Group taxation regime: देश में बुनियादी ढांचा विकास क्षेत्र को नए ढंग से परिभाषित कर सकने वाले कदम के रूप में सरकार को आयकर अधिनियम, 1961 के तहत इस क्षेत्र के लिए सामूहिक कराधान व्यवस्था शुरू करने पर विचार करना चाहिए। दुनिया के कई बड़े और आर्थिक रूप से समृद्ध देश पहले ही इसे अपना चुके हैं।
बिस्कुट, जूते और स्टील के पाइप बनाने वाली एक कंपनी इन सभी कारोबारों को मूल कंपनी की अलग-अलग शाखाओं के रूप में चला सकती है और कराधान के नजरिये से वह अपने मुनाफों और घाटों को समेकित करके एकल करयोग्य मूल्य पर पहुंच सकती हैं। अब बुनियादी ढांचा क्षेत्र की कंपनी पर विचार कीजिए। मध्यम आकार की किसी भी कंपनी में 20 से 30 विशेष उद्देश्य वाली कंपनियां (एसपीवी) होंगी, जबकि बड़ी कंपनियों में एक समय पर 50 से अधिक ऐसी कंपनियां हो सकती हैं। इन्हें एसपीवी कहा जाता है क्योंकि वे किसी अलग परियोजना का प्रतिनिधित्व करती हैं।
बुनियादी ढांचा क्षेत्र के डेवलपर विभिन्न प्रकार के एसपीवी में काम करती हैं। ये कई प्रकार के अनुबंधों के तहत काम करती हैं जिनमें साधारण निर्माण परियोजनाओं के साथ-साथ कहीं अधिक जटिल रियायती समझौते, खासकर सार्वजनिक निजी भागीदारी के तहत किए गए समझौते शामिल होते हैं।
ऐसी रियायतें या अनुबंध काफी जटिल साबित हो सकते हैं क्योंकि रियायत देने वाले प्राधिकार, वित्तीय मदद करने वाले और नियामक इस बात पर जोर दे सकते हैं कि हर परियोजना को एक अलग विधिक संस्था बनाया जाए, जिसका अलग नकदी प्रवाह, ऋण देनदारी आदि हों। दिक्कत यह है कि प्रत्येक एसपीवी के अलग विधिक संस्था होने के कारण उनमें से हरेक को अलग- अलग आयकर रिटर्न दाखिल करना होता है।
इतना ही नहीं बुनियादी ढांचा कंपनियां पोर्टफोलियो पद्धति के साथ काम करना पसंद करती हैं तथा वे लंबी अवधि के दौरान अलग-अलग परियोजनाओं के मुनाफे और नुकसान को संतुलित करके देखती हैं ताकि उन्हें कुल मिलाकर एक स्वीकार्य प्रतिफल मिल सके। परंतु एकल एसपीवी दर्जा उन्हें ऐसा कराधान नहीं अपनाने देता।
इस व्यवस्था से कई नियामकीय और वित्तीय उद्देश्य तो पूरे हुए मगर अनजाने में यह दोधारी तलवार बन गई। इससे व्यावसायिक अकुशलता उत्पन्न हो रही है और पूंजी के भारी इस्तेमाल वाले क्षेत्र में विकास बाधित हो रहा है। बिजली, बंदरगाहों और हवाई अड्डों जैसे विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रही कंपनियों को ग्रुप होल्डिंग कंपनी के तहत हर उपक्रम के लिए अलग-अलग एसपीवी बनानी पड़ती है। इससे परिचालन जटिलता बढ़ती है और वे कानूनी भूल-भुलैया में फंस जाती हैं। जटिलताओं में उलझने के कारण व्यय बढ़ता है और हर एसपीवी के लिए कर रिटर्न दाखिल करना होता है।
कई बार प्रतिकूल सामाजिक, नियामकीय या राजनीतिक मसलों के कारण परियोजनाएं लंबे समय तक रुकी रहती हैं। ऐसी परियोजनाओं के कारण लागत डूबती है और कॉरपोरेट समूहों को अधिक कार्यशील पूंजी डालने की आवश्यकता होती है। एक कारोबार में होने वाले नुकसान को दूसरे कारोबार के मुनाफे से पटा पाने की अक्षमता कर संबंधी मुश्किलें और विसंगतियां पैदा करती है। एक एसपीवी की वित्तीय कठिनाइयां या गैर निष्पादित परिसंपत्तियां समूचे समूह की क्रेडिट रेटिंग पर असर डाल सकती हैं। ऐसे में और रकम जुटाना मुश्किल होता है।
आर्थिक नजरिये से देखा जाए तो एसपीवी कुछ और नहीं बल्कि एक ही मूल कंपनी के हिस्से हैं। बस, कुछ जरूरतों के कारण वे अलग-अलग विधिक ढांचे में चलती हैं। ऐसे में कारोबार एक मजबूत सामूहिक कर व्यवस्था पेश करके साझा प्रबंधकीय नियंत्रण के लाभ ले सकते हैं।
प्रस्तावित सामूहिक कराधान व्यवस्था का लक्ष्य है पूरी तरह या बहुलांश स्वामित्व वाली कंपनियों के समूह को समेकित कर रिटर्न दाखिल करने की इजाजत देकर इन समस्याओं को हल करना और कर उद्देश्यों के लिए उन्हें एकल इकाई मानना। प्रस्तावित व्यवस्था के तहत मूल कंपनी पर ही समेकित कर रिटर्न दाखिल करने की जिम्मेदारी होगी। मूल कंपनी के साथ समेकित सभी भारतीय अनुषंगी कंपनियों को इस रिटर्न में शामिल किया जाएगा। इससे निरंतरता और व्यापक कवरेज सुनिश्चित हो सकेगी।
उचित लेखा मानकों के हिसाब से भारतीय संस्थानों के लिए तैयार किए गए समेकित खाते, कर की गणना के आधार के रूप में काम करेंगे। इनमें आयकर प्रावधानों के अनुरूप जरूरी बदलाव किए जाएंगे। कर रिटर्न के उद्देश्य में समूहों के बीच लेनदेन समाप्त हो जाएगा। इससे पूरी प्रक्रिया आसान होगी और विवादों की आशंका घट जाएगी। कर योग्य आय या नुकसान का आकलन समूह की हर कंपनी के लिए समेकित ढंग से होगा और उसे एक साथ मिलाकर समूह के समग्र लाभ या हानि का आकलन होगा।
प्रस्तावित योजना के तहत कर दरों को तार्किक बनाने के लिए यह सुझाव दिया गया कि समेकित समूह कराधान दर को 22 फीसदी तथा उपकर एवं अधिभार के साथ लागू किया जाएगा। यह आयकर अधिनियम की धारा 115 बीबीए के तहत मौजूदा रियायती कर व्यवस्था के अनुरूप ही होगी। इसके साथ ही समेकन के जरिये बेहतर लाभ दिए जाएंगे।
प्रस्तावित पुनर्निर्धारण में समेकित सामूहिक कर प्रणाली में बदलाव के दौरान आगे लाए गए घाटे और न्यूनतम वैकल्पिक कर क्रेडिट पर भी विचार किया जाना चाहिए। नुकसान को मूल कंपनी के साथ शेष पात्र अवधि के लिए आगे बढ़ाया जा सकता है और क्रेडिट को एकबारगी जाने दिया जा सकता है। नुकसान की भरपाई और उसे आगे बढ़ाने के बारे में मौजूदा प्रतिबंध जारी रहेंगे। इससे मौजूदा कर सिद्धांतों के साथ निरंतरता बनी रहेगी। इस कर सुधार के संभावित लाभ केवल प्रशासनिक किफायत से कहीं आगे जाते हैं। देश की कर नीति को वैश्विक स्तर पर बेहतरीन व्यवहार के साथ जोड़कर सरकार इस क्षेत्र में अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश जुटा सकेगी।
आलोचक कह सकते हैं कि मौजूदा व्यवस्था में ऐसा अहम बदलाव सरकार को राजस्व में नुकसान पहुंचा सकता है। किंतु सुधार समर्थक कहेंगे कि इसके दीर्घकालिक लाभ होंगे, जिसमें निवेश में इजाफा, कारेाबारी सुगमता में सुधार और अधोसंरचना विकास में गति आदि शामिल हैं। ये लाभ राजस्व पर कुछ समय तक पड़ने वाली चोट पर भारी रहेंगे।
यह माना जा सकता है कि यह प्रस्ताव फिलहाल विचाराधीन है और तमाम अंशधारक उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे हैं कि आगे क्या होगा। अंतरराष्ट्रीय नजरिये से देखें तो आठ में से छह बड़ी अर्थव्यवस्थाएं (भारत और चीन को छोड़कर), जी-7 के छह सदस्य, जी-20 के 10 सदस्य पहले ही सामूहिक कराधान को अपना चुके हैं। ऐसे में इस सुझाव को बेहतरीन वैश्विक व्यवहार के रूप में प्रगतिशील कर सुधार के रूप में अपनाया जा सकता है।
यह स्पष्ट है कि ऐसे सामूहिक कराधान आने वाले समय में समृद्ध और विकसित देश बनने की राह आसान कर सकता है क्योंकि यह बुनियादी ढांचे के कठिन क्षेत्र में निजी पूंजी की आमद आसान करेगा।
(लेखक बुनियादी ढांचा विशेषज्ञ हैं। वह इन्फ्राविजन फाउंडेशन के संस्थापक एवं प्रबंध न्यासी हैं। लेख में धीरेन शाह का भी योगदान)