सरकारी कंपनियों के लिए कई प्राधिकरणों से नियामकीय छूट दी गई है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) ने सार्वजनिक क्षेत्र की सूचीबद्ध कंपनियों को कई रियायतें दी हैं। उन्हें कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय (MCA) और भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) से भी छूट दी गई हैं।
बुधवार को की गई एक घोषणा के अनुसार, सेबी ने एलआईसी को न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता मानक पूरे करने के लिए तीन वर्ष की मोहलत दी है।
न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता (एमपीएस) जरूरतों से जुड़े नियम सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (PSU) और उनके निजी क्षेत्र के समकक्षों के लिए अलग हैं। वर्ष 2010 में, जब सिक्योरिटीज कॉन्ट्रैक्ट्स रेग्युलेशन रूल्स में संशोधन किया गया था, तो 25 प्रतिशत एमपीएस का नियम दोनों के लिए समान था।
हालांकि पहले एससीआरआर संशोधन की तारीख के बाद निजी क्षेत्र के प्रवर्तकों वाली सूचीबद्ध कंपनियों के लिए समय-सीमा 3 जून 2010 तय की गई थी। इस बीच, एससीआरआर के दूसरे संशोधन के तीन साल बाद, पीएसयू के लिए प्रारंभिक समय सीमा अगस्त 2013 में समाप्त हो गई।
पहली समय-सीमा समाप्त होने के तुरंत बाद बाजार नियामक सेबी ने 100 से ज्यादा कंपनियों पर सख्ती की घोषणा की, जिसमें प्रवर्तक अपनी हिस्सेदारी 75 प्रतिशत से नीचे लाने में नाकाम रहे। दूसरी तरफ, उन पीएसयू के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई जिनकी प्रवर्तक भारत सरकार है।
इसके विपरीत, एससीआरआर में सरकार द्वारा संशोधन किया गया था, जिससे इसे अगस्त 2017 तक का समय मिल गया और एमपीएस समय-सीमा तकनीकी तौर पर एक बार फिर से बढ़ाकर अगस्त 2020 तक की गई। इसलिए जहां निजी क्षेत्र की कंपनियों को सिर्फ तीन साल का समय मिला, वहीं पीएसयू को 25 प्रतिशत एमपीएस नियम पर अमल करने के लिए 10 साल दिए गए।
हालांकि आज भी 20 से अधिक सूचीबद्ध सार्वजनिक उपक्रम हैं जिनमें सार्वजनिक फ्लोट 25 प्रतिशत से कम है।
साथ ही पीएसयू को विभिन्न प्रतिभूति
संबंधित नियमों से विशेष रियायत दी गई है। उदाहरण के लिए, सेबी ने सरकार को एलआईसी आईपीओ में महज 3.5 प्रतिशत हिस्सा घटाने की अनुमति दी, जबकि न्यूनतम 5.4 प्रतिशत की जरूरत थी।
दिलचस्प है कि सभी कंपनियों को आईपीओ के समय कम से कम 10 प्रतिशत घटाने की जरूरत थी। हालांकि शुरू में इसे घटाने से संबंधित नियम एलआईसी आईपीओ से पहले किसी बड़े निर्गम के लिए नरम थे। इसके बावजूद, एलआईसी को नरम मानदंडों के तहत हिस्सेदारी आवश्यकता से कम घटाने की विशेष छूट दी गई थी।
कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय ने पहले भी सरकारी कंपनियों को कई तरह की रियायतें दी हैं। कंपनियों को अपनी सालाना आम बैठक का आयोजन उस स्थान या पंजीकृत कार्यालय में करना जरूरी है, जो उसी शहर, कस्बे या गांव से जुड़ा हुआ हो, जहां कंपनी स्थित है। ये नियम सरकारी कंपनियों के लिए लागू नहीं है। सरकारी कंपनियां अन्य जगहों पर भी अपनी सालाना बैठक कर सकती हैं।