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Year Ender: AI के नाम रहा 2025, अप्रत्याशित घटनाओं और वैश्विक बदलावों का साल

साल 2025 में आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के तेजी से उभरने के कारण वैश्विक राजनीति, अर्थव्यवस्था और भारत की भूमिका को नया आकार दिया गया

Last Updated- December 23, 2025 | 10:55 PM IST
artificial intelligence
प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो

वर्ष 2025 में वैश्विक घटनाओं का बोलबाला कुछ इस कदर रहा है जैसा शायद पहले कभी महसूस नहीं किया गया था। भारत सहित दुनियाभर के समाचार पत्रों के पहले पन्ने पर गाजा युद्ध से लेकर ट्रंप शुल्क और बांग्लादेश की उथल-पुथल तक की खबरें छाई रहीं। अप्रैल में हुआ पहलगाम आतंकी हमला और उसके बाद ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पूरे साल लोगों के दिमाग और खबरों में छाए रहे। फिर भी इस साल विश्व स्तर पर सबसे अधिक खोजा जाने वाला शब्द ‘जेमिनाई’ था, जो गूगल का आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) है। इसने दुनिया भर में एआई के उदय का रास्ता साफ कर दिया। भारत में भी एआई एक प्रमुख मुद्दा बन गया और चारों तरफ जेमिनाई, गूगल और चैटजीपीटी क्रिकेट और बॉलीवुड के साथ प्रतिस्पर्द्धा करती नजर आईं। उस रुझान को दर्शाते हुए ‘टाइम’ ने’ आर्किटेक्ट्स ऑफ एआई (एआई)’ को 2025 का ‘पर्सन ऑफ द इयर’ घोषित किया।

विशेषज्ञों और विश्लेषकों का मानना है कि एआई ने इस साल खुद को मौजूदा दौर की एक अहम चीज के रूप में स्थापित किया है। उनका कहना है कि व्यापार, अर्थव्यवस्था और भू-राजनीति में भारत के वजूद से जुड़े अन्य घटनाक्रम भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकते हैं।

औद्योगिक मशीनरी एवं विनिर्माण कंपनी फोर्ब्स मार्शल के सह-अध्यक्ष और भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के पूर्व अध्यक्ष नौशाद फोर्ब्स ने सरकार द्वारा हाल ही में शुरू किए गए सुधार उपायों को भारत के लिए एक महत्त्वपूर्ण मोड़ बताया। उन्होंने कहा, ‘छह साल पहले पारित की गई चार श्रम संहिताएं लागू करने और परमाणु उद्योग में दायित्व को सीमित करने और निजी क्षेत्र की भागीदारी की अनुमति देने वाले हालिया सुधार दोनों ही बहुत स्वागत योग्य कदम हैं।’

फोर्ब्स के अनुसार भारत को अपनी वर्तमान चुनौतियों (जैसे अमेरिकी शुल्क सहित भू-राजनीति से जुड़ी बाधाओं) का उपयोग सुधार की गति जारी रखने के लिए करना चाहिए। उन्होंने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि इसका मतलब होगा लंबी अवधि से रुकी हुई निजीकरण प्रक्रिया शुरू करना, कृषि बाजारों में सुधार  करना, संभावित रूप से परिवर्तनकारी एएनआरएफ (अनुसंधान नैशनल रिसर्च फाउंडेशन) और अनुसंधान विकास एवं नवाचार (आरडीआई) योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करना और अंत में शिक्षा क्षेत्र में राज्य के हस्तक्षेप को कम करना।

अमेरिका के साथ व्यापार सौदा लंबित रहने और अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप द्वारा चीजों को टालने के साथ संकट के समय में अवसर ही आगे बढ़ने का रास्ता लगता है। पीडब्ल्यूसी इंडिया के पार्टनर और एडवाइजरी लीडर दिनेश अरोड़ा ने भी इस विषय पर विस्तार से बताया। अरोड़ा ने कहा, ‘अधिकांश प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं 2025 में एक या दूसरे खेमे के साथ निर्णायक रूप से जुड़ गईं वहीं, भारत ने एक अलग दृष्टिकोण अपनाया जिसे हम बहुपक्षीय वास्तविकता कहते हैं।’ उन्होंने बताया कि अचानक और महत्त्वपूर्ण बाहरी व्यापार बाधाओं का सामना करते हुए भारत ने हालात को बिगड़ने नहीं दिया और संयम से काम किया।

पीडब्ल्यूसी इंडिया के पार्टनर और एडवाइजरी लीडर दिनेश अरोड़ा ने कहा, ‘यूरोप और पूर्वी एशिया एक मजबूत गठबंधन पर जोर दे रहे थे जबकि भारत ने अपने विकल्प खुले रखे। भारत वास्तव में उत्तर और दक्षिण के बीच कार्यात्मक पुल बन गया है। हम सिर्फ नेतृत्व के बारे में बात नहीं कर रहे हैं बल्कि वास्तव में समाधान मुहैया कर रहे हैं। उदाहरण के लिए संयुक्त राष्ट्र वैश्विक क्षमता-निर्माण पहल की शुरुआत हमने अगस्त में की थी।’

अरोड़ा के मुताबिक इसका प्रमाण संख्याओं में है। वैश्विक स्तर पर ऊर्जा क्षेत्र में अराजकता के बावजूद भारत लगभग सभी जी20 देशों की तुलना में घरेलू मुद्रास्फीति कम रखने में कामयाब रहा है।

फोर्ब्स ने भू-राजनीति के मोर्चे पर कहा कि अमेरिका के साथ केवल संबंध मजबूत करने की ललक से बाहर निकलना एक स्वागत योग्य बदलाव है। उन्होंने कहा, ‘पिछले कई वर्षों से हमारी विदेश नीति और व्यापार नीति दोनों के लिहाज से हमने भारत-अमेरिका संबंध पर बहुत अधिक ध्यान दिया है। यूरोप, जापान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया, एशिया के अन्य हिस्सों के साथ अन्य प्रमुख संबंधों को अपेक्षाकृत उपेक्षित किया गया है। अब उन्हें अंततः व्यापार और विदेशी मामलों दोनों में वह तवज्जो मिल रही है जिसकी उन्हें आवश्यकता है। इसे जारी रखने की आवश्यकता है भले ही अमेरिका के साथ संबंध बेहतर स्थिति में आए या नहीं।’

हाल ही में न्यूजीलैंड के साथ व्यापार समझौते पर तेजी से हस्ताक्षर करने का निर्णय शायद एक स्पष्ट संकेत है।

वैश्विक व्यापार और भू-राजनीति ने सभी को उलझाए रखा वहीं भारत में कई संकट एक साथ आ गए। आसमान और जमीन दोनों पर। 12 जून को अहमदाबाद एयरपोर्ट से उड़ान भरने के तुरंत बाद लंदन जा रही एयर इंडिया की बोइंग ड्रीमलाइनर का दुर्घटनाग्रस्त होना (जिसमें एक को छोड़कर सभी यात्री और जमीन पर कई लोग मारे गए) 2025 की सबसे दुखद यादों में से एक रहेगी। इस दुर्घटना के छह महीने बाद भी जांच रिपोर्ट आने का इंतजार है। यहां तक कि दुर्घटना के पीछे का कारण भी ज्ञात नहीं है और इसके साथ ही एक अन्य हवाई दुर्घटना रहस्य में डूब गई है।

इस महीने की शुरुआत में लगातार कई दिनों तक इंडिगो ने पायलटों के लिए अनिवार्य आराम के घंटे बढ़ाने वाले एक नए विमानन नियम लागू होने के बाद पायलटों की कमी के कारण रोजाना सैकड़ों उड़ानें रद्द कर दीं जिससे यात्रियों में अफरा-तफरी मच गई।

अराजकता का असली कारण जानने के लिए कई जांच चल रही हैं, जबकि डीजीसीए ने नए नियमों को लागू करने की समय सीमा में ढील दी है। नाम नहीं छापने पर विमानन उद्योग के एक विशेषज्ञ का कहना है, ‘इंडिगो विवाद के लिए सभी संबंधित पक्ष जिम्मेदार हैं।’

विमानन कंपनी को लगा कि वह नियामक की तुलना में स्वयं अपने स्तर पर बेहतर प्रबंधन कर लेगी। उसके अनुसार शायद उड़ानों में व्यवधान जितने बड़े पैमाने पर हुआ उतनी तो पायलटों की कमी भी नहीं थी। इस विशेषज्ञ ने कहा, ‘यह उनके लिए सुविधा की जगह परेशानी का सबब बन गया।’ विशेषज्ञ डीजीसीए  को दोषी ठहराते हैं जिसके बारे में उनका कहना है कि वह नियम-कायदे बनाने में तो अच्छा है लेकिन उन्हें लागू करने में असरदार साबित नहीं हुआ है। मंत्रालय ने भी तभी प्रतिक्रिया दी जब चीजें बिगड़ गईं और एक बड़ा सार्वजनिक एवं राजनीतिक मुद्दा बन गया।

इस सब के बीच हवा में कुछ ऐसा था जो ठीक नहीं था। जी हां, एक्यूआई  आजकल सबसे अधिक देखे जाने वाले मानदंड में से एक है। इन दिनों एयर प्यूरीफायर की बिक्री बढ़ रही है। राजधानी एवं उसके आस-पास के इलाकों में बढ़ते एक्यूआई स्तरों से सबसे अधिक प्रभावित होने के साथ कार्यकर्ता और स्वास्थ्य सलाहकार समूह यह सुनिश्चित करने में लगे हैं कि सत्तारूढ़ वर्ग उनकी बात ध्यान से सुने।

इस लेखक के साथ एक बातचीत में पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के संस्थापक अध्यक्ष प्रोफेसर के श्रीनाथ रेड्डी ने बताया कि वायु प्रदूषण से स्वास्थ्य को होने वाली नुकसान पूरे साल दूषित हवा के कारण होती है और साल के आखिरी दो महीनों में यह समस्या अत्यधिक बढ़ जाती है।

उन्होंने कहा, ‘इसलिए वायु प्रदूषण से निपटने के मौजूदा उपाय और प्रयास केवल साल के कुछ महीनों की कवायद बनकर नहीं रह जानी चाहिए।’

उन्होंने सुझाव दिया कि एक एकीकृत बहु-एजेंसी  कार्य योजना में लोक स्वास्थ्य के साथ-साथ आबादी के कमजोर वर्गों की रक्षा के लिए वाहन एवं औद्योगिक उत्सर्जन, निर्माण धूल और बायोमास जलाने से होने वाले उत्सर्जन और इसके साथ संपर्क कम किया जाना चाहिए।

प्रदूषण के मुद्दे पर मुखर रहीं पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी का मानना है कि पिछले दो दशकों में वायु गुणवत्ता खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है। उन्होंने कहा कि हर साल वायु गुणवत्ता खराब हुई है। उन्होंने कहा कि प्रतिकूल स्वास्थ्य परिणामों के लिहाज से यह दहलीज कब पार हो गई यह बताना मुश्किल है।

बेदी के अनुसार,‘नीति एवं कानून बनाने वालों तक यह बात पहुंच गई है कि इसे हल करने के उपायों के बारे में सोचा जाए। शायद सरकार के अधिकारियों के साथ-साथ सभी योगदानकर्ताओं तक संदेश स्पष्ट रूप से पहुंच चुका है। मगर स्वास्थ्य संकट को पलटने के लिए अब लोगों द्वारा मौजूदा प्रयास जारी रखने की आवश्यकता है।’

साल 2025 के एक अन्य संकट की बात करते हुए आर गोपालकृष्णन कहते हैं कि नमक से लेकर सेमीकंडक्टर तक बनाने वाले टाटा समूह की होल्डिंग कंपनी टाटा संस में सबसे बड़ी हिस्सेदारी रखने वाले टाटा ट्रस्ट्स में हालिया मतभेदों के बावजूद समूह मजबूती से खड़ा है।

गोपालकृष्णन उद्योग जगत का अनुभव रखने वाले, टिप्पणीकार एवं लेखक हैं और वर्षों तक टाटा से भी जुड़े रहे हैं। टाटा ट्रस्ट्स के झगड़े का क्या असर हो सकता है, इस सवाल पर गोपालकृष्णन ने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि हाल ही में उभरे मतभेदों का उन अंतर्निहित मूल्यों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा जिनके लिए टाटा समूह हमेशा खड़ा रहा है। कम से कम लंबी अवधि तक तो बिल्कुल नहीं।’

उन्होंने कहा कि समूह के अंतर्निहित मूल्य, आचार संहिता, टाटा की कारोबारी श्रेष्ठता, इसके पुरोधाओं के जीवन मूल्यों का व्यापक उत्सव, टाटा संस का निजी इकाई बने रहना और कुशल नेतृत्व व्यवहार जैसे जीवंत और सक्रिय साधनों में निहित हैं। खासकर ब्रांड टाटा पर उन्होंने कहा कि यह आकलन नहीं किया जा सकता कि निकट अवधि में ब्रांड को क्या नुकसान हुआ है।

उन्होंने आगे कहा कि उन्हें अपने पुराने अनुभव से यह लगता है कि दूरसंचार विवादों, टाटा फाइनैंस, विवादित अधिग्रहणों जैसे पिछले विवादों के बावजूद एक ब्रांड के रूप में टाटा अपनी समृद्ध संस्कृति के बल पर प्रतिकूल प्रभावों से सुरक्षित रहता है। उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि यह मजबूती समूह को किसी भी परीक्षा में असफल होने नहीं देगी।

जहां तक निकट भविष्य की चुनौतियों की बात है तो साल 2025 में एआई में हुई प्रगति अपने साथ कई चुनौतियां भी लेकर आई है। फिलहाल यह पुख्ता तौर पर नहीं कहा जा सकता कि एआई में भारी भरकम निवेश के क्या नतीजे सामने आएंगे, एआई  डेटा सेंटर  से बिजली और पानी की मांग तकनीक क्षेत्र को किस तरह प्रभावित करेगी या फिर दुनिया में लाखों नौकरियां चली जाएंगी।

फिलहाल, भारत में वैश्विक कंपनियों की काफी दिलचस्पी देखी जा रही है। एमेजॉन, माइक्रोसॉफ्ट और गूगल ने पिछले कुछ महीनों में भारत में एआई और संबंधित क्षेत्रों के लिए सामूहिक रूप से 65 अरब डॉलर से अधिक की प्रतिबद्धता जताई है। इस लिहाज से आखिर एआई को लेकर सरकार का क्या रुख है?

बिज़नेस स्टैंडर्ड के सवालों के जवाब में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय में सचिव एस कृष्णन ने कहा, ‘एक मजबूत एआई आधारित कार्य बल  सार्वजनिक डिजिटल ढांचा, सबसे बड़े डेटा सेट तक पहुंच, स्टार्टअप इकाइयों की बढ़ती संख्या और नवाचार में सहूलियत को देखते हुए भारत सभी का कल्याण सुनिश्चित करने के लिए एआई  के लाभों का उपयोग करने के लिए खास कर तैयार है।’

कृष्णन ने कहा कि यूपीआई और आधार के बाद सरकार इंडियाएआई  मिशन के माध्यम से एआई के साथ सफलता की कहानी आगे बढ़ाना चाहती है। नए साल में देश 19 और 20 फरवरी को नई दिल्ली में होने वाले सबसे बड़े एआई शिखर सम्मेलन के लिए तैयार हो रहा है। कृष्णन ने कहा, ‘प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण लोग, ग्रह और प्रगति पर आधारित यह शिखर सम्मेलन वैश्विक एआई सहयोग में  ‘कार्रवाई’  से ‘प्रभाव’ की ओर एक बदलाव का प्रतीक होगा।’

साल 2025 में महिला विश्व कप क्रिकेट प्रतियोगिता में भारत की जीत और ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला की सफल अंतरिक्ष यात्रा जैसे कुछ रोमांचक क्षण भी आए और अब आगे देखने का समय है। मगर उससे पहले हमें मौजूदा साल की उपलब्धियों पर जरूर नजर डाल लें।

पीडब्ल्यूसी इंडिया के अरोड़ा ने कहा,‘अगर मुझे किसी एक उपलब्धि का नाम लेने के लिए कहा जाए तो 2025 की असली सौगात यह रही कि भारत आधिकारिक तौर पर ‘भविष्य का बाजार’ न होकर दुनिया का एक प्रमुख आर्थिक इंजन बन गया।’ उन्होंने कहा कि जापान और जर्मनी को पछाड़ कर चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी।

इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह रही कि हम किस तरह 8 फीसदी वृद्धि दर के साथ आगे बढ़े। उन्होने कहा, ‘लेकिन मेरे लिए सबसे बड़ी सफलता यह है कि भारत ने किस तरह अपने सार्वजनिक डिजिटल ढांचे को अपने सबसे शक्तिशाली निर्यात में बदल दिया है।’

First Published - December 23, 2025 | 10:48 PM IST

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