शतरंज विश्व कप में कई युवा भारतीय खिलाड़ियों के प्रदर्शन से संकेत मिलता है कि उनमें दुनिया के श्रेष्ठ खिलाड़ियों को पराजित करने की क्षमता है। लॉन टेनिस के प्रतिष्ठित ग्रैंडस्लैम टूर्नामेंट विंबलडन की शैली में आयोजित इस विश्व कप में चार भारतीय, अंतिम आठ खिलाड़ियों में स्थान बनाने में कामयाब रहे। आर प्रज्ञानंदा ने विश्व के नंबर दो और नंबर तीन खिलाड़ियों को पराजित करके फाइनल में स्थान बनाया जहां उन्हें विश्व के शीर्ष खिलाड़ी मैग्नस कार्लसन के हाथों हार का सामना करना पड़ा।
प्रज्ञानंद ने अंतिम आठ के दौर में एक जबरदस्त मुकाबले में एक अन्य भारतीय अर्जुन एरिगैसी को पराजित किया था। उधर एक अन्य भारतीय डोम्मराजू गुकेश कार्लसन से हारे तथा विदित गुजराती ने बाहर होने से पहले विश्व के पांचवीं वरीयता वाले खिलाड़ी को परास्त किया। यह प्रदर्शन संयोगवश नहीं हुआ। भारत ने शतरंज के खेल के लिए एक पूरी व्यवस्था बनाई है जिसके अंतर्गत चैंपियन खिलाड़ियों की पहचान की जाती है और उन्हें तैयार किया जाता है।
इसके पीछे कई कारकों का मिश्रण उत्तरदायी है। उदाहरण के लिए, भारत में बहुत बड़ी तादाद में नियमित रूप से शतरंज खेलने वाले खिलाड़ी हैं और उनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। स्थानीय स्तर पर शतरंज की कई प्रतियोगिताएं होती हैं जो उन्हें अपना कौशल सुधारने का मौका देती हैं।
इससे उन्हें अपने खेल के बारे में दूसरों की राय भी मिलती है। इस खेल की लोकप्रियता की वजह से कई कंपनियां भी प्रतियोगिताओं का प्रायोजन करने में रुचि रखती हैं और प्रशिक्षण शिविरों का खर्च वहन करती हैं। इसके अलावा केंद्र तथा विभिन्न राज्यों की सरकारों ने भी निरंतर सुविधाएं तथा वित्तीय मदद देने की इच्छाशक्ति दिखाई है। कुछ वैश्विक तकनीकी रुझान भी भारत के शतरंज खिलाड़ियों के अनुकूल हैं।
इस खेल की डिजिटल छाप बहुत तगड़ी है जिसमें महामारी के बाद बहुत तेजी से इजाफा हुआ है। अब ऑनलाइन तरीके से किसी भी समय कड़े प्रतिस्पर्धियों के विरुद्ध शतरंज खेलना संभव है। इस तरीके से न केवल धनराशि जीती जा सकती है बल्कि ऑनलाइन स्ट्रीमिंग करके भी धन कमाया जा सकता है। भारत की आबादी के पास बड़ी तादाद में स्मार्ट फोन हैं और साथ ही डेटा प्लान भी काफी सस्ते हैं।
ऐसे में भारतीय खिलाड़ियों खासकर छोटे शहरों में रहने वाले खिलाड़ियों को मजबूत विरोधियों के साथ खेलने और जरूरी जूम कोचिंग की सुविधा मिली हुई है। इसके परिणामस्वरूप नाशिक, गुंटूर, वारंगल और त्रिशूर जैसे छोटे शहरों के प्रतिभावन खिलाड़ी बड़े शहरों के खिलाड़ियों के साथ खेल पाते हैं।
शतरंज के डिजिटलीकरण ने सूचना तक पहुंच को भी समान बनाया है और भारत को इसका फायदा मिला है। लाखों-करोड़ों मुकाबलों के आंकड़े उपलब्ध हैं और शतरंज के मुकाबलों को तत्काल डाउनलोड किया जा सकता है। स्मार्टफोन पर किए जाने वाले विश्लेषण भी बहुत उच्च गुणवत्ता वाले होते हैं। इसके परिणामस्वरूप अगर किसी खिलाड़ी के पास वास्तविक प्रशिक्षक नहीं है तो भी वह अपने कौशल में सुधार ला सकता है।
इसके अलावा भारत में बहुत अच्छे शतरंज प्रशिक्षक हैं और उनकी तादाद लगातार बढ़ रही है। शीर्ष पर आर बी रमेश और विश्वनाथन आनंद जैसे खिलाड़ी मौजूद हैं जो प्रज्ञानंद और गुकेश जैसे खिलाड़ियों को जरूरी सलाह देते हैं। शायद इससे भी अहम बात यह है कि ऐसे शतरंज प्रशिक्षक भी हैं जो शुरुआत कर रहे खिलाड़ियों को बुनियादी सबक देते हैं।
ऐसे प्रशिक्षक हर जगह मौजूद हैं। इतना ही नहीं चूंकि यह खेल ध्यान केंद्रित करने और तार्किक सोच विकसित करने में मददगार माना जाता है इसलिए कई स्कूल पाठ्यक्रम के अलावा शतरंज को बढ़ावा देते हैं। यह भी एक वजह है कि गत वर्ष 10,000 खिलाड़ियों ने आधिकारिक प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया और संभव है कि आने वाले दिनों में इनकी संख्या और बढ़े।
देश के तमाम अन्य खेल संघों की तरह अखिल भारतीय शतरंज महासंघ भी कानूनी मामलों और स्कैंडलों में उलझता रहा है। बहरहाल तमाम खामियों के बावजूद इसके पदाधिकारियों ने इस खेल को बढ़ावा देने के लिए उचित माहौल तैयार किया है। उन्हें इसका श्रेय मिलना ही चाहिए।