अपने पैसे पर मोटा रिटर्न कमाने की चाहत रखने वालों के बीच म्युचुअल फंड एक लोकप्रिय विकल्प बन गया है। मगर यह समझना भी जरूरी है कि कौन-सा म्युचुअल फंड सही है और उस पर कितना कर लगता है। इसके साथ ही यह जानकारी भी जरूरी है कि ज्यादा रिटर्न कमाने और कम कर देनदारियों के लिए क्या करना चाहिए।
सिंगल होल्डिंगः जैसा इसका नाम है वैसी ही इसकी पहचान है। यह उनके लिए है जो अकेले म्युचुअल फंड इकाई (यूनिट्स) के मालिक होते हैं। यह स्वामित्व का सबसे आसान स्वरूप है और वैसे निवेशकों के लिए सही होता है जो अपने निवेश पर अपना पूरा नियंत्रण रखना चाहते हैं।
ज्वाइंट इदर अथवा सर्वाइवर (ई/एस): इसमें ज्वाइंट होल्डिंग का कोई भी सदस्य इस खाते का स्वतंत्र तरीके से संचालन कर सकता है। अगर किसी एक सदस्य की मौत हो जाती है तो जीवित सदस्य ही इकाइयों का मालिक बन जाता है या बन जाते हैं।
ऑल अथवा सर्वाइवर: इसमें किसी भी लेनदेन के लिए सभी होल्डर को हस्ताक्षर करना जरूरी होता है। किसी एक सदस्य की मृत्यु हो जाने पर जीवित सदस्य मालिक बन जाता है या बन जाते हैं।
मिरे ऐसेट इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स (इंडिया) के उत्पाद प्रमुख (Head – Products at Mirae Asset Investment Managers) श्रीनिवास खानोलकर का कहना है, ‘होल्डिंग चुनने का सही तरीका उस बैंक खाते की स्थिति के अनुरूप होना चाहिए जिससे निवेश किया जाएगा। इस तरीके से आगे चलकर संभावित कर अथवा कानूनी अड़चन में फंसने की आशंका नहीं रहती है। इसके अलावा, इसमें किसी को नामित बनाना भी महत्त्वपूर्ण है ताकि यूनिट धारक की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु की स्थिति में सुचारू हस्तांतरण और भुगतान की सुविधा रहे।’
कराधान के मामले में सिर्फ पहला धारक (होल्डर) ही कर भुगतान के प्रति जवाबदेह रहता है अगर वह निवेश का एकमात्र स्रोत है। मगर ज्वाइंट होल्डिंग के मामले में दूसरे और तीसरे सदस्यों के नाम और पैन विवरण भी सालाना आयकर सूचना विवरण में दिखाई देते हैं।
यह भी पढ़ें: मोमेंटम आधारित फैक्टर फंड: जोखिम अधिक मगर लंबी अवधि में ऊंचे रिटर्न का फायदा; निवेश से पहले समझें रणनीति
म्युचुअल फंड के प्रकारः कराधान के नियम म्युचुअल फंड के प्रकार के आधार पर अलग-अलग होते हैं, जैसे- इक्विटी म्युचुअल फंड, डेट म्युचुअल फंड और हाइब्रिड म्युचुअल फंड।
लाभांशः लाभांश म्युचुअल फंडों द्वारा अपने निवेशकों को दिया गया लाभ का हिस्सा होता है।
पूंजीगत लाभः पूंजीगत लाभ का मतलब उस लाभ से है जब कोई निवेशक अपनी म्युचुअल फंड इकाइयों को शुरुआती निवेश राशि से अधिक कीमत पर बेचता है।
निवेश की अवधिः म्युचुअल फंड इकाइयों को खरीदने और बेचने के बीच के समय को होल्डिंग अवधि कहा जाता है। भारतीय आय कर नियमों के मुताबिक, लंबी निवेश अवधि से आमतौर पर पूंजीगत लाभ पर कर की दर कम होती है। दूसरे शब्दों में कहें तो अगर आप लंबे समय तक अपना निवेश रखते हैं तो आपको कम कर देना पड़ेगा।