Sectoral and Thematic Mutual Funds: सेक्टोरल और थीमैटिक फंड्स में मार्च में निवेश में भारी गिरावट दर्ज की गई है। जहां फरवरी में इन फंड्स में ₹5,711.6 करोड़ का नेट इनफ्लो आया था, वहीं मार्च में यह घटकर मात्र ₹170.1 करोड़ रह गया— यानी करीब 97% की गिरावट। कई ऐसे फंड्स के कमजोर प्रदर्शन को देखते हुए निवेशकों के लिए यह जरूरी हो गया है कि वे यह मूल्यांकन करें कि निवेश बनाए रखें या बाहर निकलें।
सेक्टोरल और थीमैटिक फंड्स में निवेश में आई गिरावट की मुख्य वजह बाजार का कमजोर प्रदर्शन रहा है। जियोजित इन्वेस्टमेंट्स के चीफ इनवेस्टमेंट स्ट्रैटेजिस्ट वीके विजयकुमार के अनुसार, “सितंबर 2024 में निफ्टी 26,277 के उच्चतम स्तर पर था, लेकिन मार्च 2025 की शुरुआत तक यह गिरकर लगभग 22,000 तक पहुंच गया। इस तेज गिरावट ने निवेशकों को डरा दिया।”
फंड हाउस पहले नए फंड ऑफर (NFO) के जरिए इन फंड्स में निवेश आकर्षित कर रहे थे, लेकिन अब यह स्ट्रैटेजी फिकी पड़ रही है। विजयकुमार कहते हैं, “जब बाजार में तेजी होती है, तो NFO अच्छा प्रदर्शन करते हैं और फंड हाउस इस मौके का फायदा उठाते हैं।” उन्होंने यह भी बताया कि 2024 में लॉन्च हुए कई सेक्टोरल और थीमैटिक फंड्स का प्रदर्शन कमजोर रहा है, जिससे निवेशकों का भरोसा डगमगाया है।
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मार्च 2025 में सेक्टोरल और थीमैटिक फंड्स से रिडेम्प्शन (निकासी) में तेज बढ़ोतरी दर्ज की गई है। फरवरी में जहां करीब ₹5,752 करोड़ की निकासी हुई थी, वहीं मार्च में यह बढ़कर लगभग ₹8,920 करोड़ तक पहुंच गई— यानी 55% की बढ़ोतरी।
1 फाइनेंस की सीनियर वाइस प्रेसिडेंट– म्युचुअल फंड रजनी तांडले कहती हैं, “निवेशक तब पैसा लगाते हैं जब रिटर्न अच्छा मिल रहा हो और जब रिटर्न गिरता है तो वे पैसा निकाल लेते हैं। कई सेक्टोरल और थीमैटिक फंड्स ने 2025 में निगेटिव रिटर्न दिया है, जिनमें कुछ को 26% तक का नुकसान हुआ है, जिससे निवेशकों ने पैसा निकालना शुरू कर दिया।”
PGIM इंडिया एसेट मैनेजमेंट कंपनी के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर और चीफ बिजनेस ऑफिसर अभिषेक तिवारी के मुताबिक, “बाजार में तेजी (bull run) के दौरान निवेश करने वाले कई नए निवेशकों ने अब बाजार से बाहर निकलना शुरू कर दिया है। कई लोकप्रिय सेक्टर्स में गिरावट प्रमुख बेंचमार्क से दोगुनी रही है, जिससे निवेशकों के बीच डर का माहौल बन गया है।”
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कई निवेशक हालिया रिटर्न देखकर ही सेक्टोरल और थीमैटिक फंड्स में निवेश कर देते हैं। विजयकुमार कहते हैं, “वे वैल्यूएशन और लंबे समय की संभावनाओं को नजरअंदाज कर देते हैं।”
इन फंड्स में निवेश के साथ कुछ खास जोखिम भी जुड़े होते हैं, जैसे कि कंसंट्रेशन रिस्क और लिमिटेड फ्लेक्सिबिलिटी। तांडले के अनुसार, “सेक्टोरल फंड्स आमतौर पर अपने पोर्टफोलियो का 60–70% हिस्सा एक ही सेक्टर के 5–10 शेयरों में लगाते हैं। अगर वह सेक्टर कमजोर प्रदर्शन करता है, तो फंड मैनेजर चाहकर भी बाहर नहीं निकल सकते। साथ ही, वे अन्य सेक्टरों में अच्छे मौकों को भी गंवा देते हैं।”
TBNG कैपिटल एडवाइजर्स के फाउंडर और सीईओ तरूण बिरानी कहते हैं, “ऐसे फंड्स में सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि आप सही समय पर निवेश करें और सही समय पर बाहर निकलें। अगर कोई निवेशक बाजार चक्र (market cycles) को गलत आंक लेता है, तो उसे भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।”
मौजूदा बाजार परिस्थितियों में कोर इक्विटी निवेश के लिए डाइवर्सिफाइड फंड्स कहीं ज्यादा उपयुक्त माने जा रहे हैं। तिवारी कहते हैं, “अस्थिर बाजार में सेक्टर फंड्स में गिरावट (drawdown) आमतौर पर डाइवर्सिफाइड स्ट्रैटेजी की तुलना में ज्यादा तेज होती है।”
वे सुझाव देते हैं कि निवेशकों को फ्लेक्सीकैप, मल्टी-कैप और लार्ज एंड मिड-कैप जैसे डाइवर्सिफाइड फंड्स में निवेश करना चाहिए। इसके अलावा, मल्टी-एसेट, इक्विटी सेविंग्स और बैलेंस्ड एडवांटेज फंड्स जैसी हाइब्रिड स्कीमें भी जोखिम को कम करने में मदद कर सकती हैं, क्योंकि ये इक्विटी, डेट और कमोडिटी जैसे विभिन्न एसेट क्लास में निवेश करती हैं।
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तिवारी के अनुसार, जिन निवेशकों ने स्ट्रक्चरल थीम्स पर आधारित फंड्स में पैसा लगाया है, उन्हें अभी निवेश बनाए रखना चाहिए। घरेलू खपत (domestic consumption) पर फोकस करने वाले फंड्स में निवेश करने वालों को भी बने रहना चाहिए। विजयकुमार कहते हैं, “हेल्थकेयर, पब्लिक सेक्टर कंपनियों और फाइनेंशियल सेक्टर से जुड़े फंड्स में निवेश करने वाले निवेशक निवेश बनाए रख सकते हैं, लेकिन टेक्नोलॉजी फंड्स में निवेश करने वालों को बाहर निकलने पर विचार करना चाहिए।”
बिरानी के मुताबिक, वे जानकार निवेशक जो हाई रिस्क ले सकते हैं और ट्रेंड्स को ट्रैक करने में सक्षम हैं, उन्हें निवेश जारी रखना चाहिए। ऐसे निवेशकों को मैक्रोइकोनॉमिक संकेतकों, पॉलिसी बदलावों, सेक्टर वैल्यूएशन के ऐतिहासिक औसत, कंपनियों की कमाई की संभावनाओं और अंतरराष्ट्रीय प्रभावों का आकलन करने में सक्षम होना चाहिए। जिन निवेशकों के पास कोई वित्तीय सलाहकार है, वे भी इन फंड्स में निवेश बनाए रखने का फैसला कर सकते हैं।
एक्सपर्ट्स की राय है कि ऐसे सेक्टोरल और थीमैटिक फंड्स को पोर्टफोलियो के सैटेलाइट हिस्से में रखा जाना चाहिए और यह कुल इक्विटी निवेश का 5-12% हिस्सा ही होना चाहिए।