राजकोष के लिहाज से समझदारी भरा और खपत बढ़ाने के कदमों वाला बजट आ चुका है। नाट्यशास्त्र की भाषा में कहें तो हर साल फरवरी में दो अंकों वाला नाटक हम देखते हैं। बजट इसका पहला अंक था, जिसका पटाक्षेप होने के बाद नाटक नई दिल्ली के संसद भवन से मुंबई की मिंट रोड पर पहुंच गया है, जहां भारतीय रिजर्व बैंक का मुख्यालय है। नाटक के दूसरे अंक का मंचन शुक्रवार को होगा, जब केंद्रीय बैंक की नीति तय करने वाली मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) इस वित्त वर्ष की अपनी आखिरी बैठक खत्म करेगी।
बजट तो राजकोषीय घाटे में कमी लाने की अपनी राह से बिल्कुल नहीं भटका है तो क्या रिजर्व बैंक को भी मौद्रिक नीति में नरमी लानी चाहिए? बैंक ने 27 जनवरी को ही इसकी भूमिका तैयर कर दी, जब उसने विभिन्न रास्तों से धीरे-धीरे प्रणाली में 1.5 लाख करोड़ रुपये डालने का ऐलान किया। इसके तहत तीन खेप में 60,000 करोड़ रुपये की सरकारी बॉन्ड पुनर्खरीद होगी, 56 दिन के लिए 50,000 करोड़ रुपये की वेरिएबल रेट रीपो नीलामी होगी और 6 महीने के लिए रुपये के बदले 5 अरब डॉलर खरीदेगा। उस समय प्रणाली में तरलता या नकदी की कमी 3 लाख करोड़ रुपये से ऊपर पहुंच गई थी। उसके बाद से यह घटी है और पिछले शुक्रवार को कमी 2.2 लाख करोड़ रुपये रह गई थी।
दिसंबर 2024 की अपनी नीति में रिजर्व बैंक ने बैंकों के नकद आरक्षी अनुपात (सीआरआर) में आधा फीसदी की कटौती कर दी, जिससे प्रणाली में 1.16 लाख करोड़ रुपये आ गए। सीआरआर वह रकम होती है, जो वाणिज्यिक बैंकों को केंद्रीय बैंक के पास रखनी पड़ती है। तो क्या रिजर्व बैंक नकदी बढ़ाने के लिए इस हफ्ते नीतिगत दरें कम करेगा?
सबसे पहले देखते हैं कि दुनिया के बाकी केंद्रीय बैंक क्या कर रहे हैं। 29 जनवरी की नीतिगत बैठक में अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने दर में कटौती जारी रखने का राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप का दबाव मानने से इनकार कर दिया और अपनी प्रमुख ब्याज दर में कोई बदलाव नहीं किया। लगातार तीन बार कटौती के बाद वहां उधारी दर 4.25 फीसदी से 4.5 फीसदी रह गई है। फेड के प्रमुख जेरोम पावेल ने संकेत दिया है कि उसे ब्याज दरें बदलने की जल्दी नहीं है क्योंकि बेरोजगारी दर स्थिर हो गई है, श्रम बाजार मजबूत है और महंगाई भी कुछ हद तक बढ़ी हुई है।
बैंक ऑफ इंगलैंड रिजर्व बैंक की नीतिगत घोषणा से एक दिन पहले ब्याज दर पर इस साल का पहला निर्णय लेगा। विश्लेषक दर में फिर कटौती की उम्मीद कर रहे हैं क्योंकि आर्थिक संकेत बहुत मजबूत नहीं रहे हैं और दिसंबर में हुई पिछली बैठक के बाद से सेवा क्षेत्र की मुद्रास्फीति काफी घट गई है। उस बैठक में बैंक की मौद्रिक नीति के तीन सदस्यों ने दर घटाकर 4.5 फीसदी करने का समर्थन किया था। लेकिन नवंबर में दर घटा चुके बैंक ने दिसंबर में इसे 4.75 फीसदी पर बरकरार रखने का फैसला किया।
पिछले हफ्ते यूरोपियन सेंट्रल बैंक ने ब्याज दर एक बार फिर चौथाई फीसदी घटाकर 2.75 फीसदी कर दी। उसने मार्च में और कमी करने के संकेत दिए क्योंकि अड़ियल मुद्रास्फीति से ज्यादा बड़ी चिंता सुस्त अर्थव्यवस्था है। अर्थव्यवस्था में वृद्धि तेज करने के इरादे से दर कटौती करने में यूरोपियन सेंट्रल बैंक ने काफी उदारता बरती है और जून से यह पांचवीं दर कटौती थी।
भारत में क्या स्थिति है? दुनिया की सबसे तेजी से उभरती प्रमुख अर्थव्यवस्था में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में कम होकर 5.4 फीसदी रह गई। इसके बाद दिसंबर की नीतिगत बैठक में रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2025 के लिए जीडीपी वृद्धि का अपना अनुमान 7.2 फीसदी से घटाकर 6.6 फीसदी कर दिया, जो काफी कम है। सरकार ने तो केवल 6.4 फीसदी वृद्धि का अनुमान लगाया है।
दिसंबर की नीति में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति का अनुमान भी 4.5 फीसदी से बढ़ाकर 4.8 फीसदी कर दिया गया। दिसंबर में सीपीआई नवंबर के 5.48 फीसदी से घटकर 5.22 फीसदी रह गया, जो चार महीनों में सबसे कम है। खाद्य महंगाई में कमी इसकी वजह रही। रिजर्व बैंक ने 4 फीसदी मुद्रास्फीति का लक्ष्य रखा है, जिसमें 2 फीसदी घटबढ़ की गुंजाइश है।
बहरहाल इस समय तो सरकार के लिए वृद्धि में सुस्ती सीपीआई के आंकड़े से बड़ी चिंता लग रही है। वित्त मंत्रालय की दिसंबर की आर्थिक रिपोर्ट में यही कहा गया है और इसके लिए रिजर्व बैंक के सख्त मौद्रिक रुख तथा वृहद उपायों को जिम्मेदार ठहराया गया है। साथ ही कहा गया है कि व्यवस्थागत कारकों से भी मांग में कमी आई होगी।
दर में कटौती की मांग में दम है लेकिन रुपये का क्या करें। 6 दिसंबर को पिछली नीति घोषित होते समय डॉलर के मुकाबले रुपया 84.69 पर था मगर इस सोमवार को यह डॉलर के मुकाबले 87 के पार चला गया। सितंबर के अंतिम सप्ताह से लेकर अब तक भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 704.9 अरब डॉलर से घटकर 629.55 अरब डॉलर (24 जनवरी तक) रह गया है। रुपये में तेज गिरावट थामने के लिए रिजर्व बैंक द्वारा डॉलर की बिक्री और डॉलर के मुकाबले दूसरी विदेशी मुद्राओं में गिरावट का भी इस कमी में बड़ा हाथ रहा है।
हाल तक हमने रुपये को एक दायरे में चलते देखा था क्योंकि चालू खाते का घाटा कम था और विदेशी मुद्रा भंडार तथा भुगतान संतुलन की स्थिति भी ठीक थी। इससे रिजर्व बैंक को लगा कि वह रुपये में उतार-चढ़ाव को धीमा कर सकता है। डॉलर में मजबूती शुरू होते ही वृद्धि के मोर्चे पर परेशानियां दिखनी शुरू हो गईं मगर रिजर्व बैंक ने नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं किया। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक बाजार से निकल रहे थे और कई आयातकों ने डॉलर के उतार-चढ़ाव से बचने के लिए हेजिंग भी नहीं की थी। कुल मिलाकर रिजर्व बैंक तेजी से डॉलर बेचकर इसे थामने की कोशिश कर रहा था।
अब सवाल यह है कि क्या रिजर्व बैंक को रुपया लुढ़ककर अपने आप ठहरने देना चाहिए या विदेशी मुद्रा बाजार में उठापटक थामने के लिए डॉलर बेचने चाहिए? क्या इसे मुद्रा लुढ़कने के बाद भी वृद्धि को सहारा देने के लिए नीतिगत दरें घटानी चाहिए? इंडोनेशिया का केंद्रीय बैंक ऐसा कर चुका है। उसने 15 जनवरी को नीतिगत दरें घटाईं और वित्तीय बाजार की उथलपुथल तथा अपनी मुद्रा रुपिया में गिरावट के बाद भी वृद्धि को सहारा देने के लिए मौद्रिक रियायत बरती। बेशक इंडोनेशिया में मुद्रास्फीति कम है और भारत में दर कटौती से ही काम नहीं चलेगा बल्कि दूसरे उपाय भी करने होंगे। इसीलिए दर कटौती की संभावना 50-50 है। रिजर्व बैंक दर घटा सकता है और नहीं घटाई तो नकदी बढ़ाने के उपाय जरूर करेगा। जब उसे भरोसा हो जाएगा कि रुपया ठहर गया है तब वह दर कटौती करेगा, जो अप्रैल में हो सकती है।