विदेशी कंपनियां भारत में बड़ी संख्या में अनिवासी कर्मचारियों को काम पर रखती हैं।
उन्हें विदेशी कंपनियों द्वारा, या भारत में उनकी सहयोगी कंपनियों द्वारा या फिर दोनों की ओर से वेतन दिया जाता है। इसके अलावा उन्हें विदेश में आंशिक रूप से और भारत में आंशिक रूप से ऊपरी लाभ या अन्य सुविधाओं का भुगतान किया जा सकता है।
यह अक्सर देखा गया है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां वैश्विक स्तर पर अपने कर्मचारियों के संदर्भ में एक समान नीति अपनाती हैं। कई मामलों में अनिवासी कर्मचारियों को एक देश से दूसरे देश में स्थानांतरित किया जाता है। स्थानीय कर कानूनों और सामाजिक सुरक्षा नियमन में अंतर होने के बावजूद इनके पारिश्रमिक में एक निरंतरता और स्थिरता देखी जाती है।
इन बातों को ध्यान में रखते हुए वेतन आय पर कराधान एक जटिल समस्या पैदा करता है, क्योंकि पूरी वेतन आय दूसरे देश या भारत में प्राप्त नहीं हो सकती है।
इस मुश्किल का सामना करने के लिए कर संधियों में आमतौर पर एक विशेष प्रावधान शामिल किया जाता है जिसमें यह घोषित किया जाता है कि ऐसी आय पर आमतौर पर कर्मचारी के अधिवास वाले देश में कर लगेगा, जहां वह रहता हो।
लेकिन अगर यदि कर्मचारी भारत में एक वित्त वर्ष में 183 दिनों से अधिक तक ठहरता है तो उस पर वैसा ही कर भारत में लगाया जा सकता है। अलबत्ता, भारत में कर में छूट का दावा करने के लिए इन शर्तों का पालन किया जाना चाहिए। पहला, कर्मचारी की भारत में ठहरने की कुल अवधि एक वित्तीय वर्ष में 183 दिनों से अधिक नहीं हो।
दूसरा, कर्मचारी द्वारा की गई सेवाओं के लिए पारिश्रमिक ऐसे नियोक्ता की ओर से चुकाया गया हो जो भारत का निवासी न हो। तीसरा, पारिश्रमिक का वहन भारत में नियोक्ता के एक स्थायी प्रतिष्ठान या स्थिर प्रतिष्ठान द्वारा नहीं किया गया है।
कई मामलों में, जिनमें अनिवासी कर्मचारी भारत में कर के दायरे में आते हैं, उन्हें दिए जाने वाले वेतन से कर काटने के लिए भारतीय कर्मचारी के दायित्व का निर्धारण करना बेहद कठिन है। एली लिली और कंपनीज आई. पी. लिमिटेड (एस.एल.पी. -सी- नंबर 18062 ऑफ 2008) के मामले में एक ताजा फैसला सुनाया गया।
इसमें नीदरलैंड की कंपनी और एक भारतीय कंपनी के संयुक्त उपक्रम में भारत में काम कर रहे चार अनिवासी कर्मचारियों से कर काट लिया गया था। इन अनिवासी कर्मचारियों ने नीदरलैंड की कंपनी के अलावा भारतीय जेवीसी से वेतन हासिल किया था। कर निर्धारिती ने कंपनी द्वारा चार अधिकारियों को दिए गए वेतन से स्रोत पर कर काट लिया था और इसे कर विभाग में जमा भी कर दिया था।
कर विभाग ने तर्क दिया था कि जेवीसी को न सिर्फ संबंधित अधिकारियों को दिए गए वेतन से टीडीएस काटने का अधिकार था बल्कि भारत से बाहर सहयोगी कंपनी की ओर से इन अधिकारियों को दिए जाने वाले वेतन से भी कर काटने का अधिकार है।
लेकिन उच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि भारतीय कंपनी का यह दायित्व नहीं है कि वह अनिवासी कर्मचारियों को विदेशी कंपनी से मिलने वाले वेतन में स्रोत पर कर काटे। स्रोत पर कर नहीं काटा जाना कानून का उल्लंघन नहीं है। ऐसे में भारतीय कंपनी से ब्याज का दावा करने का कोई औचित्य नहीं है।
सर्वोच्च न्यायालय ने विभाग की विशेष अनुमति याचिका को खारिज करते हुए कहा कि भारतीय कंपनी का अपने अनिवासी कर्मचारियों को विदेशी सहयोगी कंपनी द्वारा किए जाने वाले भुगतान में स्रोत पर कर काटने का दायित्व नहीं है। स्रोत पर कर काटने का दायित्व अन्य दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।
अनिवासियों को चुकाए जाने वाले वेतन में काटे जाने योग्य खर्च की अनुमति नहीं होगी, जब तक कि स्रोत पर कर काट लिया गया हो और इसे सरकार के पास जमा कर दिया गया हो। कर देयता एक सांविधिक दायित्व है जिसकी पूर्ति कर कटौती के दावे के लिए एक पूर्व शर्त है।
इसलिए विदेशी कंपनियों को उनके द्वारा अनिवासी कर्मचारियों को दिए जाने वाले पारिश्रमिक से कर काटने और इस कर को भारत सरकार को चुकाए जाने की सलाह दी गई है। भारतीय सहयोगी कंपनियों या संयुक्त उपक्रम कंपनियों को सिर्फ उनके द्वारा भुगतान किए जाने वाले पारिश्रमिक पर ही टीडीएस काटना चाहिए।
विदेशी कंपनियों को पारिश्रमिक के उस हिस्से पर पर कर काटना होगा जिसका भुगतान उनके द्वारा भारत में कहीं भी या फिर भारत से बाहर किया गया हो।