डेरिवेटिव सेगमेंट में सुरक्षा उपायों के तहत उठाए जाने वाले कदमों की नई श्रृंखला में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) जोखिम प्रबंधन उपायों पर विचार कर रहा है। इसके मानकों के लिए ओपन इंटरेस्ट के बजाय फ्यूचर्स इक्विवेलेंट पर विचार किया जा रहा है। सेबी के पूर्णकालिक सदस्य अनंत नारायण ने शनिवार को कहा कि नियामक फ्यूचर इक्विलेंट मानकों पर अमल की संभावना तलाश रहा है जिससे 20 फीसदी की मौजूदा मार्केट-वाइड पोजीशन लिमिट की समीक्षा भी हो सकती है।
हालांकि, अधिकारी ने स्पष्ट किया कि ये उपाय कारोबार को आसान बनाने के लिए हैं और इनसे वायदा और विकल्प (एफऐंडओ) बाजार की गतिविधियों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। उन्होंने कहा, ‘हमें कोई जल्दी नहीं है।’ उन्होंने कहा कि सेबी उचित परामर्श के बाद ही आगे बढ़ेगा। यह चर्चा एकल शेयरों के एफ ऐंड ओ जोखिम को कम करने के इर्द-गिर्द होगी।
उनकी यह टिप्पणी बाजार नियामक के हाल में उठाए गए कदमों के बाद आई है, जिनके कारण इनके लागू होने के शुरुआती चरण में ही एफऐंडओ सेगमेंट में कारोबार में 30 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है।
अधिकारी ने कहा कि सेबी भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व कार्यकारी निदेशक जी पद्मनाभन की अध्यक्षता में गठित डेरिवेटिव बाजारों पर विशेषज्ञ समिति के सुझावों पर विचार करेगा।
जोखिम प्रबंधन के लिए फ्यूचर इक्विवेलेंट मानक नए उपायों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि नकदी और डेरिवेटिव बाजारों के बीच सहसंबंध बना रहे। कोई एकतरफा बाजार ऐसी स्थितियां पैदा कर सकता है जिनसे हेरफेर या अनावश्यक अस्थिरता पैदा हो सकती है।
इस समय आउट-ऑफ-द-मनी स्ट्राइक ऑप्शन की ज्यादा ट्रेडिंग से ऑप्शन में बड़ा ओपन इंटरेस्ट पैदा हो सकता है जिससे मार्केट वाइड पोजीशन लिमिट प्रभावित हो सकती है और शेयर में प्रतिबंध की अवधि लागू हो जाती है। सेबी अधिकारी ने कहा कि ऐसी स्थितियों से फर्जी प्रतिबंध अवधि पैदा हो सकती है, जहां संबंधित जोखिम बहुत बड़ा नहीं होता और फिर भी शेयर पर एक अवधि के लिए को प्रतिबंध लग जाता है।
सेबी इसकी भी समीक्षा कर सकता है कि म्युचुअल फंडों में डेरिवेटिव के निवेश को किस प्रकार मापा जाता है। पूर्णकालिक सदस्य ने स्पष्ट किया कि नियामक इस बात पर कोई बदलाव करने पर विचार नहीं कर रहा है कि डेरिवेटिव बाजार में कौन कारोबार कर सकता है।