तमाम बाधाओं के बावजूद दो दिवसीय जी20 शिखर बैठक के पहले दिन नेताओं की घोषणा में सहमति बन गई जिसमें मौजूदा भू-राजनीतिक परिदृश्य को लेकर स्पष्ट संकेत नजर आया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वैश्विक नेता के कद को और मजबूती मिली। निश्चित तौर पर यूक्रेन युद्ध पर बहुप्रतीक्षित वक्तव्य में बाली घोषणा के निंदा के स्वर यहां काफी हद तक शिथिल हो गए।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि यह बदले हुए भू-राजनीतिक हालात का नतीजा है। बाली घोषणा में संयुक्त राष्ट्र के बहुसंख्यक मत की भाषा को दोहराते हुए ‘रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले की कड़ी आलोचना’ की गई थी और मांग की गई थी कि ‘वह यूक्रेन से बिना शर्त और पूरी तरह बाहर निकल जाए।’ दिल्ली घोषणा में एक स्वतंत्र राज्य के विरुद्ध ‘क्षेत्र के अधिग्रहण’ में बल प्रयोग से परहेज करने को लेकर परोक्षा भाषा का प्रयोग किया गया।
हालांकि कौशलपूर्ण कूटनीतिक जीत के लिए भारत की सराहना की जानी चाहिए लेकिन इसका श्रेय जी7 को भी जाता है। अमेरिका के नेतृत्व में दुनिया के सात सबसे अमीर लोकतांत्रिक देश ऐसा राजनीतिक निर्णय लेते नजर आ रहे हैं जिससे शिखर बैठक की सफलता सुनिश्चित हो। इसके लिए उन्होंने यूक्रेन पर एक पुनराकलित समझौता वक्तव्य पर सहमति जताई। यह बात तो भारत के प्रति अमेरिका की पहल से ही स्पष्ट थी।
राजकीय यात्रा के महज कुछ महीने बाद द्विपक्षीय बैठक और सैन्य तथा आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में सहयोग को लेकर एक और संयुक्त वक्तव्य जारी करके अमेरिका ने इस बात के मजबूत संकेत दिए हैं कि पश्चिम भारत को लेकर अत्यधिक सकारात्मक है और मोदी भी उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने को तैयार हैं। दिल्ली घोषणा में धार्मिक सहिष्णुता को लेकर एक असाधारण पैराग्राफ शामिल किया गया है जो शायद इस विषय पर जी7 की किसी भी तरह की शंकाओं को संतुलित करने के लिए डाला गया हो।
दिल्ली घोषणा ने भारत और मोदी दोनों की इज्जत आफजाई की है। उदाहरण के लिए अफ्रीकी यूनियन को स्थायी सदस्यता देने की भारत की पहल का मान रखा गया। सन 1999 में शुरुआत के बाद पहली बार इस समूह की सदस्य संख्या बढ़ाई गई है। यूनियन के प्रमुख को पदासीन करने का मोदी का आमंत्रण भारत की उस महत्त्वाकांक्षा के पूरा होने की ओर संकेत करता है जिसके तहत वह दुनिया के विकासशील देशों खासकर प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर अफ्रीका का नेतृत्व करना चाहता है।
सवाल यह है कि यह घटनाक्रम चीन और उसके राष्ट्रपति शी चिनफिंग के लिए क्या संदेश लिए हुए है जो इस आयोजन में शामिल नहीं हुए। शी का इस आयोजन से दूर रहने का निर्णय अस्वाभाविक था क्योंकि इससे पहले वह जी20 के हर आयोजन में शामिल हुए हैं। मोदी की पहल पर अफ्रीकी यूनियन को शामिल किया जाना भी चीन को रास नहीं आया होगा क्योंकि वह लंबे समय से अफ्रीका को अपने विशिष्ट प्रभाव वाला क्षेत्र मानता रहा है। इसके साथ ही दिल्ली घोषणा में विकासशील देशों को कर्ज राहत के मामले में साझा जिम्मेदारी के रूप में बहुमत की राय रखने में कामयाब रहा जबकि चीन का जोर इस बात पर रहा है कि बहुपक्षीय कर्जदाता भी कटौती करें।
परंतु भू-राजनीति के नजरिये से देखें तो यूक्रेन के बारे में जो असाधारण पैराग्राफ शामिल किया गया है उससे यही संकेत निकलता है कि समूह के सामने मौजूद इस सबसे अहम विषय पर चीन के हित (और रूस के भी) बरकरार रहे हैं। यह बात दिल्ली घोषणापत्र के सामने आने के बाद यूक्रेन की प्रतिक्रिया से भी जाहिर हुई जो उसने सार्वजनिक की। यूक्रेन के विदेश मंत्रालय ने एक वक्तव्य जारी करके कहा कि जी20 की संयुक्त घोषणा में ‘ऐसा कुछ नहीं है जिस पर गर्व किया जाए।’ भूराजनीतिक अनिवार्यताएं यही संकेत देती हैं कि कम से कम फिलहाल के लिए तो यूक्रेन अकेला पड़ गया है।