फंड प्रबंधक कंपनियों के बहीखाते में पारदर्शिता लाने के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। यह कहना है सुंदरम बीएनपी पारिबा ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी के प्रबंध निदेशक टी पी रामन का।
साल 1996 में स्थापित की गई यह कंपनी आज लगभग 9,267.06 करोड़ रुपये के फंड का प्रबंधन कर रही है। बाजार के मौजूदा हालात, फंड प्रबंधन और जोखिम के बारे में टी पी रमन से बात की पलक शाह ने। पेश हैं मुख्य अंश:
अमेरिका के वित्त मंत्री टिम गाइटनर के 10 खरब डालर के बेलआउट पैकेज की घोषणा के बाद से हालात काफी सुधरे हैं। हालात पूरी तरह सुधरने में और कितना वक्त लगेगा?
अमेरिका और दुनिया भर के देशों की सरकार द्वारा दिए गए पैकेज को बाजार ने काफी अच्छी प्रतिक्रिया दी है। हाल ही में हुई जी- 20 देशों की बैठक बाजार के लिहाज से काफी अच्छी रही है। लेकिन यह बात भी ध्यान में रखनी चाहिए कि पिछले कई दशकों से हमने इतने बुरे आर्थिक हालात का सामना नहीं किया था। इसीलिए किसी भी सरकार के फैसलों को इसी नजर से देखना चाहिए। हमें हालात सुधरने के लिए कम से कम 6 से 12 महीने रुकना चाहिए।
आपको घरेलू बाजार के हालात देखकर क्या लगता है?
घरेलू हालात थोड़े समय में सुधरने लगेंगे और अमेरिका से और कोई बुरी खबर नहीं आई तो बाजारों में स्थिरता आएगी। इसके अलावा पिछले 2 हफ्तों में देश में काफी विदेशी रकम आई है। अगर चुनाव के बाद कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी में से किसी की भी सरकार आती है तो बाजार में स्थिरता आएगी।
एआईजी और मेरिल के बोनस को लेकर लोगों ने जो गुस्सा जाहिर किया था, उससे फंड प्रबंधकों द्वारा जोखिम लेने पर क्या असर पड़ा है?
यह बात समझनी चाहिए कि एआईजी और मेरिल प्रबंधन व नियामकों की असफलता के इक्के दुक्के मामले हैं। आर्थिक संकट से जूझ रही कंपनियों में बोनस देने की बात से अमेरिकी वित्तीय तंत्र में मौजूद खराबी उजागर हुई है। इसके साथ ही उसकी विश्वसनीयता और फैसले लेने की क्षमता पर भी सवाल खड़ा हुआ है। वहां की कंपनियां झूठा मुनाफा दिखा रही थीं। अगर भारतीय बाजार के बारे में बात करें तो यहां कंपनियां सही मुनाफा दिखाती हैं। इसीलिए फंड मैनेजरों द्वारा जोखिम लेने पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
बाजार को चौथी तिमाही में भारतीय कंपनियों का मुनाफा घटने की आशंका है। आप इन हालात को कैसे देखते हैं?
अधिकतर कंपनियों ने अपनी विस्तार परियोजनाएं टाल दी हैं। इसके साथ ही बाजार की ओर से मांग भी नहीं बढ़ रही है। इसीलिए मुमकिन है कि कंपनियों के बहीखातों में थोड़ा तनाव रहे।
जिन फंड कंपनियों ने मंदी की मार से जूझ रहे क्षेत्र जैसे कि रियल एस्टेट में निवेश किया है, उनके लिए इससे निकलने के क्या रास्ते हैं?
देखिए असल दिक्कत थी बाजार में तरलता की कमी। इससे कई क्षेत्रों पर काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ा खासतौर पर रियल एस्टेट उद्योग पर। हालांकि अब सरकार मौद्रिक तंत्र में रकम का प्रवाह बढ़ा रही है और साथ ही ब्याज दर भी कम कर रही है। इससे तरलता बढ़ेगी और मुझे उम्मीद है कि बदले हुए इन आर्थिक हालात का फायदा रियल एस्टेट को भी होगा।
सत्यम के बाद भारतीय कंपनियों के लेखा प्रबंधन पर सवाल उठने लगे हैं। कंपनियों के बहीखातों में पूरी पारदर्शिता बरती जाए आपके हिसाब से इसकी जिम्मेदारी किसकी होनी चाहिए?
मेरा मानना है कि बहीखातों का सही प्रबंधन करना कंपनी प्रबंधन के हाथ में होता है। लेकिन अगर वह ऐसा करने में सफल नहीं होते हैं तो फिर नियामक और सरकार को सामने आकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कंपनियां अपने आंकड़े बढ़ा-चढ़ाकर नहीं दिखाए।
