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सेवा कर काटने की तारीख पर बने कानूनी प्रावधान

Last Updated- December 10, 2022 | 7:25 PM IST

सेवा कर दर में 2 फीसदी की कटौती भले ही कर दी गई है, लेकिन सेवा प्रदाताओं में इस कर की कटौती के लागू होने की तारीख को लेकर सवाल अभी भी बरकरार है।
भारत में सेवा कर को लागू हुए 15 साल से अधिक का समय हो गया है, लेकिन अभी यह महत्वपूर्ण कानूनी मुद्दा अनसुलझा बना हुआ है। इसे लेकर कई विवाद उठे और कई अदालती फैसले भी सामने आए, लेकिन इसे लेकर अभी तक कोई ट्रेड नोटिस, सर्कुलर और कोई स्पष्ट कानून नहीं बनाया गया है।
इसके विपरीत सीमा शुल्क कानून में इसके लिए धारा 15 और उत्पाद शुल्क कानून का नियम 5 है जिसमें उस तिथि का स्पष्ट उल्लेख किया गया है, जो शुल्क दर वसूलने के लिए प्रासंगिक होगी। कस्टम्स एक्ट की धारा 15 के तहत यह तिथि एंट्री बिल भेजे जाने की तिथि या गोदाम से सामान की निकासी की तिथि या विभिन्न स्थितियों में शुल्क के भुगतान पर आधारित तिथि है।
एक्साइज लॉ के नियम 5 में इस सेवा कर कटौती के लिए फैक्टरी से सामानों की निकासी की तारीख को चुना गया है। सेवा कर कानून में इसे लेकर कोई विशेष प्रावधान नहीं है। मौजूदा कार्य प्रणालियां विभिन्न स्थानों में अलग-अलग हैं।
सेवा कर के मामले में दो विकल्प हैं। पहला, यह सेवा मुहैया कराए जाने की तारीख हो सकता है। यह थोड़ा स्वाभाविक चयन भी दिखता है, क्योंकि सेवा कर के मामले में टैक्सेबल इवेंट सेवा मुहैया कराए जाने की तारीख है। लेकिन कानूनी रूप से यह टैक्सेबल इवेंट और शुल्क के निर्धारण की तारीख के बीच कोई संबंध नहीं रखता है।
कस्टम्स एक्ट और एक्साइज एक्ट में शुल्क दर के निर्धारण के लिए तारीखों का टैक्सेबल इवेंट से कुछ भी लेना-देना नहीं है। इसलिए सेवा कर में भी इसके लिए कोई भी तारीख उपयुक्त हो सकती है। दूसरी तरफ सेवा दिए जाने की एक खास तारीख के चयन में समस्या आना स्वाभाविक है, क्योंकि ये तारीखें कई हो सकती हैं।
टेलीफोन और इंटरनेट के मामले पर बात करें तो यह सतत प्रक्रिया है और सॉफ्टवेयर के जरिये मुहैया कराई गई सेवा के मामले में इसका निर्धारण अनिश्चित और कठिन है। सेवा मुहैया कराए जाते वक्त के अलावा यह भी सही सही जानकारी नहीं होती है कि इसकी कीमत क्या होगी। सामान्यतया भुगतान सेवा मुहैया कराए जाने की तिथि के काफी समय बाद किया जाता है।
दूसरा विकल्प है सेवा प्रदाता द्वारा सरकार को चुकाए जाने वाले सेवा कर की तारीख। यह तारीख नियत है और इनवॉइस एवं अन्य डॉक्यूमेंट से आसानी से निर्धारित की जा सकती है। इसका एक फायदा यह भी है कि इनवॉइस में कीमत भी निर्दिष्ट होती है। इसे लेकर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि ‘प्रचार कम्युनिकेशंस बनाम सीसीई 2006 (2) एसटीआर 492 (टी)’ मामले में ट्रिब्यूनल में एक फैसले में निर्धारण की तारीख के रूप में भुगतान की तारीख को ही स्वीकृति दी गई थी।
हालांकि इस फैसले में इस तरह का तर्क गलत था। ‘मेयर्स्क इंडिया बनाम कमिश्नर 2007 (008) एसटीआर 0352 (टी)’ मामले में भी इसका हवाला दिया गया था, लेकिन इसे निर्णायक रूप नहीं दिया गया। इस संबंध में संदेह दूर करने के लिए बोर्ड एक सर्कुलर या ट्रेड नोटिस तुरंत जारी करे जिसमें यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि सेवा कर के उद्देश्य के लिए शुल्क निर्धारण के लिए तारीख कौन सी होनी चाहिए। लेकिन इस तरह के मौलिक कानूनी मुद्दे पर वास्तविक रूप से कोई सर्कुलर मान्य हल नहीं हो सकता।
अधिनियम या नियम में प्रावधान को शामिल किया जाना चाहिए। एक सर्कुलर द्वारा कानून को निर्धारित नहीं किया जा सकता है। यह सिर्फ कानूनी स्थिति को स्पष्ट कर सकता है। अस्थायी रूप से सर्कुलर संदेह को दूर करने और कार्य प्रणाली में समानता लाने के उद्देश्य से काम करेगा। लेकिन अगले बजट में कानूनी प्रावधान कस्टम्स एक्ट और सेंट्रल एक्साइज एक्ट और रूल्स के क्रम में ही लाया जाना चाहिए। यह सरकार को किए जाने वाले शुल्क भुगतान की तारीख होना चाहिए।

First Published - March 9, 2009 | 5:09 PM IST

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