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Fixed Income Mutual Fund: कम रिस्क में नियमित आमदनी, लिक्विडिटी, लो वॉलेटिलिटी, पेशेवर प्रबंधन, डायवर्सिफिकेशन… ये कुछ ऐसी खासियतें हैं, जो फिक्स्ड इनकम म्युचुअल फंड को निवेश के लिए एक बेहतर विकल्प बनाते हैं। फिक्स्ड इनकम म्युचुअल फंड को डेट फंड या बॉन्ड फंड भी कहते हैं। ये ऐसे इन्वेस्टमेंट फंड हैं जो खासकर सरकारी सिक्योरिटीज, कॉर्पोरेट बॉन्ड और मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स जैसे कई तरह के डेट इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश करते हैं। फिक्स्ड इनकम फंड का प्रदर्शन देखें, तो नवंबर में ओवरनाइट और लिक्विड फंड से निकासी के चलते 25,692 करोड़ रुपये का आउटफ्लो हुआ। जबकि इससे पहले अक्टूबर में 1.59 लाख करोड़ का इनफ्लो हुआ था। अब सवाल यह कि एक अच्छा फिक्स्ड इनकम म्युचुअल फंड कैसे चुनें और उसके पैरामीटर क्या होने चाहिए?
मनीफ्रंट के सीईओ मोहित गांग कहते हैं, अच्छा फिक्स्ड इनकम फंड्स चुनने के लिए 6 अहम पैरामीटर्स- निवेश की अवधि, गुणवत्ता, यील्ड, रिटर्न, एक्सपेंस रेश्यो, एयूएम- पर ध्यान देना चाहिए।
निवेश की अवधि : ऐसे फंड चुनें जो आपकी निवेश अवधि शार्ट टर्म, मिड टर्म या लॉन्ग टर्म के अनुसार हों।
गुणवत्ता: फंड में जिन बॉन्ड या इन्स्ट्रूमेंट्स (अंडरलाइंग पेपर्स) में निवेश किया गया है, उनकी क्रेडिट क्वालिटी से फंड का जोखिम तय होता है। अगर फंड में AAA या सरकारी बॉन्ड का हिस्सा ज्यादा है, तो फंड सुरक्षित और स्थिर माना जाता है। अगर AA या A रेटिंग वाले बॉन्ड ज्यादा हैं, तो फंड में जोखिम और उतार-चढ़ाव ज्यादा हो सकता है।
यील्ड: आमतौर पर यील्ड ब्याज दरों पर निर्भर करती है। मौजूदा समय में 5–7% की यील्ड को स्थिर माना जाता है। ज्यादा यील्ड का मतलब आमतौर पर ज्यादा जोखिम होता है।
रिटर्न: जिस अवधि के लिए आप निवेश करना चाहते हैं, उस दौरान फंड के रिटर्न में निरंतरता जरूर देखें।
एक्सपेंस रेश्यो: फिक्स्ड इनकम फंड आमतौर पर सीमित रिटर्न देते हैं, इसलिए यह जरूरी है कि फंड का खर्च यानी एक्सपेंस रेश्यो ज्यादा नहीं होना चाहिए।
AUM (एसेट अंडर मैनेजमेंट): फिक्स्ड इनकम फंड में बड़ा AUM ज्यादा स्थिरता दिखाता है और इससे फंड मैनेजर को बेहतर यील्ड वाले विकल्प चुनने में मदद मिलती है।
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बीपीएन फिनकैप के डायरेक्टर एके निगम का कहना है कि फिक्स्ड इनकम म्युचुअल फंड चुनने से पहले निवेशकों को निवेश की अवधि और रिस्क का आकलन जरूर कर लेना चाहिए। इसके अलावा एक स्थिर क्रेडिट क्वॉलिटी और लो इंटरेस्ट रेट रिस्क वाले फंड को प्राथमिकता दें। इसके अलावा, फंड की यील्ड और रिटर्न का भी मूल्यांकन जरूर करना चाहिए।
निगम कहते हैं, जिन फंड का खर्च और लागत कम होगी वो अच्छा विकल्प माने जाते हैं, इसलिए इन पर जरूर फोकस करें। इसके साथ ही उन फिक्स्ड इनकम फंड का मैच्योरिटी प्रोफाइल और लिक्विडिटी प्रोफाइल निश्चित रूप से देखना चहिए। कुछ लोकप्रिय फिक्स्ड इनकम फंड में लिक्विड फंड्स, शॉर्ट-टर्म फंड्स, इनकम फंड्स, G-Sec फंड्स और कॉरपोरेट बॉन्ड फंड्स शामिल हैं।
डेड फंड चुनते समय सबसे जरूरी मैच्योरिटी प्रोफाइल देखना है। आमतौर पर जिन फंड्स की औसत मैच्योरिटी ज्यादा होती है, वे ब्याज दरों में बदलाव के चलते कीमतों में ज्यादा उतार-चढ़ाव झेलते हैं। इसलिए जिन निवेशकों की निवेश अवधि कम समय की है, उन्हें कम औसत मैच्योरिटी वाले फंड चुनने चाहिए। जैसेकि, अगर कोई निवेशक थोड़े समय के लिए पैसा लगाना करना चाहता है, तो वो लिक्विड फंड का विकल्प चुन सकता है।
फिक्स्ड इनकम फंड चुनने में एक अहम पैरामीटर क्रेडिट एलोकेशन भी है। इसका मतलब कि जो फंड ज्यादा AAA रेटिंग वाले बॉन्ड में निवेश करते हैं, उनमें क्रेडिट जोखिम कम होता है। वहीं, कम रेटिंग (जैसे AA, A आदि) वाले बॉन्ड में निवेश करने वाले फंड्स में जोखिम ज्यादा होता है।
यील्ड टू मैच्योरिटी (YTM) किसी भी इनकम फंड के लिए अहम होता है। YTM वह कुल रिटर्न है, जो किसी बॉन्ड को उसकी मैच्योरिटी तक रखने पर मिलने की उम्मीद होती है। फिक्स्ड इनकम म्युचुअल फंड में YTM, फंड में मौजूद सभी बॉन्ड्स की वेटेड एवरेज यील्ड होती है। किसी फंड का YTM मुख्य रूप से दो बातों से बदलता है। पहला, बाजार में उतार-चढ़ाव (ब्याज दरों में बदलाव, वैल्यूएशन, रेटिंग में बदलाव) और दूसरा फंड में पैसा आने या निकलने (AUM इनफ्लो/आउटफ्लो) है। इसलिए YTM को ओपन डेट फंड के रिटर्न का तय पैरामीटर नहीं माना जाना चाहिए। इसे केवल संकेत और तुलना के लिए इस्तेमाल करना चाहिए।
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कोई फंड मैच्योरिटी और क्रेडिट क्वालिटी के हिसाब से भले ही सही लगे, फिर भी निवेशकों को पूरे पोर्टफोलियो की एकाग्रता जरूर देखनी चाहिए। अगर पोर्टफोलियो में सिक्योरिटीज की संख्या बहुत कम है, तो डाइवर्सिफिकेशन कम हो जाता है और जोखिम बढ़ जाता है।
एसेट एलोकेशन की करें पड़ताल
फिक्स्ड इनकम फंड चुनने से पहले फंड का कुल एसेट एलोकेशन उसके निवेश उद्देश्य के अनुसार है या नहीं, यानी फंड ‘जो कहता है, वही करता है’ या नहीं, इसकी पड़ताल जरूर कर लें। इसके साथ ही फंड में कैश का स्तर भी देखें, क्योंकि अगर पोर्टफोलियो में बहुत ज्यादा कैश पड़ा है, तो निवेशक संभावित रिटर्न से चूक सकता है।
(डिस्क्लेमर: म्युचुअल फंड में निवेश बाजार जोखिमों के अधीन है। निवेश संबंधी फैसला करने से पहले स्वयं पड़ताल कर लें या अपने वित्तीय सलाहकार से परामर्श जरूर कर लें।)