प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
एशिया के बड़े बैटरी और कार बनाने वाले देशों में इन दिनों इलेक्ट्रिक गाड़ियों (EV) को लेकर चल रही योजनाएं एक नई हकीकत का सामना कर रही हैं। अमेरिका और यूरोप में नीतियों में अचानक आए बदलाव के साथ-साथ फोर्ड मोटर की रणनीति में बड़ा उलटफेर ने पूरे उद्योग को हिलाकर रख दिया है। निक्केई एशिया की रिपोर्ट के मुताबिक, इससे EV की मांग, सब्सिडी और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर अनिश्चितता बहुत बढ़ गई है, ठीक उसी समय जब कंपनियां अरबों डॉलर खर्च करके इलेक्ट्रिक भविष्य की तैयारी कर चुकी हैं।
दक्षिण कोरिया की बैटरी बनाने वाली बड़ी कंपनियां, खासकर जिन्होंने अमेरिका में भारी निवेश किया है, फोर्ड के इस हफ्ते आए बड़े बदलावों से काफी दबाव में आ गई हैं।
कोरिया की सबसे बड़ी बैटरी कंपनी एलजी एनर्जी सॉल्यूशन के शेयर बुरी तरह गिर गए, जब फोर्ड ने यूरोप के लिए 9.6 ट्रिलियन वोन (लगभग 6.5 अरब डॉलर) का बैटरी ऑर्डर रद्द कर दिया। गुरुवार को शेयर 8.9 फीसदी तक लुढ़क गए और शुक्रवार सुबह सियोल में फिर 3 फीसदी से ज्यादा की गिरावट देखी गई।
फोर्ड ने मंगलवार को ऐलान किया कि वह यूरोप के लिए नई इलेक्ट्रिक कमर्शियल वैन नहीं बनाएगा। कंपनी ने EV से जुड़े 19.5 अरब डॉलर का चार्ज लिया और अपनी पूरी इलेक्ट्रिक F-150 लाइटनिंग ट्रक की उत्पादन रोक दी, ताकि हाइब्रिड गाड़ियों पर ज्यादा ध्यान दे सके।
उसी दिन यूरोपीय कमीशन ने 2035 से नई पेट्रोल-डीजल कारों पर लगने वाले प्रभावी प्रतिबंध को पीछे खींचने का प्रस्ताव रखा। यूरोप की कार इंडस्ट्री के दबाव के बाद यह कदम उठाया गया, जिससे लंबे समय तक EV की मांग को लेकर चिंता और बढ़ गई।
फोर्ड ने यह भी कहा कि वह अपनी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम (ESS) बैटरी का कारोबार शुरू करेगा, जो ऊर्जा इंफ्रास्ट्रक्चर और बढ़ते डेटा सेंटर की जरूरतों को पूरा करेगा।
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फोर्ड के इस बदलाव से अमेरिका में SK On के साथ चल रहा 6.2 अरब डॉलर का जॉइंट वेंचर भी खत्म हो गया। सियोल की यह बैटरी कंपनी पहले से ही मुनाफा कमाने में संघर्ष कर रही थी, और यह खबर उसके लिए एक और बड़ा झटका बन गई।
SK On ने बताया कि केंटकी में बैटरी प्लांट की पूरी मालिकाना हक फोर्ड की सब्सिडियरी कंपनी ले लेगी, जबकि टेनेसी का प्लांट पूरी तरह SK On के पास रहेगा। कंपनी का कहना है कि यह साझेदारी खत्म होने से उसकी वित्तीय स्थिति बेहतर होगी और लचीलापन बढ़ेगा।
कंपनी के प्रवक्ता ने कहा कि अब वह बैटरी दूसरे ग्राहकों को भी सप्लाई कर सकेगी, जो उनकी रणनीति के लिए आगे की दिशा में एक कदम है।
अमेरिका में माहौल बदलने से भी उद्योग की चिंता बढ़ी है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सितंबर में EV खरीदने पर मिलने वाली 7,500 डॉलर की उपभोक्ता टैक्स क्रेडिट खत्म कर दी और इस महीने की शुरुआत में फ्यूल एफिशिएंसी के सख्त मानकों में भारी कटौती का प्रस्ताव रखा।
इन कदमों से जापानी कार कंपनियों का यह विश्वास और मजबूत हो गया कि उन्हें EV की ओर तेजी से नहीं जाना चाहिए और हाइब्रिड व पेट्रोल-डीजल गाड़ियों पर ही फोकस बनाए रखना चाहिए।
होंडा मोटर ने वित्तीय वर्ष 2031 तक के निवेश को 10 ट्रिलियन येन से घटाकर 7 ट्रिलियन येन (लगभग 45 अरब डॉलर) कर दिया। साथ ही कनाडा में EV सप्लाई चेन के लिए planned 15 अरब कनाडाई डॉलर (लगभग 10.9 अरब अमेरिकी डॉलर) के निवेश को टाल दिया।
टोयोटा ने फुकुओका में EV बैटरी प्लांट की योजना दूसरी बार स्थगित कर दी, जबकि निसान ने इसी इलाके में अपना बैटरी प्लांट प्रोजेक्ट पहले ही छोड़ दिया था। टेस्ला की बड़ी सप्लायर पैनासोनिक ने भी कंसास में अपने नए फैक्ट्री में EV बैटरी का पूरा उत्पादन शुरू करने में देरी की है। इस बीच मित्सुबिशी मोटर्स पेट्रोल-डीजल गाड़ियों पर और जोर दे रही है।
दुनिया की बड़ी कार कंपनियां जब अपनी EV योजनाओं की रफ्तार धीमी कर रही हैं, तब विशेषज्ञों का मानना है कि चीनी निर्माता सबसे ज्यादा फायदा उठाएंगे। चीन का लक्ष्य है कि 2040 तक नई कारों में 85 फीसदी से ज्यादा EV या प्लग-इन हाइब्रिड हों।
कोरिया ऑटोमोटिव टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट के ली हांग-कू के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर चीन अपनी मौजूदा राह पर चलता रहा तो अमेरिका और यूरोप के बाहर उसकी बढ़त के कारण प्रतिस्पर्धा का पूरा नक्शा उसके पक्ष में बदल सकता है।