आय कर विभाग को अगर लगता है कि किसी एक कंपनी का दूसरी कंपनी पर पर्याप्त प्रभाव है, भले ही शेयरधारिता या बोर्ड नियंत्रण से संबंधित सीमाएं लागू न हों तो प्रस्तावित नए आयकर कानून के तहत कंपनियों के बीच लेनदेन को ट्रांसफर प्राइसिंग जांच के दायरे में लाया जा सकता है। यह एक ऐसा कदम होगा जिसका कंपनी जगत पर दूरगामी प्रभाव पड़ सकता है।
लोक सभा की प्रवर समिति ने सोमवार को मसौदा आय कर विधेयक, 2025 पर अपनी रिपोर्ट सदन के पटल पर रखी। रिपोर्ट में उसने एक अहम बदलाव की अनुशंसा करते हुए ट्रांसफर प्राइसिंग का दायरा बढ़ाने की पेशकश की है। प्रवर समिति की रिपोर्ट के मुताबिक एक दूसरे पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव रखने वाली कंपनियां, अंशधारिता या बोर्ड नियंत्रण जैसी औपचारिक सीमाओं को पूरा किए बिना भी संबद्ध उपक्रम मानी जा सकती हैं और उन्हें ट्रांसफर प्राइसिंग जांच के दायरे में लाया जा सकता है।
ट्रांसफर प्राइसिंग से तात्पर्य ऐसे कर नियमों से है जो संबंधित या संबद्ध उद्यमों के बीच लेनदेन की कीमत का नियमन करते हैं। खासतौर पर सीमा पार लेनदेन का। इनका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि उचित बाजार मूल्य सुनिश्चित हो तथा मुनाफे का हस्तांतरण रोका जा सके।
आय कर अधिनियम 1961 संबद्ध उद्यमों/संबंधित पक्षों को दो तरह से परिभाषित करता है। पहला एक सामान्य सिद्धांत जो कहता है कि कोई उपक्रम तब संबद्ध उपक्रम माना जाएगा जबकि उसके प्रतिभागी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी दूसरी कंपनी के प्रबंधन में हों या उस पर नियंत्रण अथवा उसमें पूंजी रखते हों। संबद्ध उद्यम की योग्यता के दूसरे कई पहलू भी हैं। मसलन 26 फीसदी मताधिकार, निदेशक मंडल की नियुक्ति में बहुमत, अन्य उपक्रमों पर कारोबारी निर्भरता आदि। उच्च न्यायालयों ने यह कहते हुए करदाताओं के पक्ष में निर्णय दिया है कि दोनों हिस्सों को निरंतरता में पढ़ा जाना चाहिए।
बहरहाल, चयन समिति की रिपोर्ट ने पहले और दूसरे हिस्से को मिला दिया है और इस तरह सभी प्रावधानों को स्वतंत्र बना दिया गया है तथा संबद्ध उद्यमों का दायरा भी विस्तृत कर दिया गया है। पीडब्ल्यूसी इंडिया के साझेदार कुंज वैद्य कहते हैं, ‘नए विधेयक की भाषा एक ऐसी स्थिति उत्पन्न करती है जहां प्रबंधन में कोई भागीदारी, पूंजी या नियंत्रण एक संबद्ध उद्यम खड़ा कर सकता है। यह व्याख्या अनचाहे परिणाम ला सकती है और इससे और अधिक वाद खड़े होंगे। विधेयक की भाषा ऐसी होनी चाहिए थी जो बताती कि किस सीमा स्तर की भागीदारी एक उद्यम को संबद्ध उद्यम बना देगी।’
इससे किसी समूह के भीतर या सीमा पार लेनदेन करने वाली कंपनियों का अनुपालन दायित्व बढ़ सकता है। खास तौर पर तब जब कि औपचारिक सीमा पूरी नहीं होती लेकिन व्यावहारिक प्रभाव रहता है।
एडवांटेज कंसल्टिंग के संस्थापक चेतन डागा कहते हैं, ‘कुछ अदालतों ने कहा है कि सामान्य परीक्षण और विशिष्ट परीक्षणों को अलग-अलग अपनाने की आवश्यकता है और अगर सामान्य परीक्षण संतुष्ट करते हैं किंतु विशिष्ट परीक्षण नहीं तो संबद्ध उद्यम का रिश्ता रहेगा। यह व्याख्या कर अधिकारियों के पक्ष में है। इसके विपरीत कुछ अदालतों ने इससे अलग नज़रिया अपनाते हुए कहा है कि अगर विशिष्ट परीक्षण संतुष्ट नहीं करते हैं तो सामान्य परीक्षण की जरूरत नहीं और संबद्ध उद्यम का मामला नहीं बनता है। यह व्याख्या करदाताओं के पक्ष में है। फिलहाल यह विवादित विषय है और अदालतों के ताजा निर्णय करदाताओं के पक्ष में व्याख्या की दिशा में झुके नजर आते हैं।’
एडवांटेज कंसल्टिंग के संस्थापक चेतन डागा ने कहा कि चयन समिति की रिपोर्ट में दोनों परीक्षणों को एक ही प्रावधान में रखकर विवाद को हल करने की कोशिश की गई है। उन्होंने कहा, ‘ऐसा लगता है कि सामान्य बनाम विशिष्ट की बहस नए विधेयक में लागू नहीं होती है। यह एक अहम बदलाव है जो ट्रांसफर प्राइसिंग के प्रावधानों के लागू होने का दायरा बढ़ा सकता है।’
इसके अलावा समिति ने कारोबारी नुकसान को आगे ले जाने की शर्त का विस्तार करते हुए इसमें लाभकारी स्वामित्व की निरंतरता को शामिल करने का प्रस्ताव दिया है न कि केवल कानूनी अंशधारिता को। मौजूदा कानून के अंतर्गत अगर कम से कम 51 फीसदी शेयरधारक समान रहते हैं तो घाटे को आगे ले जाया जा सकता है। समिति ने अब सिफारिश की है कि यह परीक्षण उन लोगों पर भी लागू किया जाए जो शेयरों से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष लाभ पाते हैं।
कर विशेषज्ञों के अनुसार इससे निजी इक्विटी या वेंचर कैपिटल फंड समर्थित कंपनियों के लिए अनुपालन मुश्किल हो सकता है क्योंकि उनमें शेयर कानूनन निवेश उपक्रम के पास होते हैं लेकिन उनके पीछे के वास्तविक निवेशक बदल सकते हैं या गुमनाम रह सकते हैं। डेलॉयट इंडिया के साझेदार रोहिंटन सिधवा ने कहा, ‘वास्तविक लाभार्थी का पता लगा पाना प्रशासनिक दृष्टि से मुश्किल हो सकता है खासतौर पर तब जबकि अंशधारक विदेशी फंड या पूल वाले उपक्रम हों।’
संशोधन का लक्ष्य कर चोरी रोकना है लेकिन इसका परिणाम सही कारोबार के लिए अनिश्चितता या कानूनी वाद-विवाद के रूप में भी सामने आ सकता है। खासतौर पर स्टार्टअप्स या विदेशी निवेश वाले फंड के मामलों में।
समिति ने मसौदा आय कर विधेयक 2025 में इस बात को लेकर भी अहम बदलाव की बात कही है कि आवास परिसंपत्ति से होने वाली आय पर कर कैसे लगे। इसके जरिये मकानों के मालिकों को राहत देने और चीजों को अधिक स्पष्ट करने का इरादा है।
मौजूदा कानून के तहत इस बात को लेकर भ्रम की स्थिति है कि आवास संपत्ति से होने वाली आय पर 30 फीसदी की मानक कटौती का आकलन नगरीय निकाय के करों की कटौती के बाद होना चाहिए या पहले। समिति ने अनुशंसा की है कि यह सीमा नगर निगम के करों की कटौती के बाद होनी चाहिए। इससे कर योग्य आय कम होगी।