दिसंबर के आखिरी कुछ दिनों में फोन कॉल और मेसेज की तादाद अचानक ही बढ़ गई। मुझे भी कई लोगों ने भी चिंतित होकर कॉल और संदेश भेजे। वे जानना चाहते थे कि उनकी पूंजी बैंक में सुरक्षित है या नहीं।
आखिर अचानक उनकी व्यग्रता क्यों बढ़ गई? इसका संबंध भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा घरेलू बैंकिंग प्रणाली के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण बैंकों की घोषणा से था। इस सूची में तीन बैंक भारतीय स्टेट बैंक, एचडीएफसी बैंक और आईसीआईसीआई बैंक शामिल हैं। इन लोगों का सवाल यह था, ‘अगर ये तीन बैंक महत्त्वपूर्ण हैं तो बाकी बैंक किस श्रेणी में हैं? क्या बाकी बैंकों में उनके पैसे सुरक्षित हैं?’
इसका उत्तर हां है क्योंकि सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक सुरक्षित हैं। 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद से एक भी बैंक को नाकाम नहीं होने दिया गया है। (सहकारी बैंकों की एक अलग कहानी है)। संदर्भ और आकार के आधार पर इन विभिन्न बैंकों के बचाव से जुड़े कदम अलग रहे हैं लेकिन जमाकर्ताओं ने पैसे गंवाए नहीं हैं।
आइए हम भारत में व्यवस्थागत रूप से महत्त्वपूर्ण बैंकों की संरचना पर ध्यान दें। इनके पांच क्रम हैं जैसे कि 1 से 5 और इनमें 5 सबसे महत्त्वपूर्ण है और एक सबसे कम महत्त्वपूर्ण है। बैंक का दर्जा ही जोखिम भारित आस्तियों के प्रतिशत के रूप में अपनी सामान्य इक्विटी टीयर-1 जरूरत का निर्णय करता है। एसबीआई क्रम 4 (3 से ऊपर) और एचडीएफसी बैंक क्रम 2 (1 से ऊपर) में शामिल है।
आईसीआईसीआई बैंक क्रम 1 यानी प्रवेश स्तर में बना हुआ है। वहीं क्रम 5 और 3 में कोई बैंक नहीं है। आरबीआई ने 2015 में इन बैंकों के नामों का खुलासा करना शुरू किया था। संबंधित क्रम चार प्रमुख पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करने वाले प्रणालीगत महत्त्व वाले स्कोर पर निर्भर हैंः जैसे कि बैंकों का आकार, परस्पर संबंध, प्रतिस्थापन और जटिलता। पहले दो वर्षों में, केवल एसबीआई और आईसीआईसीआई बैंक को इस फ्रेमवर्क में शामिल किया गया था। वर्ष 2017 में एचडीएफसी बैंक ने इसमें प्रवेश किया। मौजूदा अद्यतन 31 मार्च, 2023 के डेटा पर आधारित है। एचडीएफसी लिमिटेड के साथ विलय के बाद बैंकिंग प्रणाली में एचडीएफसी बैंक के बढ़ते महत्त्व ने इसका कद थोड़ा और बढ़ा दिया है।
इस फ्रेमवर्क के तार वित्तीय स्थिरता बोर्ड (एफएसबी) की अक्टूबर 2010 की सिफारिशों से जुड़े हैं जो एक अंतरराष्ट्रीय निकाय है। यह वैश्विक वित्तीय प्रणाली की निगरानी करता है और उसके बारे में सिफारिशें करता है। इसने सिफारिश की थी कि सभी सदस्य देशों (जी-20 जैसी प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं) को महत्त्वपूर्ण वित्तीय संस्थानों के कारण होने वाले जोखिम कम करने के लिए व्यवस्थित तरीके से एक फ्रेमवर्क लागू करना चाहिए।
पारंपरिक रूप से बड़े बैंकों के बारे में यह राय होती है कि वे व्यवस्था के लिए इतने महत्त्वपूर्ण हैं कि उन्हें नाकाम होने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता है क्योंकि इससे वित्तीय प्रणाली पर व्यापक आर्थिक नुकसान हो सकता है। इस धारणा के चलते, यह उम्मीद बन जाती है कि मुश्किल समय में सरकार इन बैंकों को बचाएगी। यह इस कहानी का एक पहलू है। दूसरा पहलू यह है कि ये बड़े बैंक, जमा और बॉन्ड के रूप में पैसा जुटाने में अन्य बैंकों की तुलना में फायदा उठाते हैं।
हालांकि, इस सरकारी समर्थन की उम्मीद से बैंक अधिक जोखिम लेने के लिए प्रोत्साहित होंगे क्योंकि उन्हें यह पता होता है कि सरकार उन्हें बचाएगी। दूसरा, इससे बाजार का अनुशासन कम होता है और प्रतिस्पर्धा में असमानता पैदा हो सकती है और यह वित्तीय क्षेत्र की स्थिरता के लिए खतरा बन सकता है। इस समस्या से निपटने का तरीका बैंकिंग प्रणाली के जोखिम और नैतिक जोखिम को कम करने के लिए अतिरिक्त नीतिगत उपाय करना है। यही इसका मूल आधार है।
इस समस्या का समाधान ढूंढने के लिए नवंबर 2011 में बैंकिंग निगरानी से जुड़ी बेसल समिति ने वैश्विक रूप से महत्त्वपूर्ण बैंकों की पहचान करने और उन्हें घाटा सहने के लिए कितनी पूंजी की आवश्यकता है, इससे जुड़े मानकों की एक रूपरेखा जारी की। इस तरह अतिरिक्त पूंजी की आवश्यकता की बात सामने आई।
भारत में बैंकों के लिए अतिरिक्त पूंजी की आवश्यकता, जोखिम वाली परिसंपत्तियों के 0.20 प्रतिशत से 0.80 प्रतिशत के बीच होती है। यह उनके पैमाने के आधार पर निर्धारित होता है, यानी जितना बड़ा बैंक, उतनी ही अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है। वैश्विक स्तर पर महत्त्वपूर्ण बैंकों के लिए अतिरिक्त पूंजी की आवश्यकता और अधिक होती है।
बैंकों के अलग प्रकार के निवेशों में अलग-अलग जोखिम और पूंजी की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए, भारत में बैंकों द्वारा सरकारी बॉन्ड में किए गए निवेशों को शून्य जोखिम वाला माना जाता है जबकि बिना गारंटी वाले व्यक्तिगत ऋण को इस समय सबसे अधिक जोखिम वाला (125 प्रतिशत) माना जाता है।
बैंकों को उनके आकार के विश्लेषण के आधार पर उनकी प्रणालीगत महत्त्व की गणना के लिए चुना जाता है, जिसे सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के प्रतिशत के रूप में मापा जाता है जो 2 प्रतिशत से अधिक है। लेकिन, यह केवल एक मापदंड है। अन्य मापदंडों में, समग्र वित्तीय क्षेत्र में बैंक का आकार और इसकी बाजार हिस्सेदारी, परस्पर संबंध यानी बैंक अन्य वित्तीय संस्थानों और बाजार से कितने जुड़े हुए हैं। इसके अलावा आवश्यक बुनियादी ढांचा उपलब्ध न होना और बैंक की व्यावसायिक गतिविधियों और संरचना की जटिलता जैसे मानदंड भी हैं।
वैश्विक स्तर पर महत्त्वपूर्ण माने जाने वाले बैंक कौन हैं? वर्ष 2023 की सूची में 29 बैंक शामिल हैं जो 2022 की सूची से एक कम है। सूची में शामिल बैंकों को वर्गीकृत किया जाता है जो उनके प्रणालीगत महत्त्व के स्तर को दर्शाता है।
व्यवस्था के लिए महत्त्वपूर्ण बैंकों को यह सुनिश्चित करने के लिए चिन्हित किया गया है कि इनके पास हमेशा अतिरिक्त पूंजी हो ताकि वे किसी भी नुकसान को झेल सकें और सरकार को इस तरह के किसी संस्थान को बचाने के लिए हस्तक्षेप करने की आवश्यकता न पड़े। लीमन ब्रदर्स के दिवालिया होने के बाद ‘टू बिग टू फेल’ की अवधारणा को स्थापित किया गया जिसका अर्थ यह है कि कुछ बैंक इतने बड़े और महत्त्वपूर्ण हैं कि उन्हें सरकार को विफल होने से बचाना होगा।
जब निगरानी की बात आती है तब आरबीआई बैंकिंग उद्योग (सभी बैंकों, बड़े और छोटे बैंकों) को एक अलग दृष्टिकोण से देखता है। पहले इस निगरानी के तहत बैंकों की पूंजी पर्याप्तता, परिसंपत्ति गुणवत्ता, प्रबंधन क्षमता, कमाई, नकदी और बैंकिंग प्रणाली तथा नियंत्रण पर गौर किया जाता था लेकिन अब यह जोखिम-आधारित निगरानी है। मूलतः संक्षिप्त तरीके से कैमल कहा जाता हैं और 1997 में इसमें ‘एस’ जोड़ा गया था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, ‘एस’ संवेदनशीलता (बाजार जोखिम) को दर्शाता है।
बैंक आकार, बिजनेस मॉडल की प्रकृति और जोखिम लेने की क्षमता के लिहाज से असमान होते हैं इसलिए कैमल्स के तहत उन्हें पांच श्रेणियों में बांटा गया था, एसबीआई, अन्य सरकारी बैंक, पुराने निजी बैंक, नए निजी बैंक और विदेशी बैंक। आरबीएस व्यवस्था के तहत, बैंकों को फिर से समानता के आधार पर वर्गीकृत किया गया है। उदाहरण के तौर पर सिटीबैंक, स्टैंडर्ड चार्टर्ड और एचएसबीसी को पहले विदेशी बैंकों के रूप में वर्गीकृत किया गया था लेकिन आरबीएस के तहत, वे ‘मध्यम आकार के बैंकों’ में बदल गए हैं।
यह सही है कि प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण बैंकों को अलग तरीके से देखा जाता है (इनके लिए सुरक्षा का एक अतिरिक्त स्तर होता है), लेकिन जब निगरानी की बात आती है तब आरबीआई सभी बैंकों, बड़े, मध्यम और छोटे के साथ समान व्यवहार करता है।
व्यवस्था के लिए महत्त्वपूर्ण बैंकों का वर्गीकरण वास्तव में जमाकर्ताओं के लिए अन्य बैंकों में मौजूद धन की सुरक्षा का आकलन नहीं है। बड़े बैंकों को अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है। यह विशेष रूप से तब प्रासंगिक होता है जब अर्थव्यवस्था में अच्छी वृद्धि हो रही हो और वृद्धि को समर्थन देने के लिए बैंक ऋण में वृद्धि हो रही हो। जमाकर्ताओं को चिंतित होने की जरूरत नहीं है। फिलहाल, वे आराम से बैठें और अधिक ब्याज दरों का लाभ उठाएं।