ऐसा लगता है कि एचएसबीसी इंडिया भारत में खुदरा बैंकिंग कारोबार से सिटीबैंक के निकलने के बाद मौजूद संभावनाओं का लाभ उठाने में जुट गया है। सिटीबैंक ने अपना खुदरा कारोबार ऐक्सिस बैंक को बेच दिया है।
पिछले सप्ताह रॉयटर्स की एक रिपोर्ट में कहा गया कि कि परिसंपत्ति के लिहाज से यूरोप का सबसे बड़ा बैंक एचएसबीसी एशिया में अपनी उपस्थिति बढ़ाने के लिए 12 देशों में अपना कारोबार छोटा कर सकता है या बेच सकता है।
एचएसबीसी ऐसे समय में यह कर सकता है जब सिटी भारत सहित 14 बाजारों से कारोबार समेट कर उन खंडों में निवेश करना चाहता है जहां यह तुलनात्मक रूप से प्रतिस्पर्द्धा करने की मजबूत स्थिति में है।
तो क्या भारत में विदेश बैंकों का कारोबारी परिदृश्य बदल रहा है? हां भी और नहीं भी। भारत में सूचीबद्ध वाणिज्यिक बैंकों की सूची में विदेशी बैंकों की हिस्सेदारी लगभग एक तिहाई है मगर कारोबार में इनकी हिस्सेदारी बहुत छोटी है।
सूचीबद्ध वाणिज्यिक बैंकों में सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के बैंक, भुगतान बैंक (पेमेंट्स बैंक), सूक्ष्म वित्त बैंक (स्मॉल फाइनैंस बैंक) एवं क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक और विदेशी बैंक शामिल हैं। मार्च 2022 तक 45 विदेशी बैंक थे जिनकी कुल 861 शाखाएं थीं। उनके एटीएम की संख्या 1,797 थी।
बैंकिंग परिसंपत्तियों में उनकी हिस्सेदारी 6.3 प्रतिशत, जमा रकम में 4.92 प्रतिशत और ऋण खाते में तो इससे भी कम मात्र 3.85 प्रतिशत थी। इसकी तुलना में 21 निजी बैंकों (नए एवं पुराने दोनों) की 37,872 शाखाएं और 75,543 एटीएम हैं।
परिसंपत्तियों में इनकी हिस्सेदारी 34 प्रतिशत, जमा रकम में 31.8 प्रतिशत और ऋण खाते में 37.8 प्रतिशत है। इसी तरह, 12 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की परिसंपत्तियों में 59.7 प्रतिशत, जमा रकम में 63.2 प्रतिशत और ऋण में 58.3 प्रतिशत हिस्सेदारी है। इन 12 बैंकों की देश में 84,256 शाखाएं हैं और 1,38,056 एटीएम देश भर में हैं।
आंकड़ों के आधार पर देखें तो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की परिसंपत्तियां 127 लाख करोड़ रुपये हैं, जबकि निजी बैंकों की 73.3 लाख करोड़ रुपये हैं। विदेशी बैंकों की परिसंपत्तियां 13.7 लाख करोड़ रुपये हैं। सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र के बैंकों के ऋण खाते का आकार क्रमशः 70.44 लाख करोड़ रुपये और 45.63 लाख करोड़ रुपये है।
विदेशी बैंकों के ऋण खाते महज 4.64 लाख करोड़ रुपये के हैं। शाखाओं एवं एटीएम की संख्या के आधार पर बात करें तो डीबीएस बैंक इंडिया की उपस्थिति सबसे अधिक है। लक्ष्मी विलास बैंक का अधिग्रहण करने के बात इसकी कुल 592 शाखाएं हो गई हैं।
इसके बाद स्टैंडर्ड चार्टर्ड की 100, सिटीबैंक (ऐक्सिस को खुदरा कारोबार बेचने से पहले) की 35, एचएसबीसी की 26 और डॉयचे बैंक एजी की 17 शाखाएं हैं।
डीबीएस बैंक के 1,021 से अधिक एटीएम हैं, जबकि सिटीबैंक के एटीएम की संख्या 488 है। स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक, एचएसबीसी और डॉयचे बैंक की क्रमशः 167, 74 और 32 शाखाएं हैं। इनके बाद अन्य किसी भी अन्य विदेशी बैंक की शाखाओं या एटीएम की संख्या दो अंक में नहीं है।
भारत मे 20 से अधिक शाखाओं वाले विदेशी बैंकों के लिए कुल ऋण आवंटन का 40 प्रतिशत हिस्सा स्थानीय बैंकों की तरह ही प्राथमिक क्षेत्र को देना जरूरी है।
भारत में सबसे बड़े विदेशी बैंक की कुल आवंटित ऋण और जमा रकम में 1 प्रतिशत भी हिस्सेदारी नहीं है मगर मुनाफे की बात करें इन बैंकों की हिस्सेदारी आनुपातिक रूप से काफी अधिक है।
इसका कारण क्या है? स्थानीय बैंकों की तुलना में उनका कारोबारी ढांचा अलग है। प्रत्येक श्रेणी के बैंकों के बहीखाते में नहीं दिखने वाली परिसंपत्तियां या देनदारियां जैसे डेरिवेटिव तस्वीर और साफ करते हैं। इस खंड में विदेशी बैंकों की हिस्सेदारी 49.7 प्रतिशत है जबकि सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के बैंकों की हिस्सेदारी क्रमशः 31.8 प्रतिशत और 18.5 प्रतिशत है। जमा में विदेशी बैंकों की हिस्सेदारी 5 प्रतिशत से कम होने के बावजूद वे छोटे चालू एवं बचत खातों (कासा) के लिए स्थानीय बैंकों के साथ प्रतिस्पर्द्धा कर रहे हैं।
कुल जमा में सार्वजनिक क्षेत्र और विदेशी बैंकों के चालू एवं बचत खातों की हिस्सेदारी 43.8 प्रतिशत है। निजी बैंकों की हिस्सेदारी 47 प्रतिशत के साथ थोड़ी अधिक है। सरल शब्दों में कहें तो विदेशी बैंकों को परंपरागत मानदंडों जैसे परिसंपत्ति एवं देनदारियों के लिहाज से नहीं आंकना चाहिए। उनके मुनाफे पर विचार कीजिए। सभी विदेशी बैंक अपने वित्तीय आंकड़ों का खुलासा नहीं करते हैं।
एचएसबीसी और स्टैंडर्ड चार्टर्ड इसका अपवाद हैं। 2023 की पहली तिमाही (कैलेंडर वर्ष) में स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक का राजस्व 31.1 करोड़ डॉलर रहा था और कर पूर्व मुनाफा 10 करोड़ डॉलर रहा था। एक साल पहले की पहली तिमाही में बैंक के ये आंकड़े क्रमशः 16.6 करोड़ डॉलर और 34.4 करोड़ डॉलर रहे थे। एचएसबीसी को 2023 की पहली तिमाही में 32.5 करोड़ रुपये का शुद्ध मुनाफा हुआ था, जबकि राजस्व 55 करोड़ डॉलर रहा था।
शाखाएं खोलना विदेशी बैंकों के लिए एक बाधा जरूर रही है मगर डिजिटलीकरण के बाद ऐसी बात नहीं रह गई है। ज्यादातर विदेशी बैंकों को संस्थागत एवं कॉर्पोरेट बैंकिंग में संभावनाएं नजर आ रही हैं। उदाहरण के लिए खुदरा कारोबार से निकलने के बाद सिटी बैंक भारत में संस्थागत ग्राहकों पर ध्यान दे रहा है। इस खंड में बैंक की मजबूत पकड़ है।
सिटीबैंक के खुदरा कारोबार से निकलने के बाद खाली जगह का लाभ लेने में लगा एचएसबीसी बैंक बहुराष्ट्रीय बैंकिंग कारोबार के लिए अधिक जाना जाता है। यह म्युचुअल फंड कारोबार में भी है और संयुक्त बीमा उद्यम में भी मौजूद है। यह निजी बैंकिंग (खुदरा बैंकिंग का हिस्सा) भी शुरू करना चाह रहा है। एचएसबीसी भारत में एक सार्वभौम बैंक की भूमिका में आना चाहता है।
स्टैंडर्ड चार्टर्ड विदेशी बैंकों में भारत में सबसे अधिक जाना-पहचाना नाम है। यह मुख्य रूप से स्थानीय कंपनियों को रकम उधार देता है। डीबीएस डिजिटल माध्यम से स्वयं को एक स्थानीय बैंक की तरह स्थापित करना चाहता है। बैंक छोटो कारोबारों एवं डिजिटल माध्यमों का इस्तेमाल करने में सक्षम ग्राहकों पर ध्यान दे रहा है। अमेरिकी बैंकों में जे पी मॉर्गन कॉर्पोरेट एवं संस्थागत बैंकिंग खंड में अच्छा प्रदर्शन कर रहा है।
भारतीय बाजार असीमित संभावनाओं से भरा है और अंतरराष्ट्रीय बैंक इस बात को जानते हैं। मगर कई इन संभावनाओं का लाभ उठाने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं।
सिटीबैंक जहां संस्थागत कारोबार पर ध्यान दे रहा है, वहीं एचएसबीसी अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क बढ़ाने और भारत में अमीर ग्राहकों को जोड़ने पर ध्यान देता रहा है। बाकी विदेशी बैंक जिस खंड में कारोबार कर रहे हैं उसी में खुश हैं या धीरे-धीरे परिस्थितियों के अनुसार कदम बढ़ा रहे हैं।
(लेखक जन स्मॉल फाइनैंस बैंक में वरिष्ठ सलाहकार हैं।)