मौजूदा उतारचढ़ाव और रुक-रुक हो रही गिरावट के बावजूद तकनीकी विश्लेषकों को साल 2024 में सेंसेक्स 85,000 के स्तर पर और निफ्टी 25,000 के स्तर पर पहुंचने की उम्मीद है। इसका मतलब यह हुआ कि दोनों सूचकांकों में मौजूदा स्तर से क्रमश: 53 फीसदी व 51 फीसदी की बढ़ोतरी होगी।
निफ्टी का 100 हफ्ते का मूविंग एवरेज 15,300 है, जिसे इंडेक्स ने मजबूती से बनाए रखा और हालिया गिरावट में उसमें बदलाव में कामयाब रहा। अगर निफ्टी साप्ताहिक बंद आधार पर 16,800 को बनाए रखता है तो यह इंडेक्स अक्टूबर 2021 के बाद की गिरावट से उबर जाएगा बल्कि धीरे-धीरे 25,500 की ओर बढ़ चलेगा। ये चीजें एलियट वेव थ्योरी में कही गई हैं।
दूसरी ओर सेंसेक्स 85,000 की ओर जाएगा। इस संबंध में बढ़त के रुख की पुष्टि तब होगी जब इंडेक्स 57,000 के स्तर को छू लेगा और अच्छे वॉल्यूम के साथ बढ़त को एकीकृत करेगा।
एचडीएफसी सिक्योरिटीज के वरिष्ठ विश्लेषक नंदीश शाह के मुताबिक, निफ्टी के लिए 16,800 से 17,000 का स्तर अहम होगा। उन्होंने कहा, मेरी राय में बैंक व आईटी शेयरों की मांग होगी जब एफआईआई भारत की ओर दोबारा आएंगे। यह लंबी अवधि में मुख्य सूचकांकों को ऊपर ले जाएगा।
हालांकि ऐसे महत्वाकांक्षी लक्ष्य हासिल करने के लिए पहले फंडामेंटल स्तर पर कई चीजें दुरुस्त करनी होंगी। इनमें सबसे ऊपर होगी तरलता यानी नकदी।
वैश्विक केंद्रीय बैंकों खास तौर से अमेरिकी फेडरल रिजर्व की तरफ से ब्याज बढ़ोतरी से विदेशी निवेशक उभरते बाजारों से निकल रहे हैं। भारत से उन्होंने पिछले नौ महीने में 33 अरब डॉलर की निकासी की है। विश्लेषकों को उम्मीद है कि फेडरल रिजर्व साल 2022 में ज्यादातर समय ब्याज दरें बढ़ाए रखेगा और साल 2023 के दूसरे हिस्से में बढ़त को सहारा देने के लिए इसमें बदलाव होगा जब महंगाई की चिंता कम हो जाएगी।
नोमूरा के कार्यकारी निदेशक और अमेरिकी अर्थशास्त्री ए अमेमिया ने हालिया नोट में कहा है, सालाना आधार पर मुख्य महंगाई नरम होकर 2-2.5 फीसदी पर आने तक फेडरल रिजर्व ब्याज दरों को उच्चस्तर पर बनाए रख सकता है। मेरा मानना है कि उस समय फेड हर बैठक में ब्याज दरें 25 आधार अंक कम करेगा, जिसकी शुरुआत सितंबर 2023 से होगी।
विश्लेषकों ने कहा, इससे विदेशी निवेश भारत समेत उभरते बाजारों की ओर लौटेगा, जिससे जोखिम वाली अवधारणा सुधारने और बाजारों को ऊपर की ओर जाने में मदद मिलेगी।
निर्मल बांग के मुख्य कार्याधिकारी राहुल अरोड़ा ने कहा, अच्छी बात यह है कि बाजार हमेशा ही चिंता की दीवार लांघ लेता है और नई ऊंचाई पर पहुंचने की राह तलाश लेता है। इस बात की पूरी संभावना है कि इस साल दीवाली के आसपास भारतीय बाजार में विदेशी रकम आने लगेगी।
विश्लेषकों ने कहा, बढ़त की रफ्तार में तेज गिरावट, उच्च महंगाई और कंपनियों की आय पर उसका असर अल्पावधि में भारतीय बाजारों के लिए एकमात्र सबसे बड़ा जोखिम बना हुआ है। हालांकि जब महंगाई की चिंता दूर होगी और आपूर्ति की समस्या घटेगी तब भारतीय कंपनी जगत बढ़त की बेहतर रफ्तार दर्ज करने में सक्षम होगा। यह इक्विटी गुणक को सहारा देगा।
क्रेडिट सुइस वेल्थ मैनेजमेंट के विश्लेषकों के मुताबिक, सर्वोच्च स्तर से गिरावट से निफ्टी का 12 महीने का फॉरवर्ड पीई अनुपात 17.6 गुना दिख रहा है जबकि 10 साल का औसत 16.9 गुना है, जो बताता है कि भारतीय इक्विटी का मूल्यांकन का मामला निपट गया है। जब तेल की कीमतें घटनी शुरू होंगी तब उनका मानना है कि एफपीआई की निकासी भी रुक जाएगी।
इक्विनॉमिक्स रिसर्च के संस्थापक जी चोकालिंगम ने कहा, इन स्तरों पर भारतीय बाजारों के पहुंचने के लिए केंद्रीय बैंक के कदम अगले दो साल में अनुकूल होने चाहिए। इसके अलावा देश में कंपनियों की आय अगले दो साल में हर साल 20-20 फीसदी बढ़नी चाहिए।
