facebookmetapixel
भारत सरकार का बड़ा फैसला: काबुल में अपने टेक्निकल मिशन को दिया दूतावास का दर्जासोने और चांदी में निवेश करने से पहले जान लें कि ETF पर कैसे लगता है टैक्सMarket This Week: विदेशी निवेशकों की वापसी, 3 महीने की सबसे बड़ी साप्ताहिक बढ़त; निवेशकों ने वेल्थ ₹3.5 लाख करोड़ बढ़ीस्टॉक या MF में नहीं लगाना पैसा! AIF है नया विकल्प, कैसे शुरू कर सकते हैं निवेशइ​क्विटी MF में लगातार दूसरे महीने गिरावट, सितंबर में ₹30,421 करोड़ आया निवेश; Gold ETF में करीब 4 गुना बढ़ा इनफ्लोमुकेश अंबानी की RIL के Q2 नतीजे जल्द! जानिए तारीख और समय2025 में रियल एस्टेट को बड़ा बूस्ट, विदेशी और घरेलू निवेशकों ने लगाए ₹75,000 करोड़Canara HSBC Life IPO: ₹2516 करोड़ का आईपीओ, प्राइस बैंड ₹100-₹106; अप्लाई करने से पहले चेक करें डिटेल्सNobel Peace Prize 2025: ट्रंप की उम्मीदें खत्म, वेनेजुएला की मारिया कोरिना मचाडो को मिला शांति का नोबेलTata Capital IPO का अलॉटमेंट हुआ फाइनल; जानिए ग्रे मार्केट से क्या संकेत मिल रहे हैं

भारत की लिस्टेड कंपनियों में FPIs की हिस्सेदारी जून 2010 के बाद सबसे कम, पिछली दो तिमाहियों में ₹2.43 लाख करोड़ निकाले

भारत में एफपीआई निवेश मार्च 2015 की तिमाही में हाई पर था। तब विदेशी निवेशकों के पास भारत की टॉप लिस्टेड कंपनियों में से 25.7 प्रतिशत की हिस्सेदारी थी।

Last Updated- March 20, 2025 | 11:15 AM IST
FPI

विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) की हालिया बिकवाली भारतीय इक्विटी में निवेश घटाने के एक दशक से चले आ रहे रुझान का ही एक हिस्सा है। एफपीआई ने पिछली दो तिमाहियों में कुल मिलाकर लगभग 2.43 लाख करोड़ रुपये (लगभग $28.3 बिलियन) के भारतीय इक्विटी बेचे हैं। इससे लिस्टेड कंपनियों में उनकी हिस्सेदारी और कम हो गई है।

भारतीय इक्विटी में एफपीआई की हिस्सेदारी 2015 के अपने चरम से लगातार घट रही है। दिसंबर 2024 के अंत में उनकी हिस्सेदारी 19.1 प्रतिशत थी, जो सितंबर 2024 के अंत में 18.8 प्रतिशत से थोड़ी अधिक थी। लेकिन अभी भी जून 2010 के बाद से सबसे कम है, जब यह 18.2 प्रतिशत थी।

एफपीआई ने पिछली 20 तिमाहियों में से 14 में और पिछली 40 तिमाहियों में से 24 में अपनी हिस्सेदारी (तिमाही आधार पर) घटाई है। इसके विपरीत, उन्होंने जून 2005 से मार्च 2015 के बीच 40 तिमाहियों में से 15 में हिस्सेदारी घटाई थी।

विश्लेषकों का अनुमान है कि चालू तिमाही में भारतीय इक्विटी में एफपीआई का स्वामित्व और घटेगा। यह विश्लेषण बीएसई 500, बीएसई मिडकैप और बीएसई स्मॉलकैप इंडेक्स में लिस्टेड 1,176 कंपनियों के तिमाही-अंत प्रमोटर हिस्सेदारी और मार्केट कैप डेटा पर आधारित है। इनका बुधवार तक टोटल मार्केट कैप ₹382.3 लाख करोड़ था। यह सभी बीएसई-लिस्टेड कंपनियों के कुल मार्केट कैप का 94.4 प्रतिशत है।

इस सैंपल में नमूने को प्रमुख विलय और अधिग्रहणों के लिए समायोजित किया गया है, जिसमें एचडीएफसी का एचडीएफसी बैंक के साथ विलय, हिंदुस्तान यूनिलीवर का जीएसके कंज्यूमर का अधिग्रहण, सेसा स्टरलाइट का स्टरलाइट इंडस्ट्रीज के साथ विलय और आदित्य बिड़ला नुवो का ग्रासिम इंडस्ट्रीज के साथ विलय शामिल है।

मार्च 2015 तिमाही में हाई पर था एफपीआई निवेश

भारत में एफपीआई निवेश मार्च 2015 की तिमाही में हाई पर था। तब विदेशी निवेशकों के पास भारत की टॉप लिस्टेड कंपनियों में से 25.7 प्रतिशत की हिस्सेदारी थी। लेटेस्ट गिरावट के साथ एफपीआई की हिस्सेदारी अब अपने हाई से 660 आधार अंक या लगभग एक चौथाई कम हो गयी है।

विश्लेषकों का कहना है कि एफपीआई निवेश में “संरचनात्मक” गिरावट आई है, जो मुख्य रूप से भारत में कॉर्पोरेट आय वृद्धि में मंदी के कारण है। सिस्टमैटिक्स इंस्टीट्यूशनल इक्विटी में शोध और इक्विटी रणनीति के सह-प्रमुख धनंजय सिन्हा ने कहा, “वास्तव में, एफपीआई ने पिछले एक दशक में भारतीय इक्विटी बाजार में भागीदारी की सामान्य कमी दिखाई है।”

सिन्हा ने कहा, “भारतीय कंपनियों की आय वृद्धि में अंतर जो कभी उनकी वैश्विक प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले था, वह कम हो गया है, जिससे एफपीआई भारत में अपना निवेश कम कर रहे हैं।”

सिन्हा ने कहा, “इसके विपरीत, 2004-2015 की अवधि में एफपीआई मजबूत भागीदार थे। सिवाय 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट और 2012 के यूरोज़ोन संकट के, जब वे थोड़े समय के लिए नेट सेलर बन गए थे।” उन्हें उम्मीद है कि जब तक कॉर्पोरेट आय में सुधार नहीं होता, एफपीआई निकट भविष्य में मुनाफावसूली जारी रखेंगे।

भारतीय इक्विटी में एफपीआई की हिस्सेदारी सितंबर 2004 में 18.5 प्रतिशत से बढ़कर जून 2007 में 21.2 प्रतिशत हो गई, जो 2008 के वित्तीय संकट के बाद बिकवाली शुरू होने से पहले 25.7 प्रतिशत के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई, जिससे मार्च 2009 की तिमाही तक उनकी हिस्सेदारी घटकर 16.8 प्रतिशत के रिकॉर्ड निम्नतम स्तर पर आ गई।

हाल ही में एफपीआई की बिकवाली के कारण भारत में उनके संचयी शुद्ध निवेश (खरीद मूल्य या बुक वैल्यू पर) में मामूली वृद्धि ही हुई है। अब तक, उनका संचयी शुद्ध निवेश लगभग 200 बिलियन डॉलर है, जो दिसंबर 2020 तिमाही के लगभग बराबर है।

First Published - March 20, 2025 | 10:48 AM IST

संबंधित पोस्ट