2 years of SEBI Chairperson: प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की अध्यक्ष के तौर पर माधवी पुरी बुच का पहला वर्ष तेज सुधारों पर केंद्रित रहा। वहीं अपने तीन वर्ष के पहले कार्यकाल के दूसरे वर्ष के दौरान बुच ने ज्यादा संतुलित दृष्टिकोण अपनाया और सुधार प्रक्रिया धीमी होने पर भी आम सहमति बनाने पर अधिक जोर दिया।
दृष्टिकोण में बदलाव स्पष्ट था क्योंकि सेबी ने करीब आधा दर्जन प्रमुख प्रस्तावों को ठंडे बस्ते में डाल दिया। नीतिगत क्रियान्वयन के लिए इंडस्ट्री स्टैंडर्ड फोरम्स (आईएसएफ) का गठन किया और बाजार सुधारों से संबंधित नए खुलासों के अमल में और समय दिया।
जिन सुधारों को ठंडे बस्ते में डाला गया, उनमें म्युचुअल फंड उद्योग के लिए टोटल एक्सपेंस रेशियो (टीईआर) ढांचा, अप्रकाशित कीमत संवेदी सूचना को फिर से परिभाषित करना, संदिग्ध कारोबारी गतिविधियों से संबंधित मानकों और डीलिस्टिंग नियमों में बदलाव शामिल थे।
उद्योग के शुरुआती विरोध के बावजूद सेबी की पहली महिला अध्यक्ष बुच सेकंडरी बाजारों (टी+1) के साथ साथ आईपीओ बाजार (टी+3) दोनों के निपटान चक्र में बदलाव लाने में सफल रहीं। इसके लिए इस पूर्व बैंकर ने बहुत प्रशंसा अर्जित की और वैश्विक नियामकों के बीच भारत की साख में भी सुधार किया।
भारत के 4.7 लाख करोड़ डॉलर के इक्विटी बाजार की निगरानी करने वाली 58 वर्षीय बुच ने यहीं ठहर जाने की योजना नहीं बनाई है और उन्होंने सेकंडरी बाजार के लिए एक ही दिन और तत्काल निपटान चक्र की ओर बढ़ने जैसा महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। सेबी ऐसे सौदों के निपटान के लिए नई भुगतान प्रणाली को भी अंतिम रूप दे रहा है जिसमें पैसा निवेशकों के बैंक खाते में बना रहेगा, जिससे ब्रोकर इसका गलत इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे।
बुच के दूसरे वर्ष के दौरान सेबी ने ऋण सेगमेंट की मदद के लिए रीपो क्लीयरिंग और बैकस्टॉप सुविधा भी पेश की। नियामक ने आईपीओ के लिए मंजूरी प्रक्रिया भी मजबूत बनाई और शेयरों की कीमतों में जोड़तोड़ करने वाले फिन-इनफ्लूएंसर और टीवी विशेषज्ञों के खिलाफ शिकंजा कसने पर जोर दिया। हालांकि फिनफ्लूएंसरों से जुड़े लोगों को प्रतिबंधित करने के प्रस्ताव को अभी मंजूरी नहीं मिली है।
दूसरा वर्ष चुनौतियों भरा भी रहा क्योंकि सेबी को एनएसई कोलोकेशन मामले, कार्वी मामले में गिरवी शेयरों के लिए ऋणदाताओं की अपील और जी एंटरटेनमेंट जैसे मामलों में प्रतिभूति अपील पंचाट (सैट) के समक्ष कुछ झटकों का सामना करना पड़ा। एनएसई को-लोकेशन मामले में सेबी द्वारा लगाए गए जुर्माने को सैट ने रद्द कर दिया था।
अमेरिका स्थित हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा अदाणी समूह के खिलाफ लगाए गए आरोपों की जांच में बाजार नियामक को भारी संसाधन भी तैनात करने पड़े। अदाणी मामले के कारण नियामक ने एफपीआई खुलासा मानदंडों को और कड़ा किया है। अपने आखिरी वर्ष में बुच सौदों की इंस्टैंट-डिलिवरी जैसे कुछ सुधारों पर ध्यान देंगी, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि वे अपने पीछे एक समृद्ध व्यवस्था छोड़कर जा रही हैं। अदाणी और जी मामले में सेबी के संभावित आदेशों पर भी बाजार कारोबारियों की नजर बनी रहेगी।