मुंबई में हुए बिज़नेस स्टैंडर्ड बीएफएसआई समिट 2025 में अर्थशास्त्रियों ने कहा कि 10 साल पहले जो महंगाई नियंत्रण की नीति (Inflation Targeting Framework) शुरू हुई थी, उसने भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाया है। इस नीति की वजह से महंगाई (Inflation) यानी चीजों के दाम तेजी से बढ़ने पर काबू पाया गया, और आरबीआई की साख भी लोगों में बढ़ी है। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि अब इस नीति में बड़े बदलाव की जरूरत नहीं है, बस इसे थोड़ा आसान बनाया जाए ताकि यह नई परिस्थितियों के अनुसार काम कर सके।
इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टिट्यूट में प्रोफेसर चेतन घाते ने कहा कि इस नीति को उसकी विश्वसनीयता से परखा जाना चाहिए। पहले आरबीआई बहुत सारे अलग-अलग आंकड़े देखता था, जिससे बाजार को साफ समझ नहीं आता था कि बैंक क्या करना चाहता है। लेकिन अब सबको पता है कि आरबीआई का मुख्य लक्ष्य महंगाई को कंट्रोल में रखना है। इससे बाजार को भरोसा मिला है और आरबीआई की छवि मजबूत हुई है। उन्होंने बताया कि अब बॉन्ड के रेट और दूसरे आर्थिक संकेत स्थिर हैं। साथ ही, सामान्य महंगाई (हेडलाइन इंफ्लेशन) और मुख्य महंगाई (कोर इंफ्लेशन) में अब ज्यादा फर्क नहीं है।
घेते ने कहा, “पिछले दस सालों में यह नीति काफी सफल रही है और अभी इसमें बड़े बदलाव की जरूरत नहीं है।”
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चेतन घाते ने कहा कि पहले यह सवाल था कि क्या कोर महंगाई (जिसमें खाने-पीने और तेल जैसी चीज़ों के दाम शामिल नहीं होते) को मुख्य लक्ष्य बनाया जाए। लेकिन अब शोध से पता चला है कि कोर महंगाई भी अब हेडलाइन महंगाई (जिसमें सभी चीजों के दाम शामिल होते हैं) की दिशा में बढ़ रही है। इसलिए दोनों के बीच अब ज्यादा फर्क नहीं बचा है।
इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च की प्रोफेसर अशीमा गोयल ने कहा कि हेडलाइन महंगाई पर ध्यान देना बहुत जरूरी है, क्योंकि यह सीधे आम लोगों की जिंदगी और खर्चों से जुड़ी होती है। उन्होंने कहा, “महंगाई को काबू में रखने की यह नीति अब तक सही रही है, लेकिन इसे अब थोड़ा बदलकर आसान और समय के अनुसार बनाया जाना चाहिए।”
गोयल ने कहा कि अब जरूरत है कि महंगाई का सही अंदाज़ा लगाया जाए, ताकि पहले से तैयारी की जा सके। साथ ही, बाजार में पैसों की मात्रा (liquidity) को ठीक तरह से संभालना चाहिए, ताकि न तो बहुत ज्यादा पैसा घूमे और न बहुत कम।उन्होंने यह भी कहा कि सरकार की आर्थिक नीतियों और आरबीआई की मौद्रिक नीति के बीच अच्छा तालमेल होना चाहिए, ताकि दोनों मिलकर अर्थव्यवस्था को स्थिर रख सकें।
सेंटर फॉर सोशल एंड इकनॉमिक प्रोग्रेस के सीनियर फेलो और पूर्व आरबीआई अधिकारी जनक राज ने कहा , 2016 में शुरू हुआ महंगाई नियंत्रण का लचीला ढांचा काफी असरदार रहा है। उन्होंने बताया कि 2019 तक औसत महंगाई करीब 4% रही, जो आरबीआई के लक्ष्य के हिसाब से थी।
राज ने कहा कि कोविड महामारी, रूस-यूक्रेन युद्ध और सप्लाई चेन की दिक्कतों के बाद हालात बदल गए थे। तब आरबीआई ने अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए कुछ समय के लिए लक्ष्य से ज्यादा महंगाई को मंजूर किया, ताकि देश की अर्थव्यवस्था को सहारा मिल सके।
उन्होंने कहा कि थोड़ा ढील जरूरी थी, क्योंकि इससे देश की अर्थव्यवस्था को संभालने में मदद मिली। राज ने कहा कि महंगाई के लक्ष्य (inflation target) को कम करने की जरूरत नहीं है। लेकिन अगर लंबे समय तक महंगाई बहुत कम रहती है, तो टॉलरेंस बैंड (यानी महंगाई की तय सीमा) पर दोबारा विचार किया जा सकता है।
आईआईएम कोझिकोड के प्रोफेसर मृदुल कुमार सागर ने कहा कि भारत की महंगाई नियंत्रण की यात्रा को तीन चरणों में बांटा जा सकता है। पहले चरण में, 2008 के बाद जब महंगाई 10-11% थी, तो आरबीआई ने इसे धीरे-धीरे घटाकर 2019 तक लक्ष्य के आसपास (करीब 4%) ला दिया। दूसरे चरण में कोविड और युद्ध जैसे झटके आए, जिससे महंगाई बढ़ी, लेकिन सरकार और आरबीआई ने लोगों की नौकरियां और जिंदगी बचाने को प्राथमिकता दी। उन्होंने कहा, “इतनी बड़ी चुनौतियों के बावजूद भारत ने महंगाई को काफी हद तक संभाला। यह एक बड़ी सफलता है।”
पैनल के सभी विशेषज्ञों ने माना कि मौद्रिक नीति समिति (MPC) की मौजूदा व्यवस्था ठीक से काम कर रही है। लेकिन आरबीआई गवर्नर की वीटो पावर (Veto Power) – यानी किसी फैसले को अंतिम रूप से मानने या रोकने का अधिकार, पर अब भी बहस जारी है।
अशीमा गोयल ने कहा कि वीटो पावर बनी रहनी चाहिए, बस समिति की चर्चाएं और ज्यादा खुली (ओपन) होनी चाहिए ताकि सबकी राय साफ दिखे। जनक राज ने कहा कि मौद्रिक नीति से जुड़ी सारी जानकारी पहले से ही जनता के सामने होती है, इसलिए यह व्यवस्था पहले से ही पारदर्शी (transparent) है। वहीं, मृदुल सागर ने चेतावनी दी कि अगर वीटो पावर हटाने की बात की जाती है, तो बाहरी सदस्यों को पूरा सहयोग और जरूरी डेटा देना होगा। नहीं तो यह बदलाव उल्टा असर डाल सकता है।