फ्रांसीसी अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी ने कहा कि सभी देशों को 20वीं सदी के दौरान यूरोप में प्रचलित रहे वृद्धिशील संपदा कर (वेल्थ टैक्स) को अपनाना चाहिए और वैश्विक संदर्भ में ऐसा ही कर का ढांचा तैयार करना चाहिए।
उन्होंने ईमेल के जरिये एक सवाल के जवाब में कहा, ‘यूरोप के कई देशों में 20वीं सदी में अरबपति व वृद्धिशील संपदा कर व्यवस्था थी। यह उनकी प्रगतिशील कर व्यवस्था का हिस्सा थी ताकि कल्याणकारी राज्य के कार्यों और जन सेवाओं के लिए धन जुटाई जा सके। हमें इसे 21वीं सदी में फिर से अधिक वैश्विक संदर्भ में लागू करने की जरूरत है।
कई यूरोपीय देशों जैसे स्वीडन, फ्रांस, जर्मनी, नॉर्वे और नीदरलैंड ने 20वीं सदी में संसाधनों के वितरण और असमानता कम करने के लिए उच्च आय पर, विरासत पर व संपदा पर कर सहित ऐसे कई कर लगाए थे। इन करों की बदौलत देश कल्याणकारी राज्य की भूमिका अदा करने के लिए धन जुटा पाए थे। हालांकि, कई देशों ने 20वीं सदी के अंत और 21वीं सदी की शुरुआत में पूंजी घटने व कर चोरी, संपत्ति के सही से मूल्यांकन में प्रशासनिक मुश्किलों और कम वितरणात्मक आर्थिक नीति के कारण इन करों को चरणबद्ध ढंग से हटा दिया या कम कर दिया।
नॉर्वे और स्पेन जैसे कई यूरोपीय देशों ने अभी भी संपदा कराधान का कुछ स्वरूप बरकरार रखा है लेकिन अन्य देशों जैसे कि फ्रांस रियल एस्टेट जैसी ने लक्षित चुनिंदा संपत्तियों पर कर लगाना बेहतर समझा। भारत ने साल 2015 में ही संपदा कर को समाप्त कर दिया था। कहा गया कि यह प्रशासन पर बोझ हो गया था और इससे अधिक कर संग्रह भी नहीं होता था। इसकी जगह भारत 1 करोड़ रुपये से अधिक आमदनी की घोषणा करने वाले लोगों पर 2 फीसदी का अतिरिक्त अधिभार लगा दिया था।
पिकेटी ने बेहद अमीर लोगों से कर वसूल कर इसे वित्तीय सामाजिक आधारभूत ढांचे जैसे स्वास्थ्य और शिक्षा पर खर्च करने की वकालत की है।
मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन ने शुक्रवार को एक कार्यक्रम में यह चेतावनी दी थी कि अधिक कर लगाए जाने पर पूंजी निवेश बाहर निकल सकता है। नागेश्वरन ने ‘बिलियनेयर टैक्स’ के सुझाव को नकारते हुए कहा था कि सरकारी आदेश के जरिये सभी समस्याओं का समाधान नहीं किया जा सकता है।