इस समय निवेशक एक खास दुविधा से गुजर रहे है। भारत की बड़ी तस्वीर शायद ही इससे बेहतर नजर आई हो। उभरते बाजारों के कमजोर प्रदर्शन के दौर में भारत हर वृहद मानक पर बेहतर नजर आ रहा है। फिर चाहे बात शीर्ष से नीचे तक के वृहद आर्थिक आंकड़ों की हो, चालू खाते के घाटे की, राजकोषीय नीति की, रुपये की या कॉर्पोरेट आंकड़ों की, उत्साह और आत्मविश्वास की वजह स्पष्ट है। आंकड़े अच्छे हैं तथा वे और बेहतर होते जा रहे हैं।
दूसरी कोई बड़ी उभरती अर्थव्यवस्था वाला देश ऐसा नहीं है जिसका सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 6 फीसदी की दर से बढ़ा हो वह भी पश्चिम के आर्थिक माहौल से बेपरवाह अच्छी खासी अवधि तक। कोई अन्य ऐसी उभरती अर्थव्यवस्था भी नहीं है जिसने बीते पांच वर्ष का समय कॉर्पोरेट और बैंकिंग की बैलेंस शीट बेहतर बनाने में बिताया हो। कॉर्पोरेट के आत्मविश्वास और निजी पूंजीगत व्यय के चक्र की बात करें तो उनमें सुधार होता दिख रहा है। सापेक्षिक नजरिये से देखें तो उभरते बाजारों में बड़ी पूंजी लगाने की दृष्टि से सीमित विकल्प हैं।
भूराजनीति भी कभी इतनी अनुकूल नहीं रही थी और भारत के पास आखिरकार यह मौका है कि वह एक विश्वसनीय विनिर्माण गाथा तैयार कर सके। आज भारत पहले की तुलना में कहीं अधिक प्रासंगिक है, लगभग हर उत्पाद के मामले में वह शीर्ष 10 बाजारों में शामिल है। तेजी से विकसित होता हुआ भारत चीन का विकल्प बनने की दिशा में बढ़ रहा है।
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सबसे पहले, हमें सावधान रहना होगा कि हम तेजी के माहौल के शिकार न हो जाएं। भारत के सामने अभी भी कई चुनौतियां हैं और किसी देश के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है कि वह दशक भर तक 6-7 फीसदी की दर से वृद्धि हासिल करता ही रहेगा। हमारा प्रतिव्यक्ति जीडीपी दुनिया में 127वें नंबर पर है। ऐसे में नीतिगत मोर्चे पर कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है। जलवायु परिवर्तन और प्रतिस्पर्धी लोकलुभावनवाद दोनों ही हमारी संभावनाओं को क्षति पहुंचा सकते हैं। मैंने जितने निवेशकों से बात की उनके लिए नए विचार तलाश करना कठिन था। बाजार महंगे हैं और सुपरिचित तथा अच्छी गुणवत्ता वाले शेयरों की स्थिति और खराब है।
हर वक्त शेयरों को लेकर कोई न कोई ऐसा विचार होता ही है जो रोचक हो और हमेशा ऐसी कंपनियां भी होती हैं जिनके बारे में लोगों को पता नहीं होता। परंतु व्यापक बाजार भी कोई स्पष्ट गलत मूल्यांकन नहीं दर्शा रहे हैं। हमें यह जानना होगा कि भारत में यह आत्मविश्वास है कि वह धारा के खिलाफ जा सके और अनदेखे क्षेत्रों, शेयरों का रुख कर सके। ऐसे समय में एक निवेशक को क्या करना चाहिए? क्या केवल नकदी जुटानी चाहिए, बाजार के अनुकूल होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए, और प्रवेश के बेहतर समय की प्रतीक्षा करनी चाहिए?
भारत की गति और उसे लेकर बन रहे उत्साह के बीच अगर निकट भविष्य में बाजार में सुधार नहीं हुआ तो? बीते दो वर्षों में 40 अरब डॉलर की विदेशी बिकवाली हुई है। इसके बावजूद स्थानीय मुद्रा के संदर्भों में शायद ही गिरावट हुई हो। मजबूत घरेलू आवक को देखते हुए शायद सुधार हो लेकिन यह जब भी होगा तब यह तीव्र और सहज होगा या ऊंचे स्तर से होगा। क्या आप इतने चतुर होंगे कि अवसर का लाभ ले सकें?
अगर आप अभी बिक्री करें तो क्या आपमें इतनी भावनात्मक मजबूती होगी कि आप उन शेयरों को बढ़ी हुई कीमतों पर दोबारा खरीद सकें? नई पूंजी लगाने के लिए धैर्यवान होने और प्रतीक्षा करने की बात को समझा जा सकता है लेकिन क्या आप वाकई इस अनुमान पर नकदी जुटाना चाहेंगे कि बाजार बिकवाली करेगा?
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बहुत बड़ी पूंजी ऐसी है जो बाजार में गिरावट की प्रतीक्षा कर रही है और यह सिलसिला महीनों से चल रहा है। जब हर कोई गिरावट की प्रतीक्षा करता है तो यह कम ही आती है। संभव है हमें सुदृढ़ीकरण देखने को मिले लेकिन बाजार में शायद उतनी गिरावट नहीं आए या फिर विस्तारित अवधि तक ऐसा न हो। सवाल कई हैं जवाब नदारद।
यह संभव है कि हम बड़ी तस्वीर पर नजर ही नहीं डाल पा रहे हों। मूल्य संबंधी कदम व्यापक और स्वस्थ हैं। बाजार का उभार अत्यधिक घनीभूत या असंतुलित नहीं है। मूल्यांकन को समझा जा सकता है और अगर हम यह मानें कि भारत तेजी के एक और दौर में प्रवेश कर रहा है तो वह उचित भी है। बीते कुछ वर्षों के दौरान कॉर्पोरेट भारत ने लागत कटौती की है और परिचालन को बेहतर बनाने में समय लगाया है। इस समय हम क्षमता के इस्तेमाल की दृष्टि से बेहतरीन स्थिति में हैं जहां वृद्धिकारी राजस्व का बड़ा हिस्सा निचले स्तर तक जाता है।
बाजार हमें बता रहा है कि हम उच्च और मजबूत आय की ओर हैं। चूंकि हम पिछले दशक में कमजोर आय आपूर्ति को झेलकर आए हैं इसलिए हमारे लिए यह मॉडल नहीं हो सकता है। हम तभी यकीन करेंगे जब यह घटित होगा। बाजार ऐसी स्थिति में हैं जहां अगर हम आय में सुधार के प्रमाण की प्रतीक्षा करेंगे तो बहुत देर हो जाएगी।
एक और सिद्धांत यह हो सकता है कि अब हर वर्ष घरेलू निवेशक 40 अरब डॉलर की राशि शेयर बाजार में डालने की प्रतिबद्धता जता रहे हैं। इनमें बीमा, पेंशन और भविष्य निधि शामिल हैं। यह पैसा देश से बाहर नहीं जा सकता है और शेयर चयनित परिसंपत्ति वर्ग के रूप में अपना मजबूत स्थान बना चुके हैं।
परिवारों की बचत के साथ यह आंकड़ा बढ़ता जाएगा। इससे स्थायी स्तर पर मूल्यांकन में सुधार होगा। हम अन्य उभरते बाजारों में ऐसा घटित होते देख चुके हैं। जब तक घरेलू शेयर जारी करने की गति तेज नहीं होती है हम अतिरिक्त मांग की स्थिति में रहेंगे। यह भ्रम की स्थिति है और अधिकांश निवेशक अपनी मौजूदा स्थिति से खुश हैं। यह बात उच्च गुणवत्ता वाली कंपनियों के मूल्यांकन को और बढ़ाने वाली है।
निवेशकों को एक गलती करने से बचना चाहिए और वह यह है कि उन्हें सस्ते मूल्यांकन की तलाश में खराब गुणवत्ता के शेयरों का चयन नहीं करना चाहिए। हम सभी यह गलती करते हैं। सस्ते और कमजोर शेयरों को खरीदना आमतौर पर सही साबित नहीं होता है और निवेशक ऐसी स्थिति में उलझकर रह जाता है जहां वह खुद यकीन नहीं कर पाता है।
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बाजार के ऐसे क्षेत्रों की तलाश की जा सकती है जिनकी अनदेखी की गई हो और जो बीते एक या दो वर्षों से कमजोर प्रदर्शन कर रहे हों लेकिन उनका शुमार बेहतर कारोबार में होता हो। ऐसे में अल्पावधि की नकारात्मक अवधारणा की अनदेखी की जा सकती है। हम मिड कैप या स्मॉल कैप से भी दूरी बना सकते हैं जहां मूल्यांकन का नाटकीय ढंग से विस्तार हुआ है।
जो नए आरंभिक सार्वजनिक पेशकश (आईपीओ) आ रहे हैं उनमें से कई में अवसर निहित हैं क्योंकि वे अच्छे कारोबार हैं। कई मामलों में उनका मूल्यांकन भी एकदम तार्किक स्तर पर है जहां अच्छा खासा आवंटन हासिल किया जा सकता है। चूंकि अधिकांश आईपीओ मूल्य तैयार नहीं करते हैं इसलिए हमें यहां काफी भेद करना पड़ सकता है।
अधिकांश घरेलू और वैश्विक निवेशक भारत की दीर्घकालिक गाथा को लेकर कभी इतने अधिक यकीन से भरे हुए नहीं थे। उन सभी की यह शिकायत होती है कि आखिर समुचित मूल्यांकन वाले तरीके से पूंजी का निवेश कहां किया जाए।
बेहतरीन कारोबारों पर ध्यान केंद्रित करने की बात करें तो वे मजबूत कंपनियों में अपनी होल्डिंग बरकरार रख रहे हैं। वे उन क्षेत्रों में बिकवाली कर रहे हैं जहां उनका यकीन कमजोर है या फिर जिनकी प्रकृति चक्रीय है। वे बेहतरीन कारोबारों की ओर खुद को केंद्रित कर रहे हैं जहां अगर बाजार में गिरावट भी आती है तो वे उसमें कुछ जोड़ ही सकें। कई लोग मिड कैप को लेकर बने माहौल का इस्तेमाल पुरानी गलतियों से निजात पाने के लिए कर रहे हैं जहां उन्हें दूसरा अवसर मिला है।
(लेखक अमांसा कैपिटल से संबद्ध हैं)