भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने इस हफ्ते ‘भारत में बैंकिंग की रुझान एवं प्रगति रिपोर्ट 2022-23’ जारी की जिसमें सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह निकल कर आई है कि देश का बैंकिंग क्षेत्र पिछले एक दशक के किसी भी समय की तुलना में सबसे बेहतर स्थिति में है। बैंकों की सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (जीएनपीए) यानी कुल फंसा कर्ज 10-वर्ष के निचले स्तर पर है।
मार्च 2023 के अंत में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के लिए जीएनपीए घटकर 3.9 प्रतिशत हो गई और सितंबर 2023 के अंत में यह और कम होकर 3.2 प्रतिशत के स्तर पर चली गई। इस तथ्य पर गौर करना महत्त्वपूर्ण है कि पिछले दशक के शुरुआती वर्षों के दौरान वृहद आर्थिक परिस्थितियों और लचीले ऋण मानकों के कारण भारतीय बैंकिंग प्रणाली पर काफी दबाव बनने लगा था।
बैंकिंग तंत्र में दबाव और कंपनियों की बैलेंसशीट में ऋण का अधिक हिस्सा होने के कारण निजी निवेश प्रभावित हुआ और इसका असर समग्र आर्थिक वृद्धि पर भी पड़ा। अब कॉरपोरेट और बैंक बैलेंसशीट दोनों ही बेहतर स्थिति में हैं, ऐसे में निवेश से जुड़ी स्थितियां अधिक अनुकूल हो गई हैं।
कारोबारी प्रदर्शन के संदर्भ में भी देखा जाए तो वर्ष 2022-23 में बैंक बैलेंसशीट में 12.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई और इस तरह इसमें नौ वर्षों में सबसे तेज वृद्धि दर दर्ज की गई है। ऐसा ऋण वितरण में आई तेज वृद्धि के कारण हुआ जो एक दशक में सबसे अधिक है। जमाओं की वृद्धि की रफ्तार भी बढ़ी, लेकिन यह ऋण वृद्धि से धीमी थी जिसके परिणामस्वरूप बाजार से उधार लेना पड़ा।
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बैंकिंग क्षेत्र के प्रमुख संकेतक बेहतर स्थिति में दिख रहे हैं लेकिन नियामक कुछ हद तक असुरक्षित ऋण की वृद्धि को लेकर चिंतित है। आरबीआई के अनुसार, असुरक्षित अग्रिम ऋण का हिस्सा मार्च 2015 से बढ़ रहा है और यह मार्च 2023 में 25.5 प्रतिशत के स्तर तक पहुंच गया। नतीजतन, आरबीआई ने नवंबर में उपभोक्ता ऋण की कुछ श्रेणियों के लिए जोखिम भार बढ़ा दिया ताकि ऐसे ऋण की वृद्धि नियंत्रित की जा सके।
गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के असुरक्षित ऋण में भी तेजी देखी गई। इसके परिणामस्वरूप, असुरक्षित ऋणों का हिस्सा मार्च 2023 के अंत में 30 प्रतिशत से अधिक बढ़ गया जबकि पिछले वर्ष यह 27.6 प्रतिशत था। बैंकों और एनबीएफसी दोनों के असुरक्षित ऋण में वृद्धि पर ध्यान दिए जाने के साथ ही दोनों के परस्पर संबंध पर भी गौर करने की आवश्यकता है। वर्ष 2022-23 में एनबीएफसी क्षेत्र के लिए बैंक ऋण, प्रमुख फंडिंग का स्रोत बन गया। अहम बात यह है कि एनबीएफसी न केवल बैंकों से सीधे उधार लेते हैं, बल्कि बैंक, एनबीएफसी द्वारा जारी ऋण योजनाएं भी खरीदते हैं।
बैंकों और एनबीएफसी दोनों के असुरक्षित ऋण में वृद्धि और इसके बीच दिखते संबंध वास्तव में दबाव के इस दौर में प्रणालीगत जोखिम बढ़ा सकते हैं। हालांकि रिपोर्ट में बताया गया है कि वैश्विक स्तर पर बैंक, गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों से ऋण लेते हैं और दोनों के बीच अंतर्संबंध भी अब कम हो रहा है। लेकिन भारत में परिस्थितियां बिल्कुल उलट हैं।
निश्चित रूप से, एनबीएफसी उन कारोबारों और उपभोक्ताओं को ऋण देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जिन्हें बैंकिंग प्रणाली से यह मदद नहीं मिल पाती है। हालांकि, प्रणालीगत जोखिम से बचने के लिए एनबीएफसी की फंडिंग की बारीकी से निगरानी करने की जरूरत है।
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भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण पहलू यह भी है कि सरकारी बैंकों की पकड़ लगातार ढीली पड़ रही है। पिछले वित्त वर्ष में कुल बैंक बैलेंसशीट में सरकारी बैंकों की हिस्सेदारी एक प्रतिशत अंक कम होकर 57.6 प्रतिशत हो गई, वहीं निजी बैंकों की हिस्सेदारी धीरे-धीरे बढ़ी है।
इसके अलावा, कुल बैंक बैलेंसशीट में बहुत छोटी हिस्सेदारी के बावजूद, निजी बैंक अधिक मुनाफा देने में सफल हैं। यह दर्शाता है कि निजी क्षेत्र के बैंक अधिक प्रतिस्पर्धी हैं और आने वाले वर्षों में उनकी बाजार हिस्सेदारी बढ़ने की संभावना है।