शेयर बाजार पर एक्सचेंज ट्रेडेड फंडों (ETF) में अदला-बदली के सौदों का मूल्य 1 लाख करोड़ रुपये के पार पहुंच गया है, लेकिन बढ़ते इस प्रवाह का मतलब हो सकता है कि निवेशकों को कुछ खास मौकों पर निवेश से निकलने में मुश्किल होगी।
ETF की वैल्यू 2018-19 से करीब तीन गुना बढ़कर 2022-23 में 1.2 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गई। ETF में निवेशित पूंजी का मूल्य 2018-19 के स्तरों से करीब चार गुना बढ़कर मार्च 2023 तक 5.1 लाख करोड़ रुपये हो गया। इसका मतलब है कि निवेशक महामारी से पहले के मुकाबले अब स्टॉक एक्सचेंज पर ETF यूनिट बेचकर अपना निवेश भुनाने में ज्यादा समय लेंगे।
कारोबारी मूल्य 2018-19 में औसत परिसंपत्तियों का 39.9 प्रतिशत था। यह 2022-23 के 25.5 प्रतिशत से कम है।
निप्पॉन इंडिया ऐसेट मैनेजमेंट के कार्यकारी निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी (CEO) संदीप सिक्का का मानना है कि कम तरलता से ETF निवेशकों का खर्च बढ़ सकता है। इसकी वजह से ETF और इंडेक्स की वैल्यू के बीच अंतर संबंधित समस्या भी पैदा हो सकती है। साथ ही, इम्पैक्ट कोस्ट का भी प्रभाव पड़ेगा। इम्पैक्ट कोस्ट तरलता कम होने पर बड़े ऑर्डरों की वजह से कीमत बदलाव से संबंधित होती है। ज्यादा इम्पैक्ट कोस्ट से प्रतिफल प्रभावित होता है।
सिक्का के अनुसार, वैश्विक तौर पर, ज्यादा ट्रेडिंग वॉल्यूम और तरलता वाले ETF निवेशकों को अधिक पसंद आते हैं। उन्होंने कहा, ‘ETF उद्योग पर वैश्विक रूप से उन कुछ परिसंपत्ति प्रबंधकों का दबदबा है, जो ज्यादा तरलता से जुड़े हुए हैं।’
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वैल्यू रिसर्च के मुख्य कार्याधिकारी धीरेंद्र कुमार का मानना है कि बड़े ब्लू-चिप से अलग अन्य शेयरों पर आधारित ETF को कम कारोबारी गतिविधि की वजह से कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। उनका कहना है कि निफ्टी कंपनियों से जुड़े कई लिक्विड ETF प्रभावित नहीं होंगे। ETF में ज्यादा पैसा लगने से कारोबारी गतिविधि को भी बढ़ावा मिल सकता है, जिससे अन्य विकल्पों की सफलता प्रभावित होगी।
ETF सेगमेंट तेजी से लोकप्रिय हुआ है, क्योंकि इन्हें सक्रिय तौर पर प्रबंधित म्युचुअल फंडों के किफायती विकल्पों के तौर पर देखा जाता है। कई नए फंड थीमेटिक हैं, जिसका मतलब है कि वे ब्लू-चिप से अलग शेयरों में निवेश करते हैं।
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2018-19 में ETF सेगमेंट में करीब 1 लाख करोड़ रुपये का प्रवाह दर्ज किया गया और करीब 57,000 करोड़ रुपये की निकासी हुई। शुद्ध पूंजी प्रवाह 43,351 करोड़ रुपये रहा। 2022-23 में प्रवाह बढ़कर 1.6 लाख करोड़ रुपये हो गया और निकासी 97,000 करोड़ रुपये रही।
ETF की संख्या जहां 2018-19 में 78 थी, वहीं 2022-23 में यह बढ़कर 172 हो गई।