चंद्रयान-3 मिशन के विक्रम लैंडर का चांद पर सफलतापूर्वक उतरना भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की तकनीकी क्षमताओं का प्रभावी प्रदर्शन है। इस सफलता के साथ ही भारत चौथा ऐसा देश बन गया है जिसने चंद्रमा की सतह पर नियंत्रित ढंग से उतरने में कामयाबी हासिल की है। यह बात खासतौर पर उत्साहित करने वाली है क्योंकि चंद्रयान-2 की क्रैश लैंडिंग के कारण हमें आंशिक विफलता का सामना करना पड़ा था और हाल ही में रूस का चंद्रमा पर पहुंचने का अभियान विफल हो गया था।
चंद्रयान-3 मिशन के अगले चरण में प्रज्ञान रोवर को विक्रम लैंडर से बाहर निकाला जाएगा। इससे पहले करीब चार-पांच घंटे तक लैंडर स्थानीय हालात और अपनी प्रणालियों की जांच करेगा। प्रज्ञान को एक रैंप की मदद से उतारा जाएगा और उसके बाद वह चांद के दक्षिणी ध्रुव पर कुछ प्रयोगों को अंजाम देगा। गौरतलब है कि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर इससे पहले कोई नहीं पहुंचा था।
अनुमान है कि यह सतह पर मिट्टी और प्लाज्मा के घनत्व का विश्लेषण करेगा, सतह के नीचे के ताप संचालन का संभावित अध्ययन करेगा और स्थानीय भूकंप संबंधी हालात का अध्ययन करेगा। इसके साथ ही वह पृथ्वी और चंद्रमा की कक्षाओं से संबंधित अध्ययन भी करेगा। अनुमान है कि रोवर अगले पखवाड़े तक यानी एक चंद्र दिवस तक सक्रिय रहेगा और इसके अध्ययनों के परिणाम चांद के बारे में हमारी जानकारी में इजाफा करेंगे।
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आकाश से जुड़ी वैज्ञानिक जानकारियों के अलावा ऐसे मिशनों के लिए विकसित की गई तकनीकी क्षमता आमतौर पर धरती पर भी प्रभावी ढंग से इस्तेमाल होती है। इसरो के पिछले अभियानों में हम ऐसा होते देख चुके हैं। हमारी अंतरिक्ष एजेंसी कई वाणिज्यिक उपयोग वाली सेवाएं भी मुहैया कराती है। इसरो भारतीय संचार अधोसंरचना में अहम हिस्सेदार है। यह मौसम सेवाओं, भौगोलिक और जियो मैपिंग सूचनाओं के बारे में भी अहम जानकारी मुहैया कराता है। इसके अलावा यह उपग्रह प्रक्षेपित करने के मामले में भी वाणिज्यिक रूप से भी सफल और किफायती है।
एजेंसी ने टेलीमेट्री और टेलीकमांड सिस्टम्स, पावर सिस्टम्स और प्रबंधन, ऑन बोर्ड कंप्यूटर्स, नेविगेशन, रेडियेशन से बचाव, ताप से बचाव, प्रोपल्स सिस्टम आदि को लेकर जो क्षमताएं तैयार की हैं वे भविष्य में बहुत उपयोगी साबित होंगी। उदाहरण के लिए यह लैंडिंग लगभग स्वचालित थी। चंद्रमा भारत से 1.5 लाइट सेकंड दूर है (प्रकाश एक सेकंड में तीन लाख किलोमीटर का सफर करता है), ऐसे में अंतिम चरण की लैंडिंग को धरती से नियंत्रित करना लगभग असंभव है।
भारत की अंतरिक्ष नीतियों में हुए सुधार का एक अर्थ यह भी है कि बड़ी तादाद में निजी कंपनियों ने इस मिशन में योगदान किया। इसका अर्थ यह हुआ कि कई भारतीय कंपनियों ने पहले ही उन्नत तकनीक को लेकर काम किया है और ताकि वे चंद्रयान-3 के लिए कलपुर्जे आदि तैयार कर सकें। इसके अलावा सैद्धांतिक तौर पर भी इसरो अपने इस मिशन तथा अन्य मिशनों से अर्जित बौद्धिक संपदा और ज्ञान को साझा करेगा। इसका अर्थ यह हुआ कि निजी कंपनियों की क्षमता और बढ़ेगी।
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पहले ही करीब 400 भारतीय स्टार्टअप अंतरिक्ष पर केंद्रित हैं जबकि कई बड़ी कंपनियां मसलन लार्सन ऐंड टुब्रो, पारस डिफेंस, भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड, गोदरेज ऐंड बॉयस तथा एचएएल आदि ने भी इस मिशन में योगदान किया तथा सूचीबद्ध कंपनियों के शेयरों की कीमत में उछाल आई।
निजी क्षेत्र और इसरो के बीच आगे और सहयोग से इन कंपनियों को वैश्विक अंतरिक्ष उद्योग में नए अवसरों का लाभ लेने का मौका मिलेगा और इस तकनीकी क्षमता प्रदर्शन के बाद इसरो की बाजार हिस्सेदारी भी बढ़ सकती है। यह बात अहम हो सकती है क्योंकि वैश्विक अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी कारोबार में इसरो की हिस्सेदारी बमुश्किल दो फीसदी है।
इस बात की अनदेखी नहीं होनी चाहिए कि इनमें से कई तकनीकों का इस्तेमाल रक्षा क्षेत्र में हो सकता है। यह बात रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के कार्यक्रम को गति देगी। इस तरह की सफलता से उत्पन्न उत्साह को कम करके नहीं आंका जाना चाहिए। कई स्कूली बच्चे होंगे जिन्होंने इस मिशन को देखा होगा और उनमें से कुछ यकीनन भविष्य में विज्ञान विषय में प्रवीणता हासिल करने के लिए प्रेरित हुए होंगे।