दस वर्षीय बॉन्ड पर प्रतिफल कुछ नरमी के साथ बीते वित्त वर्ष के शुरुआती दिनों के कारोबार के मुकाबले साल खत्म होते-होते नीचे बंद हुआ। अप्रैल के शुरू में 10 वर्षीय बॉन्ड प्रतिफल 6.305 प्रतिशत पर था और बुधवार को यह 6.166 प्रतिशत पर बंद हुआ।
बॉन्ड प्रतिफल में अमेरिकी प्रतिफल और बढ़ती तेल कीमतों के अनुरूप तेजी आ सकती थी लेकिन आरबीआई द्वारा सख्ती
से निपटने की रणनीति अपनाई गई। कोरोनावायरस महामारी को देखते हुए आरबीआई ने सेकंडरी बाजार की बॉन्ड खरीदारी के जरिये तरलता समर्थन के स्वरूप में मदद प्रदान की है जिसका लक्ष्य दीर्घावधि रीपो ऑपरेशन (टीएलटीआरओ) आदि है और इससे प्रतिफल को वर्ष के ज्यादातर समय 6 प्रतिशत से नीचे बनाए रखने में मदद मिली। इसके परिणामस्वरूप, सरकार ने जिस प्रतिफल पर उधारी ली, वह 16 वर्षीय निचले स्तर पर था।
वर्ष के दौरान, आरबीआई ने अपने ओपन मार्केट ऑपरेशंस (ओएमओ) कार्यक्रम के जरिये 3 लाख करोड़ रुपये के सेकंडरी बाजार की बॉन्ड खरीदारी के जरिये बाजार को मजबूती प्रदान की।
सरकार के 12 लाख करोड़ रुपये के उधारी कार्यक्रम से बाजार को ताकत मिली थी और सरकार ने करीब 10 लाख करोड़ डॉलर की पूंजी लगाई। आरबीआई के समर्थन से यह सुनिश्चित हुआ कि वह वित्त वर्ष के अंत तक सख्ती नहीं बरतेगा, जब अमेरिकी बॉन्ड प्रतिफल में तेजी और तेल कीमतें चढऩी शुरू हुईं।
फिलिप कैपिटल ने कहा है, ‘नए वित्त वर्ष में, सामान्य तौर पर, सरकारी उधारी कार्यक्रम की वजह से बॉन्ड प्रतिफल पर दबाव रहेगा, लेकिन आरबीआई का रुख अनुकूल है।’
हालांकि रुपये में विभिन्न विषमताओं के विपरीत वर्ष के दौरान मजबूती दिखी। यह बुधवार को 73.113 प्रति डॉलर पर बंद हुआ, जो वर्ष के शुरू में 76.28 प्रति डॉलर था। यह तेजी मुख्य मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर में आई कमजोरी की वजह से दिखी।
मांग में गिरावट और आयात में की की वजह से भारत ने कई वर्षों के बाद चालू खाते में अधिशेष की स्थिति भी दर्ज की। आरबीआई ने अपने भंडार को 100 अरब डॉलर तक बढ़ाकर इसे 580 अरब डॉलर पर पहुंचाने के लिए इस अवसर का इस्तेमाल किया।
विश्लेषकों का कहना है कि यदि आरबीआई ने भंडार एकत्रित नहीं किया होता तो रुपये में और ज्यादा मजबूती आती। विश्लेषकों का कहना है कि भविष्य में रुपया नीचे आएगा, क्योंकि अर्थव्यवस्था में सुधार आ रहा है।
सीआर फॉरेक्स एडवाइजर्स के प्रबंध निदेशक अमित पाबरी ने कहा, ‘पिछले साल अप्रैल में करीब 77 (डॉलर के मुकाबले) के स्तर के पास पहुंचने के बाद, रुपये के लिए तेजी का सफर 11 महीने लंबा रहा और यह मुख्य तौर पर कम डीएक्सवाई तथा कच्चे तेल, उभरते बाजारों में सुधार, पूंजी आपूर्ति में वृद्घि आदि पर केंद्रित रहा।’