‘हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था
व्यक्ति को मैं नहीं जानता था
हताशा को जानता था
इसलिए मैं उस व्यक्ति के पास गया
मैंने हाथ बढ़ाया
मेरा हाथ पकड़कर वह खड़ा हुआ
मुझे वह नहीं जानता था
मेरे हाथ बढ़ाने को जानता था
हम दोनों साथ चले
दोनों एक दूसरे को नहीं जानते थे
साथ चलने को जानते थे।‘
हिंदी के प्रख्यात कवि-कथाकार विनोद कुमार शुक्ल का मंगलवार को निधन हो गया। वह पिछले काफी समय से अस्वस्थ थे और रायपुर के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती थे। वह लगभग 89 वर्ष के थे।
छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में एक जनवरी 1937 को जन्मे विनोद कुमार शुक्ल को मध्यवर्ग के साधारण और एकरस जीवन को असाधारण कोमलता और बारीकी से अपनी रचनाओं में दर्ज करने के लिए जाना जाता है। उनकी रचनाशीलता को जादुई यथार्थवाद के निकट रखा जाता है और वह अपनी रचनाओं में वास्तविकता और कल्पना का जबरदस्त संयोजन करने के लिए जाने जाते हैं।
वह हिंदी के उन रचनाकारों में से एक थे जिनकी रचनाशीलता को वैश्विक स्तर पर चिह्नित किया गया। उनकी रचनाओं का अनेक देसी-विदेशी भाषाओं में अनुवाद हुआ। वर्ष 2023 में उन्हें प्रतिष्ठित पेन/नाबोकोव सम्मान दिया गया था। 50,000 डॉलर की पुरस्कार राशि वाला यह सम्मान उन रचनाकारों को दिया जाता है जो अंतरराष्ट्रीय साहित्य में अपनी अलग छाप छोड़ते हैं। वह इस सम्मान से सम्मानित होने वाले पहले भारतीय-एशियाई मूल के लेखक थे। गत माह उन्हें हिंदी साहित्य के सबसे बड़े सम्मान- ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इससे पहले सितंबर 2025 में उनके उपन्यास ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ को महज छह महीने में 30 लाख रुपये की रॉयल्टी मिलने की खबर ने हिंदी साहित्य जगत में हलचल मचा दी थी। किताब के प्रकाशक हिंदयुग्म के संस्थापक शैलेश भारतवासी के मुताबिक 2025 में एक अप्रैल से सितंबर तक विनोद कुमार शुक्ल की अकेले एक उपन्यास ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ की लगभग 90 हजार प्रतियां बिकी थीं।
विनोद कुमार शुक्ल का पहला कविता संग्रह ‘लगभग जयहिंद’ 1971 में प्रकाशित हुआ था। उनका दूसरा संग्रह ‘वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहिनकर विचार की तरह’ 1981 में प्रकाशित हुआ था। उसके बाद ‘सबकुछ होना बचा रहेगा’, ‘अतिरिक्त नहीं’, ‘कविता से लंबी कविता’ सहित उनके कई कविता संग्रह प्रकाशित हुए। अपने उपन्यासों ‘नौकर की कमीज’, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’, ‘हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़’ आदि के माध्यम से उन्होंने हिंदी गद्य को एक नई भाषा प्रदान की।
शुक्ल के निधन पर हिंदी के वरिष्ठ कवि-कथाकार कुमार अम्बुज ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘विनोद कुमार शुक्ल का जाना हिंदी साहित्य के शुक्ल पक्ष का अवसान है। उन्होंने हिंदी कविता, कहानी, उपन्यास, तीनों विधाओं को अपनी तरह से नया कर दिया। एक हस्तक्षेपकारी मोड़ दे दिया। उन्होंने अपने लेखन में कहन और संरचना का अनूठा स्थापत्य आविष्कृत किया। रोजमर्रा की गतिविधियों और चीजों को देखने के उनके ढंग ने, एक अपूर्व वाक्य विन्यास संभव किया। आम आदमी के प्रति अचूक संवेदना उनके लिखे में अनवरत लक्षित की जा सकती है। ‘नौकर की कमीज और ‘सब कुछ होना बचा रहेगा’जैसे अविस्मरणीय संग्रहों ने हिंदी साहित्य में अछूते सोपानों को स्पर्श किया। वे उन लेखकों में रहे जिन्हें उनकी रचना से, अपनी भाषा भंगिमा से ही पहचाना जा सकता था। इधर बच्चों के लिए भी उनका लेखन उल्लेखनीय है।’
वरिष्ठ कवि राजेश जोशी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘विनोद कुमार शुक्ल हिंदी के अत्यंत महत्वपूर्ण रचनाकार थे। उनके उपन्यास ‘नौकर की कमीज’ ने हिंदी उपन्यास के पारंपरिक ढांचे को तोड़ा। उनके शिल्प और ढांचे का अनूठापन बहुत प्रभावित करने वाला था। वह हमारे दौर के सबसे बड़े गद्यकारों और कवियों में से एक थे। उनका निधन एक बहुत बड़ा निर्वात पैदा कर गया है।’
शुक्ल हिंदी साहित्य के सबसे सम्मानित लेखकों में से एक रहे। उन्हें उनके जीवनकाल में साहित्य अकादमी पुरस्कार, रजा पुरस्कार, शिखर सम्मान, 2023 के पेन-नाबोकोव पुरस्कार और ज्ञानपीठ सहित अनेक सम्मानों से नवाजा गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनके निधन पर शोक व्यक्त किया। एक सोशल मीडिया पोस्ट में उन्होंने कहा कि विनोद कुमार शुक्ल को हिंदी साहित्य की दुनिया में उनके अमूल्य योगदान के लिए हमेशा याद किया जाएगा।