भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति इस समय नीति की समीक्षा कर रही है और शुक्रवार को अपने निर्णय की घोषणा करेगी। संभव है कि उसे पता चला होगा कि मुद्रास्फीति के कुछ कारकों में परिवर्तन आ रहा है।
सब्जियों की कीमतें, खासकर टमाटर की कीमतों में गिरावट आई है जबकि अन्य खाद्य पदार्थों की कीमतों में इजाफा हुआ है। इस बीच कच्चे तेल की कीमतों में पिछली नीतिगत बैठक के बाद से अब तक काफी तेजी देखने को मिली है और अनुमान है कि आने वाले समय में भी वे ऊंचे स्तर पर बनी रहेंगी।
हालांकि कच्चे तेल की कीमतों में इजाफा शायद मुद्रास्फीति की दर में तत्काल इजाफे की वजह न बने क्योंकि तेल विपणन कंपनियों ने अंतरराष्ट्रीय कीमतों में हो रहे बदलाव के मुताबिक समायोजन करना बंद कर दिया है लेकिन कुछ असर तो फिर भी महसूस होगा। उदाहरण के लिए वाणिज्यिक घरेलू गैस सिलिंडर की कीमतों में रविवार को इजाफा किया गया।
हालांकि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति की दर अगस्त में कुछ कम होकर 6.83 फीसदी रही जबकि जुलाई में यह 7.44 फीसदी के साथ 15 महीने के उच्चतम स्तर पर थी। इस कमी के बावजूद यह दर रिजर्व बैंक द्वारा तय दायरे की ऊपरी सीमा से काफी अधिक है।
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अधिकांश विश्लेषकों का मानना है कि मौद्रिक नीति समिति नीतिगत रीपो दर में कोई बदलाव नहीं करेगी। मौजूदा चक्र में इस नीतिगत दर में अब तक 2.5 फीसदी का इजाफा किया गया है और वह अभी व्यवस्था में अपना काम कर रही है और निकट भविष्य में मुद्रास्फीति की दर में उल्लेखनीय कमी आती नहीं दिखती। उच्च खाद्य मुद्रास्फीति अब तक सामान्यीकृत नहीं हुई है और जोखिम बरकरार है।
अगस्त माह में खाद्य मुद्रास्फीति दो अंकों के करीब थी और मॉनसून के कमजोर होने के कारण जोखिम बढ़ गया है। कमजोर मॉनसून न केवल खरीफ के फसल उत्पादन को प्रभावित कर सकता है बल्कि रबी की फसल को भी प्रभावित कर सकता है क्योंकि देश के कई इलाकों में पानी की कमी हो जाएगी। हालांकि कोर मुद्रास्फीति में कमी आई है लेकिन हेडलाइन दरों के कारण नीतिगत चयन मुश्किल हो सकता है।
मुद्रास्फीति संबंधी परिदृश्य और पूर्वानुमान को मद्देनजर रखते हुए यह देखना दिलचस्प होगा कि मौद्रिक नीति समिति चालू वित्त वर्ष के लिए 5.4 फीसदी के अपने मुद्रास्फीति संबंधी पूर्वानुमान को संशोधित करती है या नहीं। उदाहरण के लिए विश्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष के लिए मुद्रास्फीति के अपने पूर्वानुमान को 5.2 फीसदी से बढ़ाकर 5.9 फीसदी कर दिया। यह दर रिजर्व बैंक द्वारा तय दायरे की ऊपरी सीमा के निकट है। चार फीसदी के घोषित लक्ष्य से तो यह बहुत अधिक है।
मौद्रिक नीति समिति ने अब तक खाद्य मुद्रास्फीति पर आधारित हेडलाइन दरों में इजाफे को देखने का निर्णय लिया है। बहरहाल, मुद्रास्फीति संबंधी पूर्वानुमान में संशोधन के बाद इजाफा होने की स्थिति में समिति को इस सप्ताह नहीं तो आने वाली बैठकों में जरूर नीतिगत कदम उठाने होंगे। सैद्धांतिक तौर पर देखा जाए तो सब्जियों की कीमतों के कारण बने दबाव की अनदेखी करनी चाहिए क्योंकि यह दबाव कम समय में ही कम हो जाता है।
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बहरहाल, आपूर्ति क्षेत्र के जोखिम को देखते हुए अनाज और अन्य उत्पादों का दबाव सामान्य होने की संभावना अधिक हो जाती है। ऐसे में वित्त वर्ष का बाकी समय दरें तय करने वाली समिति के लिए काफी जटिल हो सकता है।
अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य भी मददगार नहीं है। अमेरिका में बॉन्ड प्रतिफल इस प्रत्याशा में बढ़ रहे हैं कि फेडरल रिजर्व दरों में कम से कम एक और इजाफा कर सकता है। ध्यान देने वाली बात है कि 10 वर्ष के भारतीय और अमेरिकी सरकारी बॉन्ड में अंतर 17 वर्ष के निचले स्तर पर है जो डॉलर में मजबूती के साथ पूंजी प्रवाह पर दबाव बनाएगा।
चूंकि अमेरिका में ब्याज दरें और लंबे समय तक ऊंची बनी रह सकती हैं इसलिए रुपये पर दबाव बन सकता है जो मुद्रास्फीति संबंधी नतीजों को प्रभावित कर सकता है। इन हालात में वित्तीय बाजार को दरों में एक और इजाफे की संभावना को पूरी तरह खारिज नहीं करना चाहिए।