आयकर विभाग द्वारा तलाशी और जब्ती के लिए नए नियमों से मुकदमेबाजी में कमी आ सकती है और अनुपालन भी बढ़ सकता है। अगर करदाता जांच के नतीजे कबूल कर लेता है और अपनी अघोषित आय पर 60 फीसदी कर चुकाने को राजी हो जाता है तो उसके खिलाफ मामला बंद कर दिया जाएगा।
ऐसे मामले में करदाता को अलग से जुर्माना या ब्याज नहीं भरना पड़ेगा। इन नियमों की घोषणा इसी मंगलवार को आए आम बजट में की गई है और ये 1 सितंबर से लागू होंगे। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) को इनके कारण अनुपालन बढ़ने की उम्मीद दिख रही है।
सीबीडीटी के चेयरमैन रवि अग्रवाल ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘तलाशी के बाद कार्रवाई में आम तौर पर लंबा समय लगता है। मगर प्रस्तावित योजना के तहत करदाता तलाशी के नतीजे मान लेता है और अपनी छिपाई गई आय पर 60 फीसदी कर चुकाता है तो मामला एक ही सुनवाई में खत्म हो सकता है। करदाता को कोई जुर्माना या ब्याज भी नहीं देना होगा।’
विशेषज्ञों ने कहा कि नए नियमों का मकसद करदाताओं को अघोषित आय बताने के लिए प्रोत्साहित करना है और इससे मुकदमेबाजी कम से कम 20 फीसदी घट सकती है। इस योजना को ब्लॉक आकलन कहा गया है और यह तलाशी के नतीजे से 6 साल पहले तक की अघोषित कार्रवाई पर लागू होगी।
सीबीडीटी प्रमुख ने कहा, ‘आम तौर पर आयकर विभाग द्वारा तलाशी के बाद आकलन अधिकारी अघोषित आय और साक्ष्यों की जांच करते हैं। इसके बाद संबंधित व्यक्ति को कई नोटिस भेजे जाते हैं और सालों तक सुनवाई चलती है। इसमें काफी वक्त लग जाता है। अब अगर करदाता आयकर अधिकारी के निष्कर्षों को स्वीकार कर लेता है तो प्रत्येक ब्लॉक (6 साल का) के लिए एक सुनवाई होगी।’
उन्होंने कहा कि अगर करदाता अधिकारी द्वारा तलाशी गई अघोषित आय पर कर चुका देता है तो मामला खत्म हो जाएगा। लेकिन करदाता आकलन से ज्यादा अघोषित आय स्वीकार करता है तो अतिरिक्त रकम पर 50 फीसदी जुर्माना लगाया जा सकता है।
अग्रवाल ने कहा कि तलाशी के प्रावधानों के कारण कई कार्यवाही होती हैं, अलग-अलग साल के लिए नोटिस भेजे जाते हैं। इतने अधिक नोटिसों के कारण विवाद या मुकदमा बहुत लंबा खिंच जाता है। मगर एक ही सुनवाई हो तो पूरे ब्लॉक या 6 साल की अवधि के मामले का निपटान हो सकता है।
इस योजना का मुख्य उद्देश्य तलाशी के आकलन को अंतिम रूप देना, तलाशी के दौरान जांच में समन्वय करना और इसके तहत होने वाली कई कार्यवाहियां खत्म करना है। ब्लॉक अवधि से संबंधित कुल आय पर आयकर अधिनियम की धारा 113 (कर दरों से संबंधित) में बताई गई दर से कर वसूला जाएगा और पिछले वर्षों की आय को ध्यान में नहीं रखा जाएगा।