भारतीय फार्मास्यूटिकल्स उद्योग ने बीते एक दशक में अमेरिकी औषधि नियामक (यूएसएफडीए) के विनियमनों के अनुपालन में सुधार किया है। आधिकारिक कार्रवाई जरूरी (ओएआई) के मामले साल 2014 के 23 फीसदी से 2024 में कम होकर 11 फीसदी हो गई है, जो मौजूदा वैश्विक औसत 14 फीसदी से कम है। ओएआई के जरिये विनियामक उल्लंघनों की पहचान होती है।
इंडियन फार्मास्यूटिकल अलायंस (आईपीए) ने खुलासा किया है कि दुनिया भर में यूएसएफडीए के निरीक्षण की संख्या में गिरावट आई है और यह साल 2014 के सालाना 1,849 से कम होकर साल 2024 में करीब 940 हो गई है। हालांकि, भारत में होने वाले निरीक्षण की संख्या में इजाफा हुआ है। साल 2014 में दुनिया भर में ओएआई दर्जे की हिस्सेदारी 6 फीसदी थी, जो अब दोगुना से अधिक होकर 14 फीसदी हो गई है।साल 2014 में वैश्विक निरीक्षणों का सिर्फ 6 फीसदी ही भारत में हुआ था। अब यह आंकड़ा तीन गुना बढ़कर 18 फीसदी हो गया है, जो वैश्विक दवा आपूर्ति श्रृंखला में भारत की बढ़ती भूमिका को दर्शाता है।
अमेरिकी औषधि नियामक कोई कार्रवाई नहीं जरूरी (एनएआई), स्वैच्छिक कार्रवाई जरूरी (वीएआई) और आधिकारिक कार्रवाई जरूरी (ओएआई) जैसे अपने निरीक्षण के निष्कर्ष तीन हिस्सों में बांटता है। एनएआई से पता चलता है कि संयंत्र में सभी नियमों का अनुपालन किया जा रहा है और कोई बड़ी खामी नहीं मिली है। वीएआई से पता चलता है कि निरीक्षण के दौरान कुछ मसले मिले थे मगर वे इतने गंभीर नहीं है कि नियामकीय कार्रवाई की जरूरत पड़े। सबसे महत्त्वपूर्ण ओएआई श्रेणी है, जिसका मतलब होता है कि गंभीर अनुपालन मुद्दों की जानकारी मिली है, जिस कारण चेतावनी पत्र, आयात अलर्ट और उत्पाद वापस मंगाने जैसे नियामक प्रवर्तन हो सकते हैं।
सुधारों के बावजूद आईपीए ने जोर देकर कहा है कि गुणवत्ता उत्कृष्टता अब भी बरकरार है। नियामकीय जांच भी लगातार विकसित हो रही है। इससे ध्यान बुनियादी उत्पाद विनिर्माण प्रथाओं (जीएमपी) के अनुपालन से हटकर संदूषण नियंत्रण, संयंत्रों के रखरखाव और विनिर्माण विसंगतियों के मूल कारण जैसी छोटी-छोटी बातों पर केंद्रित किया गया है।इंडियन फार्मास्यूटिकल अलायंस के महासचिव सुदर्शन जैन ने कहा, ‘पिछले एक दशक में भारत ने वैश्विक फार्मास्युटिकल्स निरीक्षण में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाते हुए नियामक उल्लंघन के मामलों की संख्या में कमी की है। मगर गुणवत्ता उत्कृष्टता का स्तर लगातार बढ़ रहा है और कंपनियों को भी उभरती अनुपालन चुनौतियों से निपटने में सक्षम होना चाहिए।