अमेरिका द्वारा व्यापार शुल्क वृद्धि पर स्थगन की 9 जुलाई की समय-सीमा करीब है, लेकिन अब तक यह स्पष्ट नहीं है कि भारत और अमेरिका तय समय में साझा फायदे वाले समझौते पर पहुंच सकेंगे या नहीं। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने गत सप्ताह कहा कि उन्होंने करीब 12 देशों को शुल्क ब्योरे के साथ पत्र लिख दिए हैं जो सोमवार को भेज दिए जाएंगे। ट्रंप ने यह भी कहा कि शुल्क दर काफी अधिक(70 फीसदी तक) हो सकती है और वह 1 अगस्त से लागू होगी। इसका अर्थ यह भी हो सकता है कि 9 जुलाई को तथाकथित जवाबी शुल्क पर स्थगन की अवधि समाप्त होने के बाद भी बातचीत की गुंजाइश बनी रहेगी। एक तरह से इससे यह भी पता चलता है कि परिस्थितियां कितनी जटिल हैं। अमेरिका कई देशों के साथ व्यापार समझौते पर नहीं पहुंच सका है। जब तक स्थगन की अवधि में इजाफा नहीं किया जाता है तब तक अमेरिका की प्रमुख कारोबारी साझेदारों के साथ समझौते में नाकामी वैश्विक अर्थव्यवस्था की अनिश्चितता को बढ़ाएगी।
जहां तक भारत की बात है, अभी यह स्पष्ट नहीं है कि दोनों देशों के बीच समझौता कब तक होगा। जानकारी के मुताबिक भारत के वार्ताकार स्वदेश लौट चुके हैं। इसे संकेत मिलता है कि शायद भारत और अमेरिका 9 जुलाई की तय अवधि के पहले समझौता नहीं कर सकें। खबरें बताती हैं कि अमेरिका कुछ अन्य क्षेत्रों के अलावा कृषि जिंसों के मामले में अधिक बाजार पहुंच की मांग कर रहा है। भारत इन मांगों को लेकर सहज नहीं है। भारत की करीब आधी आबादी अपनी आजीविका के लिए प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से खेती पर निर्भर है। अमेरिका जीन संवर्धित उत्पादों को बढ़ावा देना चाहता है। भारत में इसे लेकर भी चिंताएं व्याप्त हैं। इसके अलावा भी ऐसे क्षेत्र हो सकते हैं जिन्हें लेकर विवाद की स्थिति हो। अमेरिका और वियतनाम के बीच हुए समझौते से कुछ संकेत ग्रहण किए जा सकते हैं। खबरों के मुताबिक यह एकदम एकतरफा समझौता है जिसके तहत अमेरिकी वस्तुएं तो बिना किसी शुल्क के वियतनाम में बेची जाएंगी लेकिन अमेरिका वियतनाम से आयातित वस्तुओं पर 20 फीसदी और ट्रांसशिपमेंट पर 40 फीसदी शुल्क लगाएगा। इस सौदे ने वैश्विक व्यापार समझौतों और स्वीकार्य मानकों को सिर के बल उलट दिया क्योंकि दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था एक अपेक्षाकृत छोटी और विकासशील अर्थव्यवस्था से अपने बाजार को बचाना चाहती है और वहां अपनी वस्तुओं की शुल्क मुक्त पहुंच चाहती है। भारत की अपनी जटिलताएं हैं और वह एक बड़ी अर्थव्यवस्था है इसलिए उसका ऐसी शर्तों को स्वीकार करना मुश्किल है। इस देरी की यह भी एक वजह हो सकती है।
चूंकि बीते तीन महीनों में अमेरिका की ओर से कोई खास प्रगति नहीं हुई है इसलिए नई विश्व व्यवस्था अनिश्चित बनी रहेगी। बहरहाल, यह स्पष्ट है कि अमेरिका उच्च शुल्क लगाएगा जिससे वैश्विक व्यापार की मुश्किलें बढ़ेंगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि भारत और अमेरिका जल्दी ही साझा लाभ वाले समझौते पर पहुंचेंगे। भारत को अन्य कारोबारी साझेदारों के साथ रिश्ते मजबूत करने होंगे। यह न केवल इसलिए जरूरी है कि क्योकि अमेरिका ऐसा कर रहा है बल्कि चीन ने भी यह रुख अपनाया है। वह विनिर्माण और व्यापार में अपने दबदबे का प्रयोग अन्य लक्ष्यों को हासिल करने के लिए कर रहा है। हाल ही में उसने भारतीय मोबाइल विनिर्माण क्षेत्र से अपने कुछ इंजीनियर वापस बुला लिए। जाहिर है वह इस क्षेत्र में भारत की प्रगति को बाधित करना चाहता है।
ऐसे में भारत को न केवल अपनी क्षमताएं बढ़ाने पर विचार करना चाहिए बल्कि समान सोच वाले देशों के साथ काम करके विश्व व्यापार और निवेश के क्षेत्र में नियम आधारित व्यवस्था का भी बचाव करना चाहिए। साफ कहें तो भारत तथा कई अन्य देशों के लिए मौजूदा माहौल में वांछित तेजी से विकास मुश्किल है लेकिन संबद्धता और सहयोग बढ़ाने के तरीके तलाश करने होंगे।