Smallcap Funds: हाई रिस्क लेने वाले निवेशकों के बीच स्मॉलकैप फंड्स (Smallcap funds) अब भी पसंदीदा विकल्प बने हुए हैं क्योंकि इनमें भारी रिटर्न की संभावना रहती है। एसोसिएशन ऑफ म्युचुअल फंड्स इन इंडिया (AMFI) डेटा के अनुसार, बाजार में जारी उतार-चढ़ाव के बावजूद मार्च 2025 में इन फंड्स में ₹4,092 करोड़ का नेट इनफ्लो दर्ज किया गया। इससे पूरे वित्त वर्ष 2024-25 में इन फंड्स में कुल निवेश ₹41,673 करोड़ तक पहुंच गया। हालांकि, पिछले छह महीनों में स्मॉलकैप स्कीम्स में 15.7% की गिरावट आई है, जो कि डायवर्सिफाइड इक्विटी कैटेगरी में सबसे ज्यादा है।
कोटक म्युचुअल फंड के एग्जीक्यूटिव वाइस प्रेसिडेंट और फंड मैनेजर हरीश बिहानी कहते हैं, “हाल की बाजार अस्थिरता के बावजूद स्मॉलकैप फंड्स का आउटलुक सतर्क रूप से सकारात्मक बना हुआ है। इन फंड्स को अस्थिरता के चलते नुकसान जरूर हुआ है, लेकिन हेल्थकेयर, मैन्युफैक्चरिंग और उभरते उद्योगों जैसे क्षेत्रों में मध्यम अवधि के लिए इनके प्रदर्शन की संभावनाएं बेहतर नजर आ रही हैं।”
स्मॉलकैप फंड्स को अनिवार्य रूप से अपनी कुल संपत्ति का कम से कम 65% उन कंपनियों के शेयरों में निवेश करना होता है जो मार्केट कैप के लिहाज से टॉप 250 कंपनियों से बाहर होती हैं। TRUST म्युचुअल फंड के सीईओ संदीप बागला कहते हैं, “बाजार में केवल 250 लार्ज और मिडकैप कंपनियां हैं जबकि स्मॉलकैप कंपनियों की संख्या 4,000 से ज्यादा है। अगर कोई निवेशक लंबे समय तक तेजी से और मुनाफे के साथ बढ़ने वाली कंपनियों को चुनने में सफल होता है, तो वह व्यापक इंडेक्स (broader indices) से बेहतर रिटर्न कमा सकता है।”
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लंबी अवधि के निवेशक स्मॉलकैप शेयरों में तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के साथ अपने निवेश पर ज्यादा रिटर्न हासिल कर सकते हैं। बागला कहते हैं, “भारत एक तेजी से बढ़ता हुआ बाजार है, ऐसे में स्मॉलकैप कंपनियों के बड़े कंपनियों की तुलना में ज्यादा तेजी से बढ़ने की संभावना रहती है और उन्हें भविष्य की ग्रोथ की उम्मीद में ज्यादा वैल्यूएशन भी मिलता है।” स्मॉलकैप शेयरों पर रिसर्च कम होने के कारण इनमें बेहतर रिटर्न (अल्फा जनरेट करने) की संभावना ज्यादा होती है।
स्मॉलकैप शेयरों में ऐसे जोखिम होते हैं जैसे कि मजबूत प्रबंधन और दीर्घकालिक ग्रोथ के लिए जरूरी वित्तीय संसाधनों की कमी। बिहानी कहते हैं, “स्मॉलकैप शेयर स्वभाव से ही ज्यादा अस्थिर होते हैं और इनकी कीमतों में बड़ी तेजी या गिरावट देखने को मिलती है, जो लार्जकैप शेयरों की तुलना में ज्यादा होती है। इनमें लिक्विडिटी यानी तरलता की कमी भी एक चुनौती होती है, जिससे बाजार में गिरावट या गलत अनुमान की स्थिति में बाहर निकलना मुश्किल हो सकता है।” साथ ही, वैश्विक अनिश्चितताओं को झेलने की इन कंपनियों की क्षमता भी अपेक्षाकृत कम होती है।
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स्मॉलकैप फंड्स में निवेश करते समय पूरी सतर्कता बरतना बेहद जरूरी है। बिहानी कहते हैं, “ऐसे फंड्स को प्राथमिकता दें जो उन कंपनियों में निवेश करते हैं जिनकी मैनेजमेंट टीम मजबूत हो, बैलेंस शीट हेल्दी हो और जिनमें लॉन्ग टर्म ग्रोथ की अच्छी संभावनाएं हों। कम कर्ज, लगातार कैश फ्लो और मुनाफे में सुधार जैसे फाइनेंशियल मेट्रिक्स किसी कंपनी की मजबूती के अहम संकेत होते हैं।” बागला इस बात पर जोर देते हैं कि फंड मैनेजमेंट टीम के ट्रैक रिकॉर्ड और अनुभव को जरूर ध्यान में रखना चाहिए।
जो निवेशक ज्यादा जोखिम उठाने की क्षमता रखते हैं, वे स्मॉलकैप फंड्स में निवेश कर सकते हैं। बिहानी कहते हैं, “जिन निवेशकों को अस्थिरता से डर लगता है या जिनके वित्तीय लक्ष्य अल्पकालिक हैं, उन्हें इन फंड्स से दूर रहना चाहिए क्योंकि इनमें तेज गिरावट की संभावना पूंजी बढ़ाने के उद्देश्य को बिगाड़ सकती है।”
जो निवेशक पहले से इन फंड्स में निवेश कर चुके हैं, वे अच्छे क्वालिटी वाले फंड्स में अपने निवेश को बनाए रख सकते हैं। बिहानी कहते हैं, “अगर निवेश का मूल उद्देश्य अब भी कायम है और पोर्टफोलियो की क्वालिटी मजबूत है, तो मौजूदा निवेशकों को छोटी अवधि की अस्थिरता पर जल्दबाजी में प्रतिक्रिया नहीं देनी चाहिए। वहीं, नए निवेशक धीरे-धीरे शुरुआत कर सकते हैं—पहले थोड़ा निवेश करें और फिर जैसे-जैसे बाजार की अनिश्चितता और वैश्विक उतार-चढ़ाव को समझें, वैसे-वैसे निवेश बढ़ाएं।”
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स्मॉलकैप फंड्स में निवेश के लिए 5 से 7 साल का लंबी अवधि का नजरिया जरूरी है। निवेश का आवंटन निवेशक की जोखिम सहने की क्षमता के अनुसार होना चाहिए। बिहानी कहते हैं, “मध्यम जोखिम लेने वाले निवेशकों के लिए स्मॉलकैप फंड्स इक्विटी पोर्टफोलियो का केवल 5-10% हिस्सा होने चाहिए, जबकि ज्यादा जोखिम उठाने वाले निवेशक इसे 15-20% तक रख सकते हैं।”
स्मॉलकैप फंड्स को लार्जकैप या फ्लेक्सीकैप फंड्स के साथ मिलाकर निवेश करने से इक्विटी पोर्टफोलियो में संतुलन बना रहता है, जिससे कुल जोखिम कम होता है और ग्रोथ की संभावना भी बनी रहती है। साथ ही, सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) के जरिए निवेश करने से समय के साथ खरीद की लागत औसतन कम हो जाती है।