Annual insurance review: ज्यादातर निवेशक अपने निवेश पोर्टफोलियो का जायजा तो हर साल लेते हैं मगर अपने बीमा पोर्टफोलियो को पूरी तरह नजरअंदाज कर देते हैं। हकीकत यह है कि अगर आप अपने परिवार को वित्तीय रूप से पूरी तरह सुरक्षित रखना चाहते हैं तो बीमा पॉलिसी और पूरे बीमा पोर्टफोलियो की समीक्षा करते रहना बहुत
जरूरी है।
यह सुनिश्चित करें कि बीमा के जरिये आप अपने परिवार को जो सुरक्षा दे रहे हैं, वह उसकी लगातार बदलती जीवनशैली और वित्तीय लक्ष्यों के हिसाब से एकदम दुरुस्त है। फ्यूचर जेनराली इंडिया लाइफ इंश्योरेंस की मुख्य बीमा अधिकारी पेउली दास कहती हैं, ‘जीवन के हालात लगातार बदलते रहते हैं, इसलिए बीमा करवरेज पर हर साल ठीक से नजर डालना जरूरी है।’
जीवन के हर अहम पड़ाव पर अपना बीमा कवरेज बढ़ाएं। शादी ऐसा पहला अहम मोड़ है। दास कहती हैं, ‘शादी के बाद वित्तीय जिम्मेदारियां कई गुना बढ़ जाती हैं, इसलिए आपका टर्म बीमा कवर भी उसी हिसाब से बढ़ जाना चाहिए।’
संतान का जन्म भी जिंदगी का बहुत अहम मोड़ होता है। इसके बाद तीसरा बड़ा पड़ाव है मकान की खरीद, जिसके लिए ज्यादातर लोगों को आवास ऋण लेना ही पड़ता है। जैसे-जैसे आपका करियर आगे बढ़ता है, आपकी आमदनी भी बढ़ती जाती है।
बजाज आलियांज लाइफ इंश्योरेंस के वरिष्ठ कार्यकारी उपाध्यक्ष और उत्पाद प्रमुख मधु बुरुगुपल्ली कहते हैं, ‘आपके परिवार की जीवनशैली आपकी आमदनी के मुताबिक ही होती है। इसलिए आमदनी बढ़ने पर टर्म कवर में इजाफा अपने आप जरूरी हो जाता है।’
अगर हाल ही में आपका आवास ऋण या किसी और तरीके का ऋण पूरा हो गया है तो आप टर्म बीमा की राशि कम कर सकते हैं। पेउली दास कहती हैं, ‘आपके ऊपर आश्रित लोग जब वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर हो जाएं या उन्हें आपकी आमदनी की जरूरत न रह जाए तो भी आप देख सकते हैं कि आपको इतनी अधिक बीमा कवरेज चाहिए या नहीं।’ वित्तीय रूप से स्थायित्व हासिल करने के बाद भी टर्म कवर कम किया जा सकता है। लेकिन अगर आप अपने परिजनों को संपत्ति देना चाहते हैं या आपके इलाज का खर्च चुकाने लायक रकम उनके पास छोड़ना चाहते हैं तो आपको टर्म बीमा कवर चलाते रहना चाहिए।
पॉलिसी की अवधि ध्यान से चुनें ताकि जब तक आपकी वित्तीय देनदारी रहती है तब तक आपके पास बीमा की सुरक्षा भी बनी रहे। बुरुगुपल्ली कहते हैं, ‘मान लीजिए कि आप 70 साल की उम्र तक काम करने जा रहे हैं और आपके परिवार में कोई न कोई ऐसा है जो इस आमदनी पर निर्भर है, तो आपको ऐसा बीमा लेना चाहिए, जिससे कम से कम 70 साल की उम्र तक आपको सुरक्षा मिलती रहे।’
पेउली दास प्रीमियम पर भी नजर रखने की सलाह देती हैं। उनका कहना है कि बीमा लेते समय यह जरूर देखें कि प्रीमियम कम है या नहीं और पॉलिसी की पूरी अवधि तक प्रीमियम चुका पाएंगे या नहीं।
अगर आपकी टर्म पॉलिसी पहले से चल रही है तो उसकी सम एश्योर्ड यानी सुनिश्चित बीमा राशि बढ़ाना आपके लिए मुमकिन नहीं होगा। पॉलिसी एक्स डॉट कॉम के संस्थापक और मुख्य कार्य अधिकारी (सीईओ) नवल गोयल कहते हैं, ‘अगर आपको लगता है कि आपकी मौजूदा पॉलिसी में सम एश्योर्ड पर्याप्त नहीं है तो एक और पॉलिसी खरीदना सही रहेगा।’
पॉलिसी की रकम बेशक न बढ़ा पाएं मगर उसका साल पूरा होने पर आप उसमें कुछ राइडर जरूर जुड़वा सकते हैं। गोयल कहते हैं, ‘अगर आप ऐसी जगह नौकरी करते हैं, जहां जोखिम का माहौल है या आपके परिवार में पीढ़ियों से कोई गंभीर बीमारी चलती आई है तो आपको दुर्घटना बीमा लाभ, विकलांगता और गंभीर बीमारी का राइडर जोड़ना चाहिए।’ इसी तरह साल पूरा होने पर राइडर हटाया भी जा
सकता है।
बीमा करवरेज की राशि को भी आप घटा नहीं सकते। मधु बुरुगुपल्ली कहते हैं, ‘बड़ी रकम वाली एक पॉलिसी लेने के बजाय छोटे कवर वाली तीन पॉलिसी ले लीजिए, जो एक दूसरे से पांच-पांच साल बाद पूरी हो रही हों।’
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सबसे पहले तो यह देखें कि स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी में सम इंश्योर्ड या बीमा राशि पर्याप्त है अथवा नहीं। इसके लिए परिवार में सदस्यों की संख्या, शहर (महानगरों में इलाज ज्यादा महंगा पड़ता है) और उस अस्पताल का दर्जा ध्यान में रखना चाहिए, जहां आप इलाज के लिए जा सकते हैं।
यह भी ध्यान रखें कि चिकित्सा क्षेत्र में करीब दो अंकों की महंगाई रह सकती है। अगर तीन लोगों का परिवार है (सबसे बड़ा सदस्य 35 साल का है) तो फ्लोटर कवर कम से कम 15 से 20 लाख रुपये का होना चाहिए।
सना इंश्योरेंस ब्रोकर्स के सह-संस्थापक और बिक्री एवं सेवा प्रमुख नयन आनंद गोस्वामी कहते हैं, ‘भविष्य के लिए योजना बनाएं। जब आप सेहतमंद हों और किसी तरह का दावा नहीं किया हो तो बीमा राशि बढ़वाना आपके लिए सबसे आसान रहता है। लेकिन जब सेहत से जुड़ी दिक्कतें शुरू हो जाती हैं और दावे भी होने लगते हैं तो बीमा कंपनियां कवरेज बढ़ाने से इनकार भी कर सकती हैं।’
अगला सवाल यह उठता है कि बीमा राशि बढ़ाएं या सुपर टॉप-अप खरीदें? पॉलिसी की शर्तों में तो बदलाव नहीं हो सकता मगर मूल पॉलिसी की बीमा राशि बढ़ाना आपके लिए बेहतर रहेगा। केयर हेल्थ इंश्योरेंस के क्लेम और अंडरराइटिंग प्रमुख मनीष डोडेजा कहते हैं, ‘सुपर टॉप-अप के लिए अलग तरह की नियम और शर्तें हो सकती हैं। इनमें फायदा लेना और दावा करना ज्यादा कठिन हो सकता है। ’
मगर सुपर टॉप-अप किफायती होता है। गोस्वामी कहते हैं, ‘मूल बीमा पॉलिसी आम बीमारियों के लिए होनी चाहिए। गंभीर बीमारी होने की आशंका कम होती है, इसलिए उनके वास्ते सुपर टॉप-अप लेना चाहिए।’
बीमा कंपनियां अपने प्लान में नई-नई विशेषताएं भी जोड़ती रहती हैं, जिनमें से कई जरूरी भी होती हैं। आपकी मौजूदा बीमा पॉलिसी में अगर ये विशेषताएं न दिख रही हों तो आप उन्हें पोर्ट भी करा सकते हैं।
डोडेजा कहते हैं, ‘अब बीमा पॉलिसियों में टेलीफोन परामर्श, बहिरंग रोगी विभाग यानी ओपीडी कवरेज और सालाना स्वास्थ्य जांच जैसे कवरेज मिलते हैं जो काफी काम के हैं।’
रीचार्ज भी स्वास्थ्य बीमा में शुरू की गई जरूरी खासियत है। इसका फायदा यह है कि अगर परिवार के किसी एक सदस्य पर पूरी बीमा राशि खर्च हो जाती है तो रीचार्ज सुविधा के तहत उसे फिर से भर दिया जाता है।
इसके अलावा कंपनियां सुपर नॉन-क्लेम बोनस (एनसीबी) भी देती हैं। स्वास्थ्य बीमा में जब किसी साल कोई भी दावा नहीं लिया जाता तो बीमा कंपनी बोनस देती है। सुपर एनसीबी के तहत स्वास्थ्य बीमा कंपनियां अब ज्यादा बोनस देने लगी हैं। पहले हर साल बीमा राशि का 10 से 20 फीसदी तक ही नॉन-क्लेम बोनस
होता था।
डोडेजा कहते हैं, ‘अब कंपनियां दावा न होने पर बीमा राशि के 100 फीसदी तक बोनस देती हैं मगर यह अधिकतम 600 फीसदी ही होता है। यह नॉन रिड्यूसिंग होता है यानी दावा करने पर भी बोनस जस का तस बना रहता है।’
मगर मूल बीमा राशि और बोनस बीमा राशि में अंतर होता है। गोस्वामी कहते हैं, ‘कुछ पॉलिसियों में जब आप दावा करते हैं तो ऐड ऑन यानी अतिरिक्त बीमा राशि कम हो जाती है, लेकिन मूल बीमा राशि जस की तस रहती है। इसके अलावा रीचार्ज या रीस्टोर का फायदा भी अस्पताल में अगली बार भर्ती होने पर ही मिल पाता है। पहली बार भर्ती होने पर मूल बीमा राशि का इस्तेमाल ही किया जा सकता है।’
गोस्वामी की सलाह है कि बीमा पॉलिसी में कंज्यूमेबल्स की पूरी जानकारी ले लेनी चाहिए। अस्पताल के कुल बिल में आम तौर पर 10 फीसदी हिस्सेदारी इन्हीं की होती है और इनके खर्च की भरपाई बीमा कंपनी आपको तभी करती है, जब पॉलिसी में इनके बारे में साफ तौर पर लिखा होता है।
अंत में पॉलिसी में यह जरूर देख लें कि आपको कितने को-पेमेंट (अस्पताल के कुल बिल का निश्चित प्रतिशत मरीज को चुकाना पड़ता है) की जरूरत होगी और उसमें सब-लिमिट कितनी हैं। को-पेमेंट कम से कम होना चाहिए और सब-लिमिट तो बिल्कुल नहीं
होनी चाहिए।