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बाजार के लिए कम नहीं हुई हैं चुनौतियां

शेयर बाजार की चाल धारणा से तेज और सुस्त होती है। धारणा मजबूत रहती है तो निवेशक दिल खोलकर दांव लगाते हैं और जोखिम लेने से पीछे नहीं हटते हैं

Last Updated- November 14, 2023 | 10:57 PM IST
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शेयर बाजार की चाल धारणा से तेज और सुस्त होती है। धारणा मजबूत रहती है तो निवेशक दिल खोलकर दांव लगाते हैं और जोखिम लेने से पीछे नहीं हटते हैं मगर जब यह नकारात्मक या कमजोर हो जाती है तो बाजार में निवेश की आमद कम हो जाती है। निवेशक जोखिम भरी परिसंपत्तियों से इतर सुरक्षित परिसंपत्तियों में निवेश बढ़ाने लगते हैं।

अमेरिकी बाजार एवं अर्थव्यवस्था दुनिया में तेजी से उभरते एवं विकासशील अर्थव्यवस्थाओं पर व्यापक प्रभाव डालती है। इसे देखते हुए अमेरिकी बाजार में हालात का जायजा लेना आवश्यक हो जाता है। अक्टूबर के अंतिम सप्ताह तक अमेरिकी बाजार में निवेशक जोखिम लेने से डर रहे थे और वहां बॉन्ड पर प्रतिफल लगातार चढ़ने से सब सहम गए थे। अक्टूबर के पहले सप्ताह में 10 वर्ष की अवधि के बॉन्ड पर प्रतिफल बढ़कर 5 प्रतिशत तक पहुंच गया था। इससे पहले 2007 में यह इतने ऊंचे स्तर पर दिखा था।

अमेरिका में बॉन्ड पर प्रतिफल इस चक्कर में ऊपर भागे कि फेडरल रिजर्व महंगाई नियंत्रित करने के लिए ब्याज दरों में बढ़ोतरी का सिलसिला थामने के मूड में नहीं दिख रहा है। वहां मानक ब्याज दर मार्च 2022 में 0.25 प्रतिशत थी मगर उसके बाद 16 महीनों के दौरान यह जुलाई 2023 में बढ़कर 5.5 प्रतिशत तक पहुंच गई थी। इस तरह, वहां मानक ब्याज दर पिछले 22 वर्षों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई। पिछले दिनों मौद्रिक नीति समीक्षा के बाद फेडरल रिजर्व ने लगातार दूसरी बार दर नहीं बढ़ाई।

कारोबारियों एवं निवेशकों ने इसे दर में बढ़ोतरी के खात्मे के संकेत के रूप में देखा है और उन्हें लग रहा है कि अगले छह महीनों बाद इसमें कमी शुरू हो सकती है। इसे देखते हुए कारोबारी दोबारा जोखिम लेने का मन बना चुके हैं। पिछले सप्ताह एसऐंडपी 500 में 5.85 प्रतिशत तेजी आई थी। एक सप्ताह तक फिसलने के बाद भारतीय बाजार अब स्थिर हो चुका है और अमेरिकी बाजार-अमेरिकी शेयर सूचकांक-का अनुसरण करता और ऊपर चढ़ता दिख रहा है।

परंतु प्रश्न यह है कि अमेरिकी बाजार में बढ़ोतरी महज एक और छलावा है या यह युद्ध, ब्याज में बढ़ोतरी, वैश्विक व्यापार में कमजोरी एवं संरक्षणवाद की बढ़ती मानसिकता समेत सभी नकारात्मक बातों को दरकिनार कर आगे बढ़ रहा है? मेरा मानना है कि अमेरिकी बाजार चुनौतियों से बाहर नहीं आया है इसलिए वैश्विक बाजार के लिए यह बात चिंता पैदा करती है।

वाकई टल गया संकट?

अमेरिका में महंगाई के खिलाफ मुहिम भले ही खत्म हो गई हो मगर ऊंची ब्याज दरों का अर्थव्यवस्था पर पूरा असर अभी नहीं दिखा है। अमेरिका में उपभोक्ता मुद्रास्फीति दर सालाना आधार पर जून 2022 में दर्ज 9.1 प्रतिशत के स्तर से कम होकर पिछले महीने 3.7 प्रतिशत रह गई है मगर यह फेडरल रिजर्व के 2 प्रतिशत लक्ष्य से अधिक है।

यह सोचना तर्कसंगत नहीं होगा कि केवल 16 महीनों में सबसे तेज गति से ब्याज दर में बढ़ोतरी से अर्थव्यवस्था को केवल मामूली नुकसान हुआ होगा। ब्याज दरों में बढ़ोतरी अर्थव्यवस्था पर थोड़ी देर बाद असर करती है, इसलिए हमें यह देखना होगा कि ब्याज दरों में भारी बढ़ोतरी के दबाव से छोटे कारोबार एवं उपभोक्ता कैसे निपटते हैं।

जब तक मानक ब्याज दर और दीर्घ अवधि के बॉन्ड पर प्रतिफल ऊंचे स्तरों पर हैं तब तक अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव जारी रहेगा। 5.50 प्रतिशत के स्तर पर फेडरल रिजर्व की मानक दर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति (हेडलाइन इन्फ्लेशन) दर से 2 प्रतिशत अंक ऊपर है। 2 प्रतिशत के स्तर पर वास्तविक प्रतिफल अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर डालता है और आंकड़े बताते हैं कि यह शेयरों के लिए बड़ी बाधा साबित हुई है। आइए, कुछ आंकड़ों पर विचार करते हैं।

अक्टूबर के लिए यूएस आईएसएम विनिर्माण सूचकांक फिसल कर 46.70 पर आ गया और यह लगातार 12वीं बार 50 से नीचे रहा जो आर्थिक गतिविधियों में कमी का संकेत है। सितंबर में सूचकांक 49 और एक वर्ष पहले 50.20 रहा था। अमेरिका के आवासीय खंड में हालात बिगड़ रहे हैं।

नैशनल एसोसिएशन ऑफ रियल्टर्स का हाउसिंग अफोर्डेबिलिटी सूचकांक 40 साल के निचले स्तर पर पहुंच गया है। यह चौंकाने वाली बात नहीं है क्योंकि दीर्घ अवधि की नियत आवास ऋण औसत दर 8 प्रतिशत के करीब पहुंच रही है। यह पिछले 23 वर्षों का सर्वाधिक स्तर है। भारी ट्रकों की बिक्री भी तेजी से गिरी है।

कुछ दिनों पहले नौवहन क्षेत्र की कंपनी मेर्स्क ने अपने कर्मचारियों की संख्या में 10,000 से अधिक कटौती करने की घोषणा की। कंपनी ने यह भी कहा कि उसका मुनाफा पूर्व में दिए गए अनुमान के निचले स्तर के आस-पास ही रहेगा। कंपनी का शेयर 18 प्रतिशत फिसल कर अक्टूबर 2020 के बाद से अपने सबसे निचले स्तर पर आ गया है।

श्रम बाजार का हाल

सस्ती पूंजी (कम ब्याज दरों के कारण) के दम पर आई संपन्नता और वैश्विक व्यापार के फलने-फूलने के बीच ऊंची ब्याज दरों के सामाजिक एवं राजनीतिक प्रभाव की तरफ से हमारा ध्यान हट गया। 1970 के दशक में यह वास्तविकता हम देख चुके हैं। आर्थिक दबाव का उत्पादन के एक अन्य पहलू श्रम के ऊपर होने वाले असर के बारे में भी विचार किया जाना चाहिए। वर्ष 2000 के बाद अमेरिका में कामगारों द्वारा हड़ताल एवं असहयोग उच्चतम स्तर पर हैं और इस कारण से अगस्त में गतिविधियां काफी प्रभावित हुईं।

ब्लूमबर्ग के अनुसार कई दशकों में पहली बार कामगार संघ (यूनियन) अपनी मांग मनवाने में काफी हद तक सफल रहे हैं। श्रम संगठन अपनी मांगें दोबारा तय कर रहे हैं और जीवन-यापन पर बढ़े खर्च के बीच पिछले कुछ वर्षों की तुलना में अधिक वेतन-भत्ते की मांग कर रहे हैं। संघ बड़े अनुबंध निपटान, वेतन में 25 से 28 प्रतिशत तक बढ़ोतरी, अधिक सवैतनिक अवकाश, अधिक स्वास्थ्य लाभ आदि के लिए जोर दे रहे हैं। फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दर बढ़ाए जाने की पहल का असर अमेरिकी श्रम बाजार में 24 महीने दिखने लगता है।

पहली बढ़ोतरी मार्च 2022 में हुई थी जिसे 20 महीने गुजर चुके हैं और अक्टूबर में बेरोजगारी दर लगभग दो वर्षों के उच्चतम स्तर 3.9 प्रतिशत पर पहुंच गई। बेरोजगारी दावे पिछले छह सप्ताहों में 9 प्रतिशत और पिछले 12 महीनों में 26 प्रतिशत बढ़ चुके हैं। लगभग एक तिहाई नई नौकरियां सरकारी क्षेत्र में आई थीं। अगस्त और सितंबर के पेरोल आधारित आंकड़ों (पेरोल) में भी संशोधन कर इन्हें कम कर दिया गया था। वास्तव में, 2023 के प्रत्येक महीने में पेरोल आधारित आंकड़ों में संशोधन कर इन्हें कम करना पड़ा।

इससे पहले 2008 में वैश्विक वित्तीय संकट के कारण ये हालात पैदा हुए थे। हालांकि, इन सभी बातों का यह मतलब नहीं है कि निकट भविष्य में शेयर बाजार में तेजी नहीं दिखेगी। मगर इस निष्कर्ष पर पहुंचना भी जल्दबाजी होगी कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए ‘खराब दौर गुजर चुका है’। अत्यधिक ऊंची ब्याज दरों का देर से होने वाला असर अभी दिखना बाकी है। क्या भारत जैसे तेजी से उभरते बाजार इससे सुरक्षित बच पाएंगे?

(लेखक डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट मनी लाइफ डॉट इन के संपादक हैं)

First Published - November 14, 2023 | 10:57 PM IST

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