विश्व व्यवस्था आज जिस दौर से गुजर रही है उसे मैं ‘विशाल विघटन’ के रूप में परिभाषित करना चाहूंगा। वर्ष 2008-2009 के वैश्विक वित्तीय संकट को ‘ विशाल अपस्फीति’ कहा गया था। 2020 की महामारी को ‘विशाल लॉकडाउन’ का नाम दिया गया था। इन घटनाओं ने बड़े पैमाने पर आर्थिक प्रभाव डाला लेकिन विश्व व्यवस्था को भंग नहीं किया। एक बार जब दुनिया समन्वित राजकोषीय और मौद्रिक नीति तथा तेजी से टीके के विकास के जरिये इनसे उबर गई तो हालात सामान्य हो गए। दूसरे विश्व युद्ध के बाद जो व्यवस्था बनी थी अब उसे भंग किया जा रहा है। ऐसा विरोधी ताकतें नहीं बल्कि अमेरिकी राष्ट्रपति खुद कर रहे हैं जिनका मानना है कि उनके साझेदारों समेत दुनिया ने अमेरिका का फायदा उठाया है।
उनका नारा है ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ यानी अमेरिका को दोबारा महान बनाना है। इस कोशिश में उनके हथियार हैं मौजूदा वैश्विक समझौतों (पेरिस समझौता) और संस्थानों (विश्व स्वास्थ्य संगठन) से दूरी बनाना, साझेदारों (उत्तर अटलांटिक संधि संगठन यानी नाटो) से अधिक मांग करते हुए उनका रक्षा व्यय सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के दो फीसदी तक बढ़ाना, अमेरिका के व्यापार घाटे को कम करने के लिए टैरिफ बढ़ाना और लाखों प्रवासियों को वापस भेजना। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की संस्थाओं को अमेरिकी मदद की छमाही समीक्षा शुरू की है। इनमें विश्व बैंक तथा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष शामिल हैं।
अमेरिका का व्यापार भारित टैरिफ 2.2 फीसदी है जो उसके कई साझेदारों से कम है। केवल जापान में यह 1.7 फीसदी है। यूरोपीय संघ में यह टैरिफ 2.7 फीसदी, चीन में 3 फीसदी, कनाडा में 3.4 फीसदी, मेक्सिको में 3.9 फीसदी, वियतनाम में 5 फीसदी, ब्राजील में 6.7 फीसदी, दक्षिण कोरिया में 8.4 फीसदी और भारत (ट्रंप के शब्दों में टैरिफ किंग) में 12 फीसदी है। परंतु ट्रंप ने टैरिफ में भारी इजाफा किया है। उन्होंने स्टील और एल्युमीनियम पर 25 फीसदी टैरिफ लगाया है। कनाडा और मेक्सिको के साथ व्यापार समझौते के बावजूद उन्होंने उन पर 25 फीसदी का शुल्क लगाया। चीन पर 10 फीसदी का अतिरिक्त शुल्क लगाया गया और भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और यूरोपीय संघ पर बराबरी का शुल्क लगाने की घोषणा की है। चीन ने बदले में अमेरिकी कृषि निर्यात पर 15 फीसदी शुल्क लगाया तो ट्रंप ने प्रतिक्रिया में टैरिफ 10 फीसदी और बढ़ाने की घोषणा कर दी।
इसके परिणामस्वरूप कीमतों में इजाफा होगा, ब्याज दरें ऊंची रहेंगी और वैश्विक वृद्धि में धीमापन आएगा। आर्थिक नीति और व्यापार की अनिश्चितता बढ़ी है और शेयर बाजार तेजी से गिर रहे हैं। ट्रंप पहले स्वतंत्र रही एजेंसियों पर भी नियंत्रण चाह रहे हैं। ये एजेंसियां उपभोक्ताओं के संरक्षण और अर्थव्यवस्था के नियमन से जुड़ी हैं। कमजोर नियमन से शुरुआत में निवेश बढ़ सकता है लेकिन समय के साथ इसमें गिरावट आएगी और अमेरिकी अर्थव्यवस्था धीमी होगी। अगर चीन, कनाडा और संभवत: मेक्सिको की तरह अधिकांश देश विरोध करते हैं तो विश्व अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी। सन 1930 में ऐसे ही टैरिफ ने विश्व व्यापार में जंग के हालात पैदा किए और ‘महामंदी’ के हालात बने।
अमेरिका में नया बना डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट इफिशिएंसी यूएसएड जैसी सरकारी एजेंसियों में कटौती करके हजारों की संख्या में कर्मचारियों की छंटनी कर रहा है। ट्रंप के शुल्क और व्यय कटौती की मदद से चार लाख करोड़ डॉलर की कर कटौती की भरपाई की जा सकती है, यह कर कटौती अमीरों के लिए है। साझेदारों से रक्षा व्यय बढ़ाने को कहने के अलावा उनकी योजना अगले पांच साल में अमेरिकी रक्षा बजट 40 फीसदी कम करने की है और संकेत हैं कि रूस और चीन भी ऐसा ही करेंगे। ट्रंप ने यूक्रेन का सौदा करके नाटो को कमजोर किया है। यह काफी हद तक अफगानिस्तान में तालिबान के साथ उनके विवादित समझौते की तरह ही है। यूरोप यकीनन अपने रक्षा व्यय में इजाफा करेगा और जापान तथा दक्षिण कोरिया भी। यूनाइटेड किंगडम ने पहले ही इसे जीडीपी की तुलना में 2.5 फीसदी बढ़ाने की घोषणा की है।
ट्रंप ने जमीन और खनिज हथियाने के साम्राज्यवादी रास्ते को खोल दिया है। वह 20 लाख फिलिस्तीनियों को बेदखल कर गाजा को हथियाना चाहते हैं, खनिजों के लिए ग्रीनलैंड पर कब्जा चाहते हैं, पनामा नहर पर दोबारा नियंत्रण करना चाहते हैं और कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बनाना चाहते हैं। यूक्रेन में माफिया शैली में खनिज लूटने की उनकी कोशिश पर फिलहाल लगाम लगी है। उन्होंने अपने पहले कार्यकाल में चीन को निशाना बनाने के लिए क्वाड को पुनर्जीवित किया लेकिन शी चिनफिंग के साथ समझौता करके अब वे अपने क्वाड साझेदारों को अधर में छोड़ सकते हैं। वह चीन को अलग-थलग करने के लिए रूस को चीन से दूर करने की कोशिश भी कर सकते हैं।
भारत को क्या करना चाहिए? भूराजनीतिक रूप से उनका पुतिन समर्थक रुख भारत के हित में है। खासतौर पर अगर वह रूस को चीन से दूर करने में कामयाब रहते हैं। चीन भी फिलहाल भारत के साथ बेहतर रिश्ते चाह सकता है। परंतु वैश्विक संस्थानों पर उसके हमले शायद भारत के हित में नहीं हों। एक नए साम्राज्यवादी ‘जंगल राज’ में सैन्य और आर्थिक शक्ति ही मायने रखेगी। भारत अपने जीडीपी का 1.5 फीसदी से भी कम हिस्सा रक्षा पर (पेंशन को हटाकर) खर्च करता है। उसे ध्यान देना चाहिए।
आर्थिक मोर्चे पर भारत ने स्टील और एल्युमीनियम टैरिफ पर तत्काल प्रतिरोध नहीं दिखाया है और वह द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर काम कर रहा है। कम टैरिफ के अलावा ट्रंप चाहते हैं कि भारत और अधिक तेल, गैस और ऊर्जा तथा रक्षा उपकरण खरीदे। अगर अमेरिका वैश्विक कीमत पर ईंधन पर बेचे और उपयुक्त रक्षा और ऊर्जा उपकरण तकनीक हस्तांतरण के साथ बेचे तो यह भारत के लिए स्वीकार्य हो सकता है। तकनीक और आर्टिफिशल इंटेलिजेंस संबंधी सहयोग बढ़ाने पर विचार हो रहा है। यूके और यूरोपीय संघ दोनों पर ट्रंप टैरिफ का खतरा है और वे भारत के साथ अधूरे व्यापार समझौता इस साल पूरा करना चाहते हैं। अगर पश्चिम एशिया का विवाद हल हो गया तो भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप आर्थिक कॉरिडोर नए सिरे से सामने आ सकता है।
द्विपक्षीय व्यापार समझौता जरूरी है लेकिन आसान नहीं। खासतौर पर कृषि उत्पादों के मामले में जहां भारत अमेरिका के चार फीसदी के बजाय 65 फीसदी व्यापार भार वाला टैरिफ लगाता है। अमेरिका के बाइडन प्रशासन द्वारा 2024 में प्रकाशित एक रिपोर्ट भारत के टैरिफ और गैर व्यापार अवरोधों की निराशाजनक तस्वीर पेश करती है। ट्रंप की समीक्षा तो और भी नकारात्मक हो सकती है। अगर अमेरिका भी गैर टैरिफ अवरोधों और भारत के बढ़ते गुणवत्ता नियंत्रण आदेशों, वस्तु एवं सेवा कर जैसे आंतरिक करों या चीन से आने वाले औषधि और आईफोन के कलपुर्जों जैसे आपूर्ति श्रृंखला के हिस्सों को निशाना बनाता है तो उसके साथ व्यापार बहुत मुश्किल हो जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी की हालिया अमेरिका यात्रा के दौरान ट्रंप ने कहा कि मोदी उनसे बेहतर वार्ताकार हैं। इसका परीक्षण शीघ्र होगा। फिलहाल हमें उथलपुथल के लिए तैयार रहना होगा।
(लेखक जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनैशनल इकनॉमिक पॉलिसी के प्रतिष्ठित विजिटिंग स्कॉलर हैं)