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ओईसीडी कर संधि में भारत की मौजूदगी का महत्व

Last Updated- December 07, 2022 | 9:03 PM IST

आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) एक अंतरराष्ट्रीय आर्थिक शोध संगठन है। इसके सदस्यों की संख्या 30 है, जिनमें से अधिकांश विकसित राष्ट्र हैं।


भारत इस संगठन का सदस्य नहीं है, लेकिन वर्ष 2006 में इसे अवलोक न करने का दर्जा दिया गया था।  अब भारत को संगठन की विस्तृत बातचीत प्रक्रिया में भी शामिल किया गया है। अवलोकन करने वाले देशों की  भूमिका ओईसीडी में बढ़ती जा रही है। खासकर ब्रिक देशों ने ओईसीडी राजस्व नीतियों को काफी हद तक प्रभावित किया है।

ओईसीडी मुख्य तौर पर आर्थिक, पर्यावरणीय, राजकोषीय और सामाजिक मुद्दे से सरोकार रखता है। यह एक ऐसा फोरम है, जो इन मसलों पर वाद-विवाद और बहस के लिए माध्यम का काम करता है। इसके अलावा ओईसीडी इस संबंध में नीतियां भी बनाता है और कभी कभी हल्के फुल्के कानून भी।

दरअसल ओईसीडी जो कानून बनाता है, वह पालन करने के मामले में बाध्यकारी नहीं होता है। कभी कभी बाध्यकारी संधियों के जरिये इन कानूनों को सदस्य देशों को मानना भी पड़ता है। एक इसी तरह का महत्वपूर्ण राजस्व नीति दस्तावेज मॉडल टैक्स कन्वेंशन (एमटीसी) है, जो द्विपक्षीय वार्ता और सहयोग की बहाली का एक पुख्ता नमूना है।

ओईसीडी ने हाल ही में एमटीसी और इसकी कमेंट्री से जुड़ा एक दस्तावेज जारी किया है। पहली बार एमटीसी के इस दस्तावेज में भारत के विचारों और राय को प्राथमिकता दी गई है। इस एमटीसी दस्तावेज पर प्रतिक्रिया देते हुए भारतीय नीति नियंताओं ने अपने स्रोत संबंधी दायरों को विस्तृत करने की दिशा में ठोस पहल करते हुए भारत से बाहर रहने वाले प्रवासी से संबद्ध कर की स्थिति को स्पष्ट करने की बात कही है।

अमेरिकी मॉडल कर सम्मेलन में विकासशील देशों की राय से सहमति जताने की कोशिश की गई है और यह माना गया है कि ये देश उभरती हुई अर्थव्यवस्था हैं। इसमें कहा गया कि व्यापार और निवेश के बीच संतुलन स्थापित करने के लिए स्रोत आधारित कर स्थिति की विवेचना का दायरा बड़ा करना होगा।

ओईसीडी के सदस्य देश प्रवासी आधारित कर सिद्धांत का समर्थन करते हैं। इस सिद्धांत के अंतर्गत उस देश में कर नहीं लगाया जाना चाहिए, जहां से आय प्राप्त की जाती है बल्कि उस देश में कर आरोपित कि या जाना चाहिए, जिसका निवासी आय प्राप्त करता हो।

प्रमुख प्राथमिकताएं
ई-कॉमर्स

ओईसीडी की एमटीसी को लेकर की व्याख्या से अलग भारत इस विचार का पक्षधर है कि वेबसाइट में स्थायी बंदोबस्त को जोड़ दिया जाना चाहिए। और उसके बाद अगर इस बाबत किसी प्रकार की समस्या कारोबारियों को हो, तो उसके समाधान के लिए वे इस वेबसाइट के जरिये निर्देशों को देखकर उपायों पर गौर कर सके।

भारत इसका भी पक्षधर है कि इस वेबसाइट का एक सर्वर भारत में भी हो, ताकि भारत में अगर इस तरह की समस्या हो, तो उसके संदर्भों को वेबसाइट के माध्यम से देखा जा सके।

व्यापारिक बैठकें

इसी प्रकार भारत ओईसीडी से इस मामले में अलग मत रखता है। इस संबंध में ओईसीडी का कहना है कि केवल वार्ताओं और बैठकों में हिस्सा लेकर स्थायी बंदोबस्त (पीई) के मामले को नहीं उठाया जा सकता है। लेकिन किसी बैठक में वार्ता के लिए उस उपस्थिति में यह निर्णय लिया जा सकता है, जहां प्राधिकृत व्यक्ति अनुबंधों को तय करता है और इसी तरह विदेशी पीई का गठन किया जाता है।

पट्टा लगाना

ठेका हस्तांतरण के संबंध में, चाहे यह आस्तियों के रूप में हो या अनास्ति के रूप में, भारतीय मत यह कहता है कि ऐसा बहुत कम शुष्क ठेका (ऐसा ठेका जिसमें व्यक्तियों की मौजूदगी नहीं हो) है, जो पीई का गठन करता है। स्रोत स्थान के संबंध में अप्रवासी के व्यापार का स्थान अगर नियत हो, तो पीई लागू होगा अन्यथा वह लागू नहीं होगा।

सेवा

सेवाओं के मामले में पीई को लेकर एमटीसी में किन्हीं ठोस प्रावधानों का जिक्र नहीं किया गया है, लेकिन भारत की बहुत सारी कंपनियों के पास इसको लेकर नियम हैं। आगे भी भारत ओईसीडी के मत से अपनी अलग राय रखता है और यह निष्कर्ष देता है कि स्रोत राज्य के बाहर सेवाओं के प्रदर्शन पर कर का दायरा नहीं बढ़ाया जाना चाहिए। इस पूरी प्रक्रिया में उन्हीं सेवाओं पर कर का प्रावधान हो भी सकता है, जिन पर लाभ की संभावना बनती है।

आकर्षण बल का नियम

इसी प्रकार एमटीसी आकर्षण बल के नियम को अस्वीकृत करता है, जबकि भारत इस तरह के प्रावधानों को मान्यता देता है। यह नियम इस बात की व्याख्या करता है कि ऐसा लाभ, जो किसी कंपनी ने अपनी व्यापारिक गतिविधियों के जरिये हासिल करती है, तो वह पीई से स्वतंत्र होगा। इस पर पीई के उपबंध तब ही लागू होंगे, जब इसकी प्रकृति पीई के तहत की जाने वाली व्यापार की प्रकृति से मेल खाती होगी।

समाधान

भारत में मूल्यीकरण विवादों के बहुत सारे मामले आ रहे हैं और इसमें यह सबसे ऊपर हो गया है। एमटीसी के तहत इस विवाद के समाधान के लिए जो प्रावधान हैं, उसमें भारत को प्राथमिकता दी गई है। हालांकि अगर यह विवाद जर्मनी, सिंगापुर और इस तरह के दूसरे देशों के साथ होगा, तो थोड़ी समस्या हो सकती है।

भारत का ओईसीडी के पर्यवेक्षक देश के तौर पर मौजूद रहना समझ में आता है। अब देखना यह है कि भारत अपनी सदस्यता बनाने की दिशा में किस प्रकार के कदम उठाता है। हालांकि भारत ने इस संबंध में अपनी ज्यादा प्रतिबद्धता नहीं दिखाई है। भारत को ओईसीडी संधि के  जरिये उन देशों को इसमें जोड़ने में अपनी भूमिका निभानी चाहिए, जो इसके सदस्य नही हैं।

First Published - September 15, 2008 | 12:33 AM IST

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