करीब 10 वर्ष पहले तक केंद्र सरकार के बजट का आकार सभी राज्यों के संयुक्त व्यय से अधिक होता था। यह परिदृश्य 2012-13 में बदल गया। उस वर्ष राज्यों का बजट बढ़कर 14.55 लाख करोड़ रुपये हो गया जो पहली बार केंद्र सरकार के 14.1 लाख करोड़ रुपये के बजट से अधिक था।
तब से सरकार के कुल व्यय में राज्यों का हिस्सा लगातार बढ़ रहा है और 2019-20 तक यह 55 फीसदी हो गया था। कोविड महामारी के कारण केंद्र सरकार के बजट में भारी इजाफा हुआ और यह समीकरण बदल गया लेकिन केवल एक वर्ष के लिए। जहां 2020-21 में राज्यों का व्यय 34 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान था जो केंद्र के 35 लाख करोड़ रुपये से थोड़ा ही कम था, वहीं अगले वर्ष राज्यों ने दोबारा बढ़त कायम कर ली। कुल सरकारी व्यय में उनकी हिस्सेदारी बढ़कर 51 फीसदी हो गई और 2022-23 में इसके बढ़कर 53 से 55 फीसदी हो जाने का अनुमान है।
राज्यों के समेकित बजट के केंद्र के बजट से अधिक हो जाने का जिक्र मैंने इसलिए किया ताकि यह बताया जा सके कि देश के 31 राज्य और केंद्रशासित प्रदेश देश के राजकोषीय हालात के लिए कितने महत्त्वपूर्ण हैं। इस समय जबकि देश में केंद्र के 2023-24 के लिए पेश किए जाने वाले बजट को लेकर चर्चा चल रही है तो यह जानना उपयोगी होगा कि राज्यों की अर्थव्यवस्था पर इसका क्या असर होगा और कोविड के बाद राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के मामले में केंद्र की तुलना में राज्यों ने कैसा प्रदर्शन किया है। कुल मिलाकर देश के कुल सरकारी व्यय में राज्यों की हिस्सेदारी आधी से अधिक है।
राजकोषीय मोर्चे पर राज्यों ने केंद्र से बेहतर प्रदर्शन किया है। 2019-20 में यानी कोविड के पहले वाले वर्ष में केंद्र का राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 4.6 फीसदी था जबकि राज्यों का घाटा 2.6 फीसदी था। यानी कुल सरकारी घाटा जीडीपी के 7.2 फीसदी के बराबर था। यह 2020-21 में बढ़कर 13.3 फीसदी हो गया जिसमें केंद्र की हिस्सेदारी बढ़कर 9.2 फीसदी हो गई थी जबकि राज्यों की हिस्सेदारी 4.1 फीसदी थी। 2021-22 में कुल सरकारी घाटा कम होकर 9.5 फीसदी रहा जिसमें केंद्र की हिस्सेदारी 6.7 फीसदी और राज्यों की 2.8 फीसदी थी। जाहिर है राज्यों ने अपने घाटे को तेजी से कम करके 3 फीसदी के लक्ष्य के दायरे में ला दिया। इससे कुल सरकारी व्यय को एक अंक में लाने में मदद मिली।
अनुमान है कि राज्य 2022-23 में भी अपने घाटे को 3 फीसदी से कम रखने में सफल रहेंगे जबकि केंद्र सरकार को 6.4 फीसदी के दायरे में रहने के लिए कड़ी मशक्कत करनी होगी। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक तो अप्रैल-नवंबर 2022 में राज्यों का राजकोषीय घाटा पूरे वर्ष के 3.4 फीसदी के बजट घाटा लक्ष्य का केवल 35 फीसदी था। तुलनात्मक रूप से देखें तो केंद्र का राजकोषीय घाटा 2022-23 के पहले आठ महीनों में पूरे वर्ष के बजट लक्ष्य का 59 फीसदी था।
कुछ अनुमानों के मुताबिक चालू वर्ष में राज्यों का घाटा जीडीपी के 2.3 से 2.5 फीसदी के बीच रह सकता है क्योंकि राज्य वस्तु एवं सेवा कर यानी एसजीएसटी संग्रह में सुधार हुआ है। इसके अलावा केंद्रीय जीएसटी संग्रह में राज्यों का हिस्सा बढ़ा है और केंद्र ने कुल कर संग्रह में से राज्यों को किया जाने वाला स्थानांतरण बढ़ाया है। अप्रैल से नवंबर 2022 की अवधि में यह राशि 37 फीसदी बढ़कर 5.5 लाख करोड़ रुपये हो गई। इसके अलावा राज्य सरकारों के व्यय में कमी ने भी इसमें योगदान किया। खासतौर पर पूंजी खाते के व्यय में कमी ने।
राज्यों का सुधरा हुआ राजस्व संग्रह निस्संदेह सकारात्मक घटनाक्रम है लेकिन व्यय में कमी से अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है। पारंपरिक तौर पर राज्य अपने विभिन्न पूंजीगत व्यय कार्यक्रमों पर जो व्यय करते हैं वह वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में गति पकड़ता है। विश्लेषकों का अनुमान है कि राज्य इन परियोजनाओं पर व्यय बढ़ाएंगे लेकिन उसके बावजूद घाटा 3 फीसदी से नीचे रह सकता है। अगर राज्य लगातार दूसरे वर्ष घाटे को 3 फीसदी से कम रख सकते हैं तो इसके अन्य लाभ होंगे। पहला, राज्य बाजार से कम उधारी लेंगे, बॉन्ड बाजार अपेक्षाकृत स्थिर रहेगा और केंद्र को भी उधारी योजना बनाने में सहूलियत होगी। दूसरा, राज्यों द्वारा घाटे पर लगाम लगाने से केंद्र को समग्र सरकारी घाटे के स्तर का प्रबंधन करने में मदद मिलेगी।
राज्यों का राजस्व संग्रह बेहतर होने से जीएसटी व्यवस्था को भी लाभ मिला है। राज्यों को क्षतिपूर्ति चुकाने की व्यवस्था इस वर्ष के आरंभ में समाप्त हो चुकी है। शुरुआत में आशंका थी कि यह राज्यों और केंद्र के बीच विवाद का विषय बनेगा। परंतु उच्च राजस्व संग्रह के साथ अधिकांश राज्य बिना क्षतिपूर्ति के ही अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। 10 राज्यों को छोड़कर अन्य सभी राज्य तथा केंद्र शासित प्रदेशों ने 2022-23 में 14 फीसदी से अधिक जीएसटी संग्रह दर्शाया है। केंद्र सरकार द्वारा राज्यों की फंडिंग के लिए जो कर्ज लिया गया उसे चुकाने के लिए शायद जीएसटी क्षतिपूर्ति उपकर मार्च 2026 तक लागू रह सकता है और इसके साथ ही जीएसटी दरों को तार्किक बनाते हुए इस उपकरण को हटाना एक आकर्षक नीतिगत विकल्प होगा।
कर्ज तथा बकाया देनदारी की बात करें तो वह क्षेत्र राज्यों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। राज्यों का समेकित ऋण स्तर मार्च 2022 के अंत में घटकर जीडीपी के 28.7 फीसदी रह गया। एक वर्ष पहले यह 31.1 फीसदी था। परंतु मार्च 2023 में इसके दोबारा बढ़कर 29.5 फीसदी हो जाने का अनुमान है। अगर इसमें जीडीपी के चार फीसदी के बराबर की राज्यों की बकाया गारंटी को शामिल कर दिया जाए तो ऋण का स्थायित्व चिंता का विषय नजर आता है। ऐसे में राज्यों द्वारा राजकोषीय स्थायित्व की ओर बढ़ने का दावा करने के पहले कुछ और वर्षों तक घाटे को नियंत्रित करना होगा।