कोविड-19 की वजह से पैदा हुई अनिश्चितता से इस साल आरंभिक सार्वजनिक पेशकश (आईपीओ) बाजार का उत्साह ठंडा पड़ गया है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड(सेबी) को मिलने वाले ड्राफ्ट रेड हेयरिंग प्रोस्पेक्टस (डीआरएचपी) आवेदन 6 साल के निचले स्तर पर हैं।
इस साल अब तक सिर्फ सात कंपनियां भी 6,500 करोड़ रुपये से कम की कोष उगाही की संभावना देख रही हैं और उन्होंने आईपीओ से पहले अपने डीआरएचपी सौंपे हैं जिनमें पेश किए जाने वाले शेयरों की संख्या, वित्तीय परिणाम और जोखिम कारक जैसे प्रमुख विवरण शामिल हैं। बाजार विश्लेषकों का कहना है कि महामारी की वजह से पैदा हुए अनिश्चित हालात (व्यवसाय के साथ साथ आवेदन प्रक्रिया) और मूल्यांकन में भारी गिरावट की वजह से कुछ ही नई कंपनियां पूंजी बाजार का इस्तेमाल करना चाहती हैं।
प्राइम डेटाबेस के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले एक दशक में, प्रत्येक कैलेंडर वर्श की पहली छमाही में औसत 18 डीआरएचपी ने बाजार नियामक के समक्ष डीआरएचपी पेश किए।
प्राइम डेटाबेस के प्रबंध निदेशक प्रणव हल्दिया ने कहा, ‘जब तक बाजार स्थिर नहीं हो जाते, आप आईपीओ आवेदनों की संख्या में वृद्घि नहीं देखेंगे। पिछले चार महीनों में महज एक आवेदन दर्ज किया गया। कंपनियों को अपने आईपीओ लाने के लिए बाजार हालात को लेकर स्पष्टता की जरूरत होगी और कोविड-19 संकट को देखते हुए इस तरह की स्पष्टता अभी संभव नहीं है।’
कुछ जानकार कम आवेदनों के पीछे परिचालन संबंधी समस्याओं को जिम्मेदार बता रहे हैं। एलऐंडएल पार्टनर्स में पार्टनर जितेश साहनी ने कहा, ‘कोविड-19 ने आईपीओ लाने की योजना बना रही कंपनियों के लिए इस प्रक्रिया को कठिन बना दिया है। यात्रा संबंधित प्रतिबंधों और लॉकडाउन की वजह से सौदों को इस कैलेंडर वर्ष की दूसरी छमाही के लिए टाला जा रहा है। कई कंपनियां मौजूदा वित्तीय या संविदात्मक व्यवस्थाओं के तहत चूक से बचने के प्रयास में वित्त पोषण के वैकल्पिक स्रोतों का सहारा ले रही हैं।’
जहां आईपीओ आवेदनों की संख्या में कमी आई है, वहीं सूचीबद्घ कंपनियों में शेयर बिक्री में रिकॉर्ड तेजी बनी हुई है। पिछले पांच सप्ताह में सूचीबद्घ कंपनियों में इक्विटी शेयर बिकवाली करीब 65,000 करोड़ रुपये की रही। इसमें बड़े सौदे, राइट्स इश्यू, और क्यूआईपी शामिल हैं। विश्लेषकों का कहना है कि सूचीबद्घ कंपनियों के मौजूदा ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए निवेशक एक या दो कमजोर तिमाहियों को नजरअंदाज करने को तैयार हैं।
इंडसलॉ में पार्टनर विशाल यदुवंशी ने कहा, ‘कोविड-19 से कंपनियों का मूल्यांकन प्रभावित हुआ है, क्योंकि कोई भी आईपीओ लाने वाली कंपनी के व्यवसाय पर महामारी और उससे संबंधित लॉकडाउन के प्रभाव का सही अंदाजा लगाने की स्थिति में नहीं है।’दिलचस्प बात यह है कि आईपीओ आवेदनों में कमी ऐसे समय में आई है जब सेबी ने कंपनियों के लिए नियामकीय शुल्क घटा दिया है। कंपनियों को आवेदन के समय इस शुल्क का 50 फीसदी तक भुगतान करना पड़ता है।
ज्यादातर विश्लेषक इस विचार पर एकमत हैं कि अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटने के बाद ही आईपीओ की संख्या में तेजी आएगी।
खेतान ऐंड कंपनी में पार्टनर गौतम श्रीनिवास ने कहा, बाजार हालात अस्थिर बने हुए हैं और निवेशक ऐसे समय में दूर रहना पसंद करते हैं। इसका आईपीओ आवेदनों पर प्रभाव पड़ा है। इसलिए आर्थिक गतिविधि में सुधार आईपीओ आवेदनों की संख्या में वृद्घि के लिहाज से पहला कदम होगा। हालांकि कुछ विश्लेषकों का मानना है कि आईपीओ लाने को गंभीर और उत्साहित कंपनियों के लिए बाजार या अर्थव्यवस्था में सुधार का इंतजार नहीं करना चाहिए।