देश में कोरोनावायरस महामारी की शुरुआत के बाद से ही वायरस की कई किस्मों की मौजूदगी देखी गई है। इनमें से सबसे भयावह, वायरस का डेल्टा संस्करण रहा है। ‘ऑवर वल्र्ड इन डेटा’ ट्रैकर से पता चलता है कि दूसरी लहर की शुरुआत से पहले इसका योगदान न्यूनतम संख्या वाले वायरस का पता लगाने में भी है। वैज्ञानिक समय-समय पर नमूनों का विश्लेषण कर यह समझते हैं कि संक्रमण कैसे बदल रहा है और इसका प्रसार कैसे हो रहा है। वर्ष के महीने बीतने के साथ ही डेल्टा संस्करण के नमूनों में तेजी आने लगी।
मार्च 2021 में कुल विश्लेषण किए गए सीक्वेंस में इसकी हिस्सेदारी 10 फीसदी से भी कम थी। मई 2021 तक यह बढ़कर 90 फीसदी से अधिक हो गया। वायरस के विभिन्न किस्मों को अलग-अलग समय पर चिंताजनक स्वरूपों और अनूठे स्वरूपों में वर्गीकृत किया गया था। वैज्ञानिकों ने अफ्रीका में वायरस के एक नए संस्करण का पता लगाया है। विज्ञान पत्रिका नेचर के अनुसार, विश्व स्वास्थ्य संगठन समूह 26 नवंबर को बैठक की जिसमें अनूठे और चिंताजनक संस्करण के रूप में वर्गीकरण पर फैसला करना था। इससे पहले विभिन्न महाद्वीपों में वायरस के चिंताजनक स्वरूपों का पता चला था। इन वायरस के नामों का पता चलने में वक्त लग जाता है। मिसाल के तौर पर अल्फा संस्करण की पुष्टि सितंबर 2020 में ब्रिटेन में हुई वहीं दक्षिण अफ्रीका ने मई 2020 में बीटा संस्करण का पता लगाया था। दोनों के नाम दिसंबर 2020 में तय हुए। वायरस के गामा स्वरूप की पुष्टि नवंबर 2020 में ब्राजील में हुई। इसका नाम जनवरी 2021 में दिया गया। भारत के डेल्टा संस्करण की पुष्टि अक्टूबर 2020 में हुई। इसका नाम अप्रैल 2021 में तय हुआ। इसे इस साल मई में वायरस के चिंताजनक संस्करण के तौर पर नामित कर दिया गया।
डब्ल्यूएचओ की वेबसाइट के अनुसार, पहले अनूठे संस्करण (वीओआई) और चिंताजनक संस्करण (वीओसी) के तौर पर नामित वायरस सार्स-सीओवी-2 किस्म की तुलना में वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए जोखिम नहीं पैदा करते हैं और इनका वर्गीकरण दोबारा किया जा सकता है। मेडिकल पत्रिका द लैंसेट में अप्रैल 2021 में प्रकाशित ‘रैपिड आइडेंटिफि केशन ऐंड ट्रैकिंग ऑफ सार्स-सीओवी-2 वेरिएंट ऑफ कन्सर्न’ शीर्षक वाले शोध पत्र के मुताबिक कई देशों में जीनोम सिक्वेंसिंग कराने की क्षमता की कमी है जिससे वायरस के स्वरूपों की पहचान होती है और यह कई देशों की समस्या है। इसके लेखक देवज्योति चक्रवर्ती, अनुराग अग्रवाल और सौविक मैती हैं। इसमें कहा गया, ‘उन कम आमदनी और मध्यम आमदनी वाले देशों में जहां ऐसी क्षमता मौजूद है और स्थिति गंभीर है वहां सकारात्मक इलाज और सिक्वेंसिंग के नतीजे आने में देरी से वायरस का एक नया संस्करण तैयार हो जाता है।’ नई प्रौद्योगिकी प्रक्रिया में तेजी ला सकती है और लेखकों ने समय पर क्लस्टर्ड इंटरस्पेस्ड शॉर्ट पालिनड्रोमिक रिपीट्स (सीआरआईएसपीआर) के इस्तेमाल का सुझाव दिया।
