन जाएगी। इसे ब्रॉडबैंड कारोबार से स्थिर राजस्व भी प्राप्त होने लगेगा।
ब्रिटेन में भारती एयरटेल ऐसे समय में कदम रख रही है जब ब्रिटेन में 5जी सेवा की गुणवत्ता एक राष्ट्रीय बहस का विषय बन गया है। हालांकि, कई लोगों का यह भी कहना है कि राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ब्रिटेन सरकार ने हुआवे के उपकरण दूरसंचार तंत्र में इस्तेमाल नहीं करने का निर्णय लिया है। इसे वहां 5जी सेवा की खराब गुणवत्ता का एक कारण बताया जा रहा है। कारण जो भी हो, मगर सतत एवं विश्वसनीय दूरसंचार सेवा की मांग बढ़ने से उन कंपनियों को सीधा लाभ होगा जो नए 5जी ढांचे में निवेश करने की संभावनाएं तलाश रही हैं।
यह संभव है कि भारती भी ब्रिटेन में अपने लिए संभावनाएं देख रही हैं। उम्मीद तो यही की जानी चाहिए कि ऐसी वास्तविक कारोबारी संभावनाएं इस सौदे का प्रमुख आधार होंगी और भारतीय पूंजी एक बार फिर आवश्यकता से अधिक आशावादी सोच में नहीं फंसेगी, जैसा कि पिछले कुछ सौदों में देखा जा चुका है।