इस साल अक्षय तृतीया (Akshay Tritiya) पर गोल्ड और सिल्वर ईटीएफ (Gold and Silver ETF) की मांग में जबरदस्त बढ़ोतरी देखी गई। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) द्वारा जारी किए गए डेटा के मुताबिक, पूरे इंडस्ट्री का कुल वॉल्यूम लगभग 2.9 गुना बढ़कर ₹644 करोड़ पहुंच गया जबकि पिछले साल यह ₹224 करोड़ पर था। इस तेज बढ़त से यह साफ है कि त्योहारों के मौके पर एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड्स (ETFs) एक आकर्षक निवेश विकल्प के रूप में तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं।
गोल्ड ईटीएफ (Gold ETF) में बीते एक साल में जबरदस्त तेजी देखने को मिली। 30 अप्रैल 2025 तक इनका ट्रेडिंग वॉल्यूम ₹130 करोड़ से 2.5 गुना बढ़कर ₹331 करोड़ हो गया। हालांकि, सिल्वर ईटीएफ (Silver ETF) ने और भी शानदार प्रदर्शन किया। इसका वॉल्यूम ₹95 करोड़ से 3.3 गुना की जबरदस्त ग्रोथ लेकर ₹313 करोड़ पहुंच गया। ट्रेडिंग वॉल्यूम के लिहाज से सिल्वर ईटीएफ इस साल का सबसे तेज ग्रोथ देने वाला सेगमेंट बन गया।
फिजिकल गोल्ड में निवेश करने वालों की संख्या भी बढ़ रही है, और इसके साथ ही यह जागरूकता भी बढ़ रही है कि खरीदे गए सोने की शुद्धता की जांच जरूरी है।
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वैल्यू रिसर्च के अनुसार, ट्रेडिंग वॉल्यूम में आई इस तेज बढ़ोतरी के पीछे कई अहम कारण हैं:
सुविधा (Convenience): निवेशकों को सोने या चांदी में निवेश करने के लिए अब उसकी शुद्धता या सुरक्षित स्टोरेज की चिंता नहीं करनी पड़ती। ETF को शेयर की तरह ही डिमैट अकाउंट के जरिए खरीदा-बेचा जा सकता है।
लागत में बचत (Cost efficiency): फिजिकल गोल्ड खरीदने पर मेकिंग चार्ज, स्टोरेज खर्च और शुद्धता का जोखिम जुड़ा होता है। इसके मुकाबले ETF में लेनदेन की लागत कम होती है और बेहतर लिक्विडिटी के कारण ट्रेडिंग में रुकावट नहीं आती।
निवेशकों की रुचि (Investor sentiment): पारंपरिक रूप से अक्षय तृतीया पर फिजिकल गोल्ड की बिक्री में तेजी देखने को मिलती है। अब यही रुझान एक्सचेंज पर भी नजर आ रहा है। इंडस्ट्री लेवल पर गोल्ड ईटीएफ का टर्नओवर सालाना आधार पर 2.5 गुना बढ़ा है जबकि सिल्वर ETF का टर्नओवर 3.3 गुना बढ़ा है। सिल्वर की तेज बढ़त यह संकेत देती है कि निवेशक अब सिर्फ गोल्ड तक सीमित नहीं हैं और पोर्टफोलियो में डायवर्सिफिकेशन (diversification) की ओर बढ़ रहे हैं।
उदाहरण के लिए बता दें कि FY25 में गोल्ड और सिल्वर ईटीएफ का औसत डेली वॉल्यूम, कुल ETF टर्नओवर का लगभग 60% था। यह दर्शाता है कि इन प्रोडक्ट्स की पकड़ भारतीय बाजार में लगातार मजबूत हो रही है।
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अक्षय तृतीया के दिन इंडस्ट्री-वाइड आंकड़ों के मुताबिक, गोल्ड ईटीएफ में औसत इम्पैक्ट कॉस्ट 20 बेसिस पॉइंट (bps) रही। हालांकि, कुछ प्रमुख ईटीएफ में यह लागत सिर्फ 2 bps तक ही रही। सिल्वर ईटीएफ में औसतन इम्पैक्ट कॉस्ट 32 bps रही, लेकिन सबसे ज्यादा लिक्विड ईटीएफ में यह घटकर लगभग 3 bps तक आ गई।
वैल्यू रिसर्च ने कहा, “हाई लिक्विडिटी से ईटीएफ अपने अंडरलाइन एसेट प्राइस को बेहतर तरीके से ट्रैक करते हैं, जिससे निवेशकों को ज्यादा सटीक एक्सपोजर मिलता है।”
हालांकि गोल्ड और सिल्वर ईटीएफ की लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है, लेकिन इनकी भूमिका पोर्टफोलियो में एकदम खास होती है। वैल्यू रिसर्च इसे विस्तार से समझाता है:
डाइवर्सिफायर (विविधता लाने वाले एसेट): ऐतिहासिक रूप से गोल्ड और सिल्वर का इक्विटी मार्केट से कम संबंध (low correlation) होता है। इस वजह से ये पोर्टफोलियो में जोखिम को कम करने में मददगार साबित होते हैं।
बेशकीमती धातु (प्रेशियस मेटल्स): आमतौर पर महंगाई बढ़ने या भू-राजनीतिक तनाव के समय बेहतर प्रदर्शन करते हैं। हालांकि, ये एसेट ग्रोथ देने वाले प्रमुख निवेश विकल्प नहीं माने जाते।
वैल्यू रिसर्च ने एक नोट में कहा, “लॉन्ग टर्म में इक्विटी ने गोल्ड और सिल्वर दोनों से बेहतर रिटर्न दिया है। उदाहरण के तौर पर, पिछले एक दशक में गोल्ड ने औसतन 7-8% सालाना रिटर्न दिया है, जबकि इक्विटी मार्केट ने करीब 12-14% सालाना रिटर्न दिया है। सिल्वर की बात करें तो उसमें थोड़ा अलग ट्रेंड देखा जाता है, क्योंकि यह आंशिक रूप से एक इंडस्ट्रियल मेटल भी है। इसलिए इसकी कीमतें मैन्युफैक्चरिंग डिमांड और निवेशकों की धारणा दोनों से प्रभावित होती हैं। यही वजह है कि सिल्वर ईटीएफ थोड़े ज्यादा वोलाटाइल हो सकते हैं, लेकिन जो निवेशक जोखिम समझते हैं उनके लिए यह एक दिलचस्प डाइवर्सिफायर बन सकता है।”