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Budget 2025: बजट में बुनियादी ढांचे पर खर्च की अहमियत

अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिहाज से सार्वजनिक व्यय का बड़ा हिस्सा पूंजीगत व्यय के रूप में बुनियादी ढांचे पर खर्च किया जाना चाहिए।

Last Updated- January 31, 2025 | 10:48 PM IST
Budget 2025

केंद्रीय बजट के आवंटन में बुनियादी ढांचे पर खर्च कितना अहम है, इसे पूरी तरह जानने के लिए सार्वजनिक व्यय से जुड़ी तीन बुनियादी बातें समझना जरूरी है। पहली, फरवरी 2023 में बजट के बाद हुई बातचीत के दौरान वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने राष्ट्रीय टेलीविजन पर खुलासा किया था कि सरकार के पास गोपनीय जानकारी है, जिससे पता चलता है कि बुनियादी ढांचे पर खर्च किए गए हर 1 रुपये से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 3 रुपये जुड़ जाते हैं। लेकिन प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) पर खर्च किए गए 1 रुपये से अर्थव्यवस्था में केवल 90 पैसे आते हैं। इसलिए अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिहाज से सार्वजनिक व्यय का बड़ा हिस्सा पूंजीगत व्यय के रूप में बुनियादी ढांचे पर खर्च किया जाना चाहिए और यह बात मूल आर्थिक रणनीति में शामिल रहनी चाहिए।

दूसरी, मुख्यधारा के ज्यादातर राजनीतिक दल अब इस बात पर सहमत हैं कि भारत को अपने जीडीपी का कम से कम 7 फीसदी हिस्सा बुनियादी ढांचे में निवेश पर अथवा बुनियादी ढांचे में सकल पूंजी निर्माण पर खर्च करने का लक्ष्य रखना चाहिए।

तीसरी, बुनियादी ढांचे पर खर्च में अपेक्षा यह की जाती है कि केंद्र सरकार बजट में जितनी राशि इसके लिए आवंटित करती है लगभग उतनी ही राशि राज्यों, निजी क्षेत्र और सार्वजनिक उपक्रमों सहित बजट से बाहर के संसाधनों से आनी चाहिए।

आगामी बजट (2025-26) में बुनियादी ढांचे के लिए करीब 13 लाख करोड़ रुपये के आवंटन की संभावना है। इसलिए उम्मीद है कि कुल खर्च करीब 26 लाख करोड़ रुपये हो जाएगा, जो जीडीपी के 7 फीसदी के बराबर होगा। करीब 13 लाख करोड़ रुपये खर्च होने का मतलब है कि चालू वित्त वर्ष के मुकाबले आवंटन लगभग 18 फीसदी बढ़ जाएगा। ऐसे में लाख टके का सवाल यह है कि इतना खर्च क्या सुस्त चल रही अर्थव्यवस्था को तेजी से रफ्तार देने के लिए काफी होगा? इसके लिए कुछ बातों पर विचार करते हैं:

1. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 2 जनवरी को सिस्टमिक रिस्क सर्वे प्रकाशित किया, जिसमें हिस्सा लेने वाले आधे से अधिक लोगों को नहीं लगता कि अगले साल भी निजी कंपनियों का निवेश बढ़ेगा यानी आने वाले साल में भी निजी पूंजीगत व्यय में इजाफे की कोई उम्मीद नहीं है। इसके पीछे भू-राजनीतिक टकराव, कमोडिटी की कीमतों के जोखिम, ब्याज दरों में बढ़ोतरी होने, शुल्कों में इजाफा होने, देश की पूंजी बाहर जाने और रुपये पर पड़ने वाले उसके असर जैसी चिंताएं काम कर रही हैं। इसके अलावा खपत में मंदी आने का डर भी सता रहा है।

2. वित्त वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही के लिए जीडीपी के अनुमान आए तो इस बात की चिंता बढ़ गई कि साल में अर्थव्यवस्था मजबूत रह भी पाएगी या नहीं। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर सी रंगराजन ने 4 दिसंबर, 2024 को बिज़नेस लाइन अखबार में छपे एक लेख में कहा कि ‘पहली छमाही में सरकार के पूंजीगत व्यय में कमी आई, जिसका अर्थव्यवस्था की गति धीमी करने में बड़ा हाथ रहा है।’

3. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) के आंकड़े बताते हैं कि दिसंबर 2024 को समाप्त तिमाही में नई परियोजनाएं शुरू होने की दर इससे पिछले साल की दिसंबर तिमाही के मुकाबले 22.1 फीसदी कम हो गई। उससे पहले की तिमाही यानी जुलाई-सितंबर 2024 के दौरान इस दर में 64 फीसदी बढ़ोतरी देखी गई थी। इसके अलावा सरकारी और निजी क्षेत्रों से हुई घोषणाएं भी पूंजीगत खर्च में ढंग की बढ़ोतरी का संकेत नहीं दे रही हैं।

4. सीएमआईई के आंकड़ो में चिंता की एक और बात नजर आती है। उनके मुताबिक सरकार ने जो परियोजनाएं पूरी कीं, उन पर कुल खर्च भी साल भर पहले के मुकाबले पूरे 57.1 फीसदी कम हो गया। निजी क्षेत्र ने जो परियोजनाएं पूरी कीं, उनकी लागत भी 40 फीसदी
कम रही।

5. तकरीबन सभी भारतीय कंपनियां और वाणिज्यिक बैंक सार्वजनिक-निजी साझेदारी (पीपीपी) वाली नई परियोजनाओं में निवेश करने से हिचक रहे हैं। दूसरी ओर विदेशी निवेशक पुरानी परियोजनाओं में निवेश करने में ही दिलचस्पी लेते हैं। हालांकि दूरसंचार, बंदरगाह, हवाईअड्डा, बिजली ट्रांसमिशन और अक्षय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में निजी निवेश जारी है मगर यह भी लगातार होने के बजाय छिटपुट ही है।

6. राज्यों से मिली जानकारी बताती है कि उनका पूंजीगत व्यय केंद्र सरकार द्वारा किए जा रहे पूंजीगत व्यय के मुकाबले और भी सुस्त है। ऐसे में वित्त मंत्रालय के अधिकारी राज्यों को लगातार प्रोत्साहित करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि राज्य के भीतर बुनियादी ढांचे पर होने वाले खर्च के लिए वे अधिक कर्ज लें।

इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए सरकार बुनियादी ढांचे पर खर्च कर अर्थव्यवस्था को एक बार फिर गति देने के लिए क्या रणनीति अपनाएगी? अगर वह पहले से चली आ रही नीतियों पर ही टिकी रहती है तब हम बुनियादी ढांचे के लिए आवंटन में 18 फीसदी बढ़ोतरी की उम्मीद कर सकते हैं, जिसके बाद यह 13 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच जाएगा। लेकिन वास्तव में अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने का सरकार का इरादा है तो बजट में बुनियादी ढांचे के लिए 15 लाख करोड़ रुपये के आवंटन पर भी विचार किया जा सकता है।

कोविड महामारी के बाद सरकार ने वृद्धि बढ़ाने के लिए जिस तरह की रणनीति अपनाई थी यह भी सार्वजनिक निवेश के जरिये अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने का वैसा ही साहसिक कदम होगा।

लीक पकड़कर चलने वाले लोक वित्त विशेषज्ञों और अर्थशास्त्रियों को भी राजकोषीय घाटे के लक्ष्य में 0.5 फीसदी की ढिलाई बरते जाने पर शायद शिकायत नहीं होगी बशर्ते उससे मिलने वाली रकम का इस्तेमाल राष्ट्रीय परिसंपत्ति तैयार करने और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए किया जाए। वास्तव में इससे मिलने वाली 2 लाख करोड़ रुपये की रकम का इस्तेमाल स्वास्थ्य एवं शिक्षा जैसे सामाजिक बुनियादी ढांचा क्षेत्रों में किया जा सकता है, जिसे आम जनता से भी जमकर वाहवाही मिलेगी।

(लेखक बुनियादी ढांचा क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं और सीआईआई की राष्ट्रीय बुनियादी ढांचा परिषद के अध्यक्ष भी हैं। लेख में उनके निजी विचार हैं)

First Published - January 31, 2025 | 10:17 PM IST

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