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बैंकिंग साख: बॉन्ड बाजार ने हासिल किया नया मुकाम

भारत सरकार बाजार से कितना उधार ले रही है? चालू वित्त वर्ष में बाजार से सरकार की अनुमानित उधारी 14.13 लाख करोड़ रुपये (शुद्ध 11.75 लाख करोड़ रुपये) रहने का अनुमान है।

Last Updated- July 07, 2024 | 9:49 PM IST
Government plans to raise debt of Rs 6.61 lakh crore in the second half सरकार की दूसरी छमाही में 6.61 लाख करोड़ रुपये का कर्ज जुटाने की योजना

जून के अंतिम कारोबारी दिन यानी शुक्रवार 28 जून को 10 वर्ष की परिपक्वता अवधि वाले 20,000 करोड़ रुपये मूल्य के सरकारी बॉन्ड (प्रतिभूतियों) की नीलामी में 267 बोलियां (कुल 47,776.500 करोड़ रुपये की) आईं। इस नीलामी में न्यूनतम यील्ड (कट-ऑफ) 7.0191 फीसदी रखी गई थी। द्वितीयक बाजार में उस सप्ताह अधिकांश कारोबारी दिवसों में इन सरकारी बॉन्ड पर यील्ड 7 फीसदी के इर्द-गिर्द थी।

जब नीलामी चल रही थी उसी दौरान जे पी मॉर्गन गवर्नमेंट बॉन्ड इंडेक्स-इमर्जिंग मार्केट्स (जीबीआई-ईएम) वैश्विक सूचकांक में भारत ने भी जगह बना ली। मगर इस सूचकांक में शामिल होने के पहले दिन बोलियों एवं यील्ड के मामले में कोई बड़ा उलटफेर नहीं हुआ।

कई लोगों को लग रहा था कि यील्ड में कमी आएगी, क्योंकि जीबीआई-ईएम में शामिल होने से विदेशी निवेशक भी बोलियां लगाएंगे जिससे बॉन्ड की मांग बढ़ जाएगी। बॉन्ड यील्ड और कीमत में उल्टा संबंध होता है। बॉन्ड की मांग अधिक रहने पर दाम बढ़ते हैं तो यील्ड कम हो जाती है।

जीबीआई-ईएम ग्लोबल डायवर्सिफाइड इंडेक्स में भारत का भारांश प्रत्येक महीना 1 फीसदी बढ़कर मार्च 2025 तक 10 फीसदी की तय सीमा तक पहुंच जाएगा। मगर वैश्विक बॉन्ड सूचकांक में शामिल होने की खुशी का ज्यादातर असर बॉन्ड बाजार पर दिख चुका है। 10 वर्ष की अवधि का यील्ड हाल में फिसल कर 6.95 फीसदी पर आ गया, मगर फिर बाद में 7 फीसद तक पहुंच गया। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून 2024) में यह 7.24 फीसदी के उच्चतम स्तर तक पहुंचा था।

वर्ष 2005 में शुरू जीबीआई-ईएम तेजी से उभरते देशों की सरकारों द्वारा स्थानीय मुद्राओं में जारी किए जाने वाले बॉन्ड पर नजर रखता है। भारत को इस वैश्विक सूचकांक में शामिल होने में अधिक समय लगा। भारत में सरकारी बॉन्ड बाजार का आकार 1.3 लाख करोड़ रुपये है और तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में यह चीन और ब्राजील के बाद सबसे बड़ा बाजार है।

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) जे पी मॉर्गन सूचकांक में भारत के शामिल होने से जुड़ी संभावनाएं तलाशने की शुरुआत बहुत पहले 2014 में ही कर चुका था। मगर उस समय भारत चालू खाते के घाटे का सामना कर रहा था और रुपया डॉलर की तुलना में तेजी से गिर रहा था। तब भारतीय बॉन्ड बाजार में विदेशी निवेश पर सख्त पाबंदी से ऐसा संभव नहीं हो पाया था।

बाद में विदेशी निवेश से जुड़ी शर्तें आसान बनाई गईं। मगर इस सूचकांक में भारत के शामिल होने का मुख्य कारण रूस का इससे बाहर निकलना है। जीबीआई-ईएम सूचकांक में रूस का लगभग 8 फीसदी भारांश था। रूस के बाहर होने के बाद इंडोनेशिया, मैक्सिको, चीन, मलेशिया और ब्राजील (18 में 5 देश) में प्रत्येक का भारांश 10 फीसदी है। भारत इस सूचकांक में शामिल होने वाला 19वां देश है और मार्च 2025 तक यह 10 फीसदी भारांश रखने वाले देशों की सूची में शामिल हो जाएगा।

जून 2021 से आरबीआई विदेशी निवेशकों को सरकारी बॉन्ड खरीदने के लिए अधिक सहूलियत दे रहा है। इसने बैंकों को जरूरत पड़ने पर विदेशी निवेशकों को उधारी (मार्जिन से जुड़ी जरूरत पूरी करने के लिए) की सुविधा देने की भी अनुमति दी है। इससे पहले 2020 में आरबीआई ने कुछ खास बॉन्ड में विदेशी नियंत्रण पर सीमा हटा दी थी।

जीबीआई-ईएम में शामिल होने के बाद ब्लूमबर्ग ने भी भारतीय बॉन्ड को ब्लूमबर्ग इमर्जिंग लोकल करेंसी गवर्नमेंट इंडेक्स एवं अन्य संबंधित सूचकांकों में 31 जनवरी 2025 से दस महीनों की अवधि में चरणबद्ध रूप से शामिल करने की घोषणा की है। एफटीएसई रसेल (लंदन स्टॉक एक्सचेंज ग्रुप की सहायक इकाई) ने भी भारतीय सरकारी बॉन्ड को संभावित सूची में रख लिया है।

जीबीआई-ईएम ग्लोबल डाइवर्सीफाइड इंडेक्स सहित भारत अन्य जे पी मॉर्गन बॉन्ड सूचकांकों जैसे एशियाई (जापान को छोड़कर) स्थानीय मुद्रा बॉन्ड सूचकांक यानी जेएडीई ग्लोबल डाइवर्सिफाइड इंडेक्स, जेएडीई ब्रॉड डाइवर्सिफाइड इंडेक्स आदि में शामिल किया जा सकता है।

इन सूचकांकों में भारत का भारांश मार्च 2025 तक 10 महीने की अवधि में 15-20 फीसदी के इर्द-गिर्द रहेगा। तेजी से उभरते बाजारों के लिए जे पी मॉर्गन सरकारी बॉन्ड सूचकांक की प्रबंधनाधीन परिसंपत्ति (AUM) 236 अरब डॉलर है। भारत का पूंजी बाजार जब से विदेशी निवेशकों के लिए खुला है तब से बॉन्ड में निवेश शेयरों की तुलना में काफी कम रहा है।

सितंबर 1992 में आर्थिक उदारीकरण के तत्काल बाद शेयर बाजार विदेशी निवेशकों के लिए खुल गया मगर बॉन्ड में विदेशी निवेशकों के लिए नियम-कायदे 1995 में जारी किए गए। वित्त वर्ष 1993 में शेयरों में 13 करोड़ रुपये विदेशी निवेश आया और इसके चार वर्ष बाद बॉन्ड बाजार में वित्त वर्ष 1997 में 29 करोड़ रुपये विदेशी निवेश आया।

पिछले दशक की बात करें तो वित्त वर्ष 2014 में बॉन्ड बाजार से 28,059 करोड़ रुपये निकाल लिए गए, जबकि शेयर बाजार में 79,709 करोड़ रुपये निवेश आया। लेकिन वित्त वर्ष2024 तक यह रुख काफी बदल चुका है और इस दौरान डेट में 1.21 लाख करोड़ रुपये का निवेश आया। तो क्या सूचकांकों में शामिल होने से बॉन्ड बाजार की चाल बदल जाएगी?

अनुमान लगाया जा रहा है कि अगले दस महीनों में बॉन्ड बाजार में 23-24 अरब डॉलर विदेशी रकम आ सकती है। ब्लूमबर्ग और एफटीएसई रसेल में भारत में शामिल हो गया तो यह रकम और भी बढ़ सकती है। इससे भारतीय बॉन्ड बाजार में अप्रत्यक्ष रूप से भी रकम का प्रवाह बढ़ जाएगा।

भारत सरकार बाजार से कितना उधार ले रही है? चालू वित्त वर्ष में बाजार से सरकार की अनुमानित उधारी 14.13 लाख करोड़ रुपये (शुद्ध 11.75 लाख करोड़ रुपये) रहने का अनुमान है। राज्य विकास ऋण के लिए भी अलग से उधार लिए जाएंगे।

स्थानीय निवेशक (मुख्य रूप से बैंक एवं बीमा कंपनियां) सरकार के उधारी कार्यक्रम को समर्थन देने में सक्षम हैं, मगर विदेशी निवेशकों की भागीदारी बढ़ने से धारणा मजबूत होती है। इससे बैंकों पर दबाव कम हो जाएगा और वे इस अतिरिक्त पूंजी का इस्तेमाल उधारी देने में कर पाएंगे। बॉन्ड यील्ड और रुपये पर भी इसका सकारात्मक असर होगा।

बस नुकसान यह है कि अगर भू-राजनीतिक स्तर पर कोई बड़ी घटना हुई तो विदेशी निवेशक अचानक रकम निकाल सकते हैं। ऐसी कोई बड़ी घटना बॉन्ड एवं मुद्रा बाजारों में अनिश्चितता भी पैदा कर सकती है। मगर 654 अरब डॉलर मुद्रा भंडार (21 जून तक) मौजूद रहने से हमें चिंतित होने की जरूरत नहीं है।

(लेखक जन स्मॉल फाइनैंस बैंक में वरिष्ठ सलाहकार हैं।)

First Published - July 7, 2024 | 9:49 PM IST

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