केंद्र सरकार उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना को क्रियान्वित करने वाली एजेंसियों पर सख्ती बरत सकती हैं। सूत्रों ने बताया कि सरकार पक्का करना चाहती है कि ये एजेंसियां अपने अधिकारों का गलत इस्तेमाल नहीं करें।
इस समय कुल 14 PLI योजनाएं चल रही है, जिन पर नजर रखने का जिम्मा पांच परियोजना निगरानी एजेंसियों पर है। ये एजेंसियां भारतीय औद्योगिक वित्त निगम (IFCI), भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी), मेटलर्जिकल ऐंड इंजीनियरिंग कंसल्टेंट्स लिमिटेड (मेकॉन इंडिया), भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास संस्था (IREDA) और भारतीय सौर ऊर्जा निगम (SECI) हैं।
हालांकि ये सभी सरकारी कंपनियां हैं मगर वे PLI योजना शुरू करने वाले मंत्रालयों को प्रबंधन एवं क्रियान्वयन में मदद करने के लिए जिम्मेदार हैं। ये एजेंसियां PLI योजना के अंतर्गत PLI आवेदनों के मूल्यांकन, प्रोत्साहन की अर्हता के निर्धारण, योजना के प्रदर्शन एवं इसकी प्रगति पर नजर रखने जैसी गतिविधियां अंजाम देती हैं।
एक सूत्र ने कहा कि इन एजेंसियों पर संबंधित मंत्रालय नजर रखते हैं और ये उन्हीं के प्रति जवाबदेह भी होती हैं। मगर नीति आयोग ने चिंता जताई है कि इन एजेंसियों को आवश्यकता से अधिक अधिकार दे दिए गए हैं। आयोग मंत्रालयों को ये सुनिश्चित करने के लिए कहेगा कि इन एजेंसियों में भ्रष्टाचार किसी कीमत पर नहीं हो सके।
एक सूत्र ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बाताया, ‘शीर्ष सरकारी अधिकारियों के बीच इस बात पर विचार चल रहा है कि निगरानी एजेंसियों को जरूरत से ज्यादा अधिकार तो नहीं दे दिए गए हैं। वे इस बात पर भी माथापच्ची कर रहे हैं कि ऐसा क्या किया जाए ताकि ये एजेंसियां अपने अधिकारों का गलत इस्तेमाल नहीं करें, किसी तरह की धोखाधड़ी नहीं हो या कोई भी कंपनी अपने चयन के लिए उन्हें प्रभावित नहीं कर सके।’
सूत्र ने कहा कि इसके लिए नीति तैयार की जाएगी। उन्होंने कहा कि PLI जैसी बड़ी एवं महत्त्वपूर्ण योजना सरकार की शीर्ष प्राथमिकता है और वह इसे किसी भी सूरत पर नाकाम होते नहीं देखना चाहती।
इलेक्ट्रिक वाहनों को सब्सिडी देने की योजना फेम में धांधली के आरोपों के बाद सरकार चौकस हो गई है। सूत्र ने कहा, ‘PLI योजना के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी परियोजना निगरानी एजेंसियों को इसलिए दी गई है क्योंकि मंत्रालयों के पास प्रत्येक चरण पर नजर रखने के लिए न तो आवश्यक संसाधन हैं और न ही क्षमता है।’
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व्यापार मंत्रालय में अधिकारी रह चुके और ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव (GTRI) के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा कि सरकार को सभी निगरानी एजेंसियों के लिए एकसमान दिशानिर्देश सुनिश्चित करने चाहिए, जिन्हें सभी मंत्रालय लागू कर सकें। उन्होंने कहा कि दिशानिर्देश जारी करने से पहले सरकार को PLI योजना के लाभार्थियों के साथ बात करनी चाहिए।
केंद्र सरकार ने दूरसंचार, कपड़ा, वाहन सहित 14 क्षेत्रों के लिए PLI योजनाओं के तहत 1.97 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। इसका मकसद देश को विनिर्माण का अड्डा बनाना ही नहीं है बल्कि देश में बनने वाले सामान को कीमत के लिहाज से प्रतिस्पर्द्धी बनाना, रोजगार के मौके उत्पन्न करना, सस्ता आयात रोकना और निर्यात को बढ़ावा देना भी है।
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हालांकि PLI योजना उम्मीद के अनुसार आगे नहीं बढ़ पाई है। PLI योजना का यह तीसरा साल है मगर अब तक लाभार्थियों को प्रोत्साहन के रूप में मात्र 2,900 करोड़ रुपये ही दिए गए हैं।