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भारत और IEA में सहयोग दोनों पक्षों के लिए फायदेमंद

दुनिया में ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) में भारत को शामिल करना अति आवश्यक है। बता रहे हैं कौशिक देव

Last Updated- March 07, 2024 | 11:09 PM IST
India and the IEA: Friends with benefits? भारत और IEA में सहयोग दोनों पक्षों के लिए फायदेमंद
Illustration: Binay Sinha

अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) भारत को अपने संगठन में पूर्णकालिक सदस्य के रूप में शामिल करने के विषय पर चर्चा शुरू करने के लिए सहमत हो गई है। यह आईईए और भारत दोनों ही के लिए स्वागत योग्य कदम है। भारत ने पिछले वर्ष आईईए में स्वयं को शामिल किए जाने का आग्रह भेजा था।

आईईए की 50वीं वर्षगांठ पर आयोजित एक समारोह में इसके 31 सदस्य देशों ने घोषणा की थी कि भारत को लेकर चर्चा अब शुरू हो जाएगी। भारत को अगर शामिल किया जाता है तो यह आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) के बाहर पहला देश होगा जिसे आईईए में पूर्णकालिक सदस्य का दर्जा मिलेगा। यह इस बात को परिलक्षित कर रहा है कि 2007 के बाद दुनिया में ऊर्जा की खपत में गैर-ओईसीडी देशों की भागीदारी किस तरह तेजी से बढ़ी है।

यह अनुमान लगाया जा रहा है कि आने वाले समय में भारत में ऊर्जा की खपत और अधिक बढ़ेगी और हानिकारक गैसों (ग्रीनहाउस गैस) का उत्सर्जन भी बढ़ेगा। इसे ध्यान में रखते हुए आईईए के लिए महत्त्वपूर्ण है कि वह भारत जैसी तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था के साथ पूरी गंभीरता के साथ मिलकर काम करे।

भारत की ऊर्जा क्षेत्र की नीतियों से जुड़े कई विषयों पर दोनों पक्षों के बीच तारतम्यता दिख रही है परंतु आर्थिक विकास एवं ऊर्जा क्षेत्र में हो रहे नए विकल्पों की तरफ बढ़ने के प्रति उनके नजरिये में अंतर हैं। अतः एक सफल साझेदारी के लिए दोनों पक्षों को उन बिंदुओं पर सहमत होने की आवश्यकता है जहां हो सकते हैं और कदाचित आवश्यक होने पर मतभेद भी जाहिर कर सकते हैं। इससे एक दिलचस्प बातचीत प्रक्रिया की जमीन तैयार हो जाएगी।

तेल आयात करने वाले देशों की ऊर्जा सुरक्षा को समर्थन एवं बढ़ावा देने के लिए 50 वर्ष पूर्व 1973 में अरब तेल प्रतिबंध के जवाब में आईईए की स्थापना हुई थी। उस समय तेल आयात करने वाले ज्यादातर देश ओईसीडी में थे इसलिए इसकी सदस्यता भी ओईसीडी देशों तक ही सीमित थी।

मगर अब यह संगठन वर्तमान समय में दुनिया की वास्तविकताओं को परिलक्षित नहीं करता है। वैश्विक ऊर्जा बाजार की स्थिरता इस बात पर निर्भर करती है कि किस तरह ये देश अपनी ऊर्जा प्रणाली को सुरक्षित करने का प्रयास करते हैं। इस कारण आईईए का विस्तार कर भारत को इसमें शामिल करना इस दिशा में उठाया गया एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

यह बात भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है कि आईईए ने किस तरह ऊर्जा सुरक्षा की अपनी परिभाषा में जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपायों को शामिल करने के लिए अपने लक्ष्यों का विस्तार किया है। अतः आईईए अब तेल एवं गैस बाजार में उठापटक को वैश्विक आर्थिक एवं राजनीतिक स्थिरता के लिए जोखिम के रूप में नहीं देखता है। यह दुनिया के लिए जलवायु परिवर्तन से होने वाले जोखिमों को भी गंभीरता से ले रहा है।

वैश्विक स्तर पर ऊर्जा के परंपरागत विकल्पों से धीरे-धीरे दूसरे दीर्घकालिक विकल्पों तक बढ़ने की दिशा में भारत द्वारा निभाई जा रही भूमिका पर सभी का ध्यान जाएगा। भारत की आबादी दुनिया में अब सर्वाधिक हो गई है और यह दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ती विश्व की पांचवीं अर्थव्यवस्था हो गई है। मौजूदा दशक में ही यह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हो जाएगी।

इतना ही नहीं, यह ऊर्जा का उपभोग करने वाला दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है मगर यह भी सच है कि हानिकारक गैसों का भी उत्सर्जन करता है। अगले दो दशकों में दुनिया में ऊर्जा के इस्तेमाल में भारत की बहुत बड़ी भूमिका होगी क्योंकि इसकी तेजी से बढ़ती आबादी और आर्थिक संपन्नता के लिए अधिक से अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होगी।

इस बात को समझते हुए पिछले डेढ़ दशकों के दौरान भारत ने ऊर्जा के आधुनिक स्रोतों, खासकर बिजली, तक अपनी पहुंच सुनिश्चित करने के लिए महत्त्वपूर्ण नीतियां तैयार की हैं। इसके साथ ही भारत ने ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की तरफ भी कदम बढ़ाए हैं और यह अक्षय ऊर्जा का ढांचा खड़ा करने और इसके इस्तेमाल के लिए नई रणनीतियां तैयार कर रहा है।

अब देश हाइड्रोजन एवं जैव-ईंधन के विकास और इस्तेमाल की तरफ भी कदम बढ़ा रहा है। भारत ने अक्षय उर्जा बिजली क्षमता और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के प्रतिशत के रूप में उत्सर्जन की गति नियंत्रित रखने के लिए सराहनीय कदम उठाए हैं। मगर अपने लिए वर्ष 2030 तक जो लक्ष्य तय कर रखे हैं वे दूसरे देशों की तुलना में कमजोर साबित होते हैं।

इस अवधि तक भारत ने अक्षय एवं अन्य गैर-जीवाश्म ऊर्जा का उत्पादन लक्ष्य तीन गुना करने और सालाना 50 लाख ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन करने के लक्ष्य तय किए हैं।

वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी 1.5 प्रतिशत तक सीमित रखने के लिए वैश्विक स्तर पर उत्सर्जन कम करने का लक्ष्य रखा गया है। मगर यह इस बात पर निर्भर करेगा कि वर्ष 2030 तक भारत अपने लक्ष्यों को हासिल कर पाता है या नहीं। लिहाजा, आईईए ने ऊर्जा सुरक्षा की परिभाषा में जो नए आयाम जोड़े हैं और भारत ने अक्षय ऊर्जा की तरफ जो व्यापक कदम उठाए हैं ये दोनों ही महत्त्वपूर्ण है।

दोनों पक्षों के बीच आपसी सहयोग और आईईए की तरफ से भारत को अक्षय ऊर्जा की तरफ तेजी से कदम बढ़ाने में मिलने वाला सहयोग दोनों पक्षों के बीच बातचीत के लिए एक मजबूत ढांचे का काम करेंगे। यह सहयोग सफल होने की स्थिति में भारत में एक नए ढांचे का विकास हो जाएगा जहां ऊर्जा की जरूरत बढ़ने की स्थिति में इसके संसाधनों पर अधिक बोझ नहीं पड़ेगा और कार्बन उत्सर्जन भी नियंत्रित रहेगा। दुनिया के दूसरे उन देशों के लिए इसे दूरगामी असर होंगे जो ऐसी तेज आर्थिक रफ्तार के चरण में नहीं पहुंच पाए हैं।

परंतु, यह सब करना बहुत सरल तो नहीं होगा। भारत में ऊर्जा का उपभोग बढ़ता जाएगा और इसमें निकट भविष्य में जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल भी तेज गति से होता रहेगा। आईईए ने स्वयं अनुमान लगाया है कि इस दशक की समाप्ति तक भारत में तेल की खपत मौजूदा स्तर से 20 प्रतिशत बढ़कर रोजाना प्रति दिन 10 लाख बैरल से अधिक हो जाएगी।

आईईए का कहना है कि दुनिया में तेल एवं गैस की तेजी से बढ़ती खपत को देखते हुए दुनिया के अन्य हिस्सों, खासकर ओईसीडी में, इसमें तेजी से कमी करनी होगी। यह एक चुनौतीपूर्ण परिस्थिति खड़ी करती है। यह प्रश्न कि ये अनुमान कितने तर्कसंगत हैं और ओईसीडी के भीतर इस रुझान के आर्थिक एवं राजनीतिक परिणामों ने पिछले कुछ हफ्तों के दौरान व्यापक चर्चा छेड़ दी है।

माना जा रहा है कि भारत 40 और 80 गीगावॉट के बीच नई कोयला आधारित बिजली क्षमता विकसित करेगा। मगर आईईए का कहना है कि कार्बन हटाने की तकनीक हटाने की व्यवस्था के बिना नई कोयला उत्पादन क्षमता विकसित नहीं होनी चाहिए। कार्बन हटाने की तकनीक अब भी बहुत महंगी है जिससे काम बनता नहीं दिख रहा है।

सामान्यतः आईईए का कहना है कि दुनिया में जीवाश्म ईंधन के बजाय अक्षय ऊर्जा में नए निवेश किए जाने पर ध्यान होना चाहिए मगर यह सोच भारत और एशिया एवं अफ्रीका के कई अन्य देशों के लिए फिलहाल अनुकूल नहीं लग रही है। जब तक आईईए अपने सदस्य देशों को जीवाश्म ईंधन की खपत कम करने के लिए नहीं कहती है और अक्षय ऊर्जा पर पूंजी निवेश तीन गुना नहीं बढ़ाती है तब तक यह अपने सदस्य देशों और दुनिया के अन्य देशों की ऊर्जा जरूरतों में तालमेल नहीं बैठा पाएगा। यह बात आईईए और भारत के बीच होने वाली बातचीत में जरूर कसौटी पर कसी जाएगी।

अंत में, आईईए अपने सदस्य देशों को ऊर्जा सुरक्षा का लक्ष्य हासिल करने में मदद करता आया है। तेल आयात करने वाले सभी देशों को अपने कुल आयात में 90 दिनों का भंडार अलग कर आपात स्थिति के लिए बचा कर रखना पड़ता है। मगर भारत के पास 67 दिनों तक का ही आपात भंडार है। आईईए को भारत को इस शर्त से छूट देने के लिए मार्ग खोजना होगा।

अगले कुछ दशकों में भारत अक्षय ऊर्जा की तरफ दुनिया के कदम बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इसे देखते हुए आईईए को भारत को पूर्ण सदस्य देश के रूप में जरूर शामिल करना चाहिए। भारत को भी आईईए की विशेषज्ञता का लाभ मिलेगा और इसे ऊर्जा क्षेत्र में आने वाले उतार-चढ़ाव और जलवायु परिवर्तन के खतरे के बीच एक आधुनिक अर्थव्यवस्था विकसित करने में मदद मिलेगी।

(लेखक कोलंबिया विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ इंटरनैशनल ऐंड पब्लिक अफेयर्स में सेंटर ग्लोबल एनर्जी पॉलिसी में वरिष्ठ शोधकर्ता हैं।)

First Published - March 7, 2024 | 11:09 PM IST

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