साल 2023 में कंपनियों ने बाजार से अपने ही शेयर इतने ज्यादा खरीदे कि पुनर्खरीद यानी बायबैक के मामले में छह साल का रिकॉर्ड ही टूट गया। पिछले साल यानी 2023 में 48 कंपनियों ने करीब 47,810 करोड़ रुपये के शेयर बाजार से वापस खरीदे। साल 2017 के बाद यह सबसे अधिक बायबैक रहा।
प्राइम डेटाबेस के आंकड़ों के मुताबिक इसके पहले 2022 में 58 कंपनियों ने कुल 38,305 करोड़ रुपये के शेयरों की पुनर्खरीद की थी।
पिछले साल कई दिग्गज कंपनियों ने बायबैक को नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया। इनमें टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (17,000 करोड़ रुपये), लार्सन एंड टुब्रो (10,000 करोड़ रुपये) और विप्रो (12,000 करोड़ रुपये) शामिल हैं।
पिछले साल पीरामल एंटरप्राइजेज (1,750 करोड़ रुपये), हिंदुजा ग्लोबल सॉल्युशंस (1,020 करोड़ रुपये), त्रिवेणी इंजीनियरिंग ऐंड इंडस्ट्रीज (800 करोड़ रुपये) और गुजरात नर्मदा वैली फर्टिलाइजर्स ऐंड केमिकल्स (653 करोड़ रुपये) ने भी तगड़ी पुनर्खरीद की।
बायबैक या पुनर्खरीद के तहत कंपनी अपने अतिरिक्त शेयर खुद ही खरीद लेती है। इससे कंपनी के वित्तीय अनुपात जैसे प्रति शेयर कमाई (पी/ई रेश्यो) और रिटर्न ऑन इक्विटी में सुधार हो जाता है। बायबैक दो तरीके से किए जाते हैं-टेंडर और ओपन मार्केट। टेंडर तरीके में कंपनी अपने शेयर वापस खरीदने के लिए कीमत तय करती है।
शेयरधारक बायबैक के लिए तय कीमत पर कंपनी को शेयर सौंप देते हैं। ओपन मार्केट तरीके में कंपनी शेयर बाजार से शेयर खरीद लेती है। पिछले कुछ साल से बायबैक का तरीका काफी लोकप्रिय हुआ है क्योंकि इसमें शेयरधारकों को कर की बचत के साथ रकम लौटा दी जाती है। जिन कंपनियों में नकदी ज्यादा होती है और प्रवर्तक की हिस्सेदारी भी ज्यादा होती है, वहां अधिक नकदी शेयरधारकों को लौटाने के लिए लाभांश की जगह बायबैक को तरजीह दी जाती है।
पहले सरकार भी सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में विनिवेश के लिए बायबैक का इस्तेमाल करती रही है। विश्लेषकों का कहना है कि निवेशकों को बायबैक के समय शेयर वापस कर फायदा लेना चाहिए क्योंकि आम तौर पर कंपनियां बायबैक में शेयर का भाव बाजार भाव से ज्यादा ही रखती हैं।
अल्फानीति फिनटेक के सह-संस्थापक यूआर भट्ट कहते हैं, ‘अगर कंपनी के पास खूब नकदी आ रही है और उसे क्षमता विस्तार या नए कारोबार में जाने के लिए नकदी की फौरन जरूरत नहीं है तो वे बायबैक करने लगती हैं।
अक्सर कंपनियां बाजार भाव से ऊंची भाव पर बायबैक करती हैं, जिसमें निवेशकों को आर्बिट्राज (ज्यादा भाव पर शेयर कंपनी को सौंपकर और कम भाव पर बाजार से वापस खरीदकर मुनाफा काटने) का मौका मिल जाता है। प्रवर्तक (Promoter) और शेयरधारकों का एक वर्ग बायबैक में अपने शेयर वापस नहीं करता तो आर्बिट्राज का मौका बढ़ जाता है।’
पिछले कुछ साल में पुनर्खरीद पेशकश में आईटी कंपनियों का बड़ा योगदान रहा है। विश्लेषकों का कहना है कि आईटी कंपनियों को ज्यादा पूंजीगत खर्च नहीं करना होता है। इसीलिए नकदी का भंडार रखे रहने के बजाय शेयरधारकों को फायदा पहुंचाना उनके लिए बेहतर होता है।
इक्विनॉक्सि के संस्थापक जी चोकालिंगम कहते हैं, ‘पिछले कुछ वर्षों में डॉलर में उनकी (आईटी कंपनियों की) कमाई राजस्व निचले इकाई अंक में ही बढ़ी है। यदि कंपनियां नकदी दबाए बैठी रहेंगी तो लगाई गई पूंजी पर रिटर्न (आरओसीई) कम हो जाएगा। खास तौर पर बड़ी कंपनियां शेयरधारकों को पैसा लौटाने के लिए लाभांश (dividend) की जगह पुनर्खरीद का रास्त अख्त्यार करती हैं क्योंकि इसमें कर बच जाता है। छोटी और मझोली कंपनियों के लिए निवेशकों का ज्यादा भरोसा हासिल करने के वास्ते यह सही रहता है।’
चोकालिंगम कहते हैं कि बाजार भाव से ज्यादा कीमत मिले तो छोटे निवेशकों को शेयर बेच देने चाहिए। अगर उन्हें कंपनी के शेयर का मूल्यांकन वाजिब नहीं लग रहा है तो उन्हें बायबैक में ज्यादा से ज्यादा शेयर बेच देने चाहिए। मगर वह चेताते हैं कि बायबैक में हिस्सा लेने के लिए खुले बाजार से शेयर खरीदने कभी नहीं चाहिए क्योंकि बायबैक में दिए गए सभी शेयर कंपनी वापस नहीं खरीदती।