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भुगतान गतिविधि का बेहतर नियमन जरूरी

देश में भुगतान प्रणाली को बेहतर बनाने के क्रम में रिजर्व बैंक के भीतर संचालन में सुधार मददगार साबित हो सकता है। विस्तार से बता रहे हैं

Last Updated- May 28, 2025 | 10:58 PM IST
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प्रतीकात्मक तस्वीर

राज्य क्षमता निर्माण के सफर की बात करें तो एक खास किस्म के ज्ञान की आवश्यकता होती है और वह है ‘एजेंसी आर्किटेक्चर’। सरकार कई संगठनों से मिलकर बनती है और प्रत्येक संगठन की भूमिका को सावधानीपूर्वक तैयार करने की आवश्यकता होती है। किसी अधिकारी की सामान्य भावना जहां यह होती है कि शक्ति और बजट इकट्ठा किया जाए वहीं एजेंसी आर्किटेक्चर एक आकर्षक विषय है जो जवाबदेही तंत्र, हितों के टकराव और दायरों और पैमाने के अर्थशास्त्र के विचारों पर आधारित है। भुगतान नियमन के डिजाइन, एजेंसी आर्किटेक्चर के क्षेत्र से ज्ञान हासिल करने आदि को लेकर रिजर्व बैंक में मूल्यवान सुधार हो रहे हैं।

आधुनिक विश्व में भुगतान एक महत्त्वपूर्ण और उल्लेखनीय उद्योग है। पुराने दिनों में यह बैंकिंग का एक मामूली हिस्सा हुआ करता था। भुगतान के लिए बैंक ही एकमात्र साधन हुआ करते थे। वास्तव में भुगतान की गतिविधियों के धीमा होने से बैंकों का हित जुड़ा हुआ था क्योंकि जब तक राशि उनके पास जमा रहती थी वे उससे कमाई कर पाते थे। भुगतान का कामकाज राजस्व की अलग धारा के रूप में नहीं देखा जाता था। वही विरासत है जिसके चलते आज भी भुगतान को नि:शुल्क रखने का दबाव बनाया जाता है।

आज की दुनिया वैसी नहीं है। आज भुगतान व्यवस्था सहजता से काम करती है और वैश्विक सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र के विभिन्न अंतर्संबंधित प्रोटोकॉल और वित्तीय मानकों तक विस्तारित है। सक्षम भुगतान एक ऐसी सेवा है जिसके लिए आमतौर पर राजस्व धारा की आवश्यकता होती है। भुगतान की गतिविधियों से एक डिजिटल निकासी जुड़ी हुई है जिसका मुद्रीकरण किया जा सकता है। आज की दुनिया में भुगतान प्राथमिक तौर पर एक तकनीक आधारित काम है न कि वित्तीय काम। रिजर्व बैंक जैसे संस्थान में मौद्रिक नीति और बैंकिंग को शक्तिशाली और प्रतिष्ठित गतिविधियां माना जाता है।

भारत में कुल बैंक जमा राशि करीब 220 लाख करोड़ रुपये है और बैंकिंग एक बड़ा और महत्त्वपूर्ण उद्योग है जबकि भुगतान एक छोटा क्षेत्र है। यह बात चिंता पैदा करती है कि भुगतान को लेकर हमारी नीतिगत सोच विसंगतिपूर्ण ढंग से बैंकों के कारोबारी हितों से संचालित है और वह बैंकों को मुनाफे में बनाए रखने से संबंधित है। एजेंसी आर्किटेक्चर का क्षेत्र इसे हितों के टकराव के रूप में देखता है।जब बैंकिंग विनियमन और भुगतान विनियमन के कार्यों को एक ही संगठन में रखा जाएगा, तो भुगतान विनियमन का प्रदर्शन कमजोर होगा, क्योंकि भुगतान का क्षेत्र विसंगतिपूर्ण रूप से इस तरह निर्मित होगा कि बैंकों को अधिक लाभ कमाने लायक बनाया जा सके।

इसका क्या हल निकाला जा सकता है? इसका हल दो हिस्सों में बंटा हुआ है। पहला है वित्तीय नियमन की बुनियादी गतिविधियों को स्पष्ट करना। मौजूदा भुगतान एवं निपटान प्रणाली अधिनियम (2007) कमजोर ढंग से तैयार किया गया है। वित्तीय क्षेत्र विधायी सुधार आयोग ने 2011-15 के दौरान जो काम किया उसने उपभोक्ता संरक्षण, विवेकपूर्ण नियमन और व्यवस्थागत जोखिम नियमन के लक्ष्य स्थापित करके इसे अधिक ऊंचा स्तर प्रदान किया। जब रिजर्व बैंक में भुगतान नियमन को इन लक्ष्यों को पूरा करने का काम भी सौंपा जाएगा तो यह मौजूदा कानून की तुलना में बेहतर रूप से कारगर साबित होगा।

यह अब तक संसदीय कानून में परिवर्तित नहीं हुआ है। दूसरी बात संचालन व्यवस्थाओं से संबंधित है। कई देशों में एक विशेष बोर्ड गठित किया गया है ताकि केंद्रीय बैंक के भीतर भुगतान नियमन के काम का संचालन किया जा सके। इससे रिजर्व बैंक की भुगतान टीम की अपने बोर्ड के प्रति जवाबदेह होगी और वे बैंक के अपने नियमन सहयोगियों के पूर्वग्रहों से कम प्रभावित होंगे।

भारत की विचार प्रक्रिया में यह विचार दिसंबर 2016 की रतन वातल की रिपोर्ट से आया। यह कानूनी क्रियान्वयन के कई दौर से गुजरा और पिछले दिनों ‘पेमेंट रेग्युलेटरी बोर्ड रेग्युलेशंस’ की गजट अधिसूचना जारी की गई। लब्बोलुआब यह कि भुगतान के लिए एक अलग बोर्ड रिजर्व बैंक के तीन कर्मचारियों के साथ तीन स्वतंत्र निदेशकों की भर्ती की राह प्रशस्त करता है। कुल मिलाकर यह भुगतान उद्योग के लिए एक सकारात्मक घटना है।

देश में कामयाब भुगतान उद्योग की स्थापना के लिए वित्तीय आर्थिक नीति के रणनीतिक क्षेत्र में क्या कुछ करने की आवश्यकता है? पहले बात करते हैं नियुक्ति प्रक्रिया की। हमें उम्मीद है कि केंद्र सरकार वैश्विक भुगतान उद्योग में काम कर रहे निजी लोगों को नियुक्त करेगी जिनकी बैंकिंग के प्रति वफादारी या तरफदारी न हो, ठीक इन तीन स्वतंत्र निदेशकों की तरह। उसके बाद बोर्ड की भूमिका और उसके कामकाज की बारी आती है। किसी संगठन के बोर्ड की एफएसएलआरसी की अवधारणा सरकारी संस्थानों द्वारा बेहतर प्रदर्शन सुनिश्चित किए जाने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। मौजूदा कानून में इन धाराओं के अभाव को देखते हुए भुगतान विनियामक बोर्ड की भूमिका को अच्छे विवेक और मानदंडों के माध्यम से विकसित करना होगा। यह खतरा भी है कि कहीं बोर्ड केवल लंच के साथ एक विनम्र बातचीत का मंच बनकर न रह जाए।

बोर्ड से आगे जाकर भुगतान पर आरबीआई नियामक टीम की कार्यप्रणाली पर नजर डालें तो भुगतान विनियमन के एफएसएलआरसी लक्ष्यों को कानून में स्थापित करना आवश्यक है न कि केवल अनियंत्रित शक्ति के रूप में रखना। वित्तीय आर्थिक नीति संबंधी ये जानकारियां हमें देश में भुगतान के क्षेत्र में नीतिगत खामी को दूर करने के लिए सही स्थिति में रखने वाली हैं। फिलहाल केंद्रीय नियोजन वाले एकाधिकार के अधीन इसमें एक किस्म का ठहराव नजर आ रहा है।

भुगतान नियामक बोर्ड और भुगतान पर रिजर्व बैंक की एक ऊर्जावान नियामकीय टीम को इस क्षेत्र को दोबारा खोलने की आवश्यकता है। वातल रिपोर्ट की अहम बातों को अभी हकीकत में बदलने की आवश्यकता है। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है प्रौद्योगिकी कंपनियों के लिए आरटीजीएस यानी रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट की पहुंच को चालू खातों तक करना। इससे नैशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया जैसे कई और संगठन तैयार हो सकते हैं। मौजूदा संरक्षणवाद जहां वैश्विक भुगतान कंपनियों के विरुद्ध गतिरोध की स्थिति है और इन गतिरोधों को हटाने की जरूरत है। भारत के वित्तीय और गैर वित्तीय कारोबारों को वैश्विक भुगतान प्रौद्योगिकियों से करीबी से जुड़ना होगा ताकि यहां सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि में मदद की जा सके।

सार्वजनिक नीति के क्षेत्र में हर सकारात्मक घटना हमें प्रोत्साहित करती है कि हम बदलाव के सिद्धांत पर विचार करें। भारत में बदलाव कैसे आता है और हम इस बदलाव को कैसे बढ़ावा दे सकते हैं? मजबूत भुगतान नियमन की इस यात्रा में हम सरकारी समितियों की प्रक्रिया का चरणबद्ध बौद्धिक प्रभाव भी देखते हैं। इस मामले में दो परियोजनाएं जो मायने रखती थीं वे हैं एफएसएलआरसी और रतन वातल रिपोर्ट। इसमें बौद्धिक माहौल के साथ एक सरकारी समिति के रणनीतिक कदम भी शामिल थे।

(लेखक एक्सकेडीआर फोरम में शोधकर्ता हैं)

First Published - May 28, 2025 | 10:31 PM IST

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